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पिल्लई को बैल की जगह जोतते थे अंग्रेज,आजादी की लड़ाई की 5 कहानियां

दक्षिण भारत के कुछ स्वतंत्रता सेनानियों की अनसुनी कहानियां...

विक्रम वेंकटेश्वरन
भारत
Published:
पिल्लई को बैल की जगह जोतते थे अंग्रेज,आजादी की लड़ाई की 5 कहानियां
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पिल्लई को बैल की जगह जोतते थे अंग्रेज,आजादी की लड़ाई की 5 कहानियां
(फोटो: अर्निका काला/ क्विंट हिंदी)

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कहीं भगत सिंह, कहीं आजाद  तो कहीं महात्मा गांधी और कहीं सुभाष चंद्र...देश को आजादी दिलाने के लिए देश का हर कोना उठा और बार-बार उठा था. आज हम आजादी का जश्न मना रहे हैं तो इसमें इन सबका योगदान है, बलिदान है. आज हम आपको दक्षिण भारत के कुछ ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी सुनाते हैं, जो नॉर्थ इंडिया में कम सुनी गई हैं. बलिदान की ये कहानियां आपको बताएंगी कि ये आजादी कैसी अनमोल है.

वी ओ चिदंबरम पिल्लई

क्या आपने कभी स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी का नाम सुना है. ये भारत की पहली देशी शिपिंग कंपनी थी. 1906 में वी ओ चिदंबरम पिल्लई ने इसकी शुरुआत की थी. इसे आप अंग्रेजों के खिलाफ खुली बगावत कह सकते हैं. उस जमाने में अंग्रेज मनमाने तरीके से शिपिंग नियम बनाते थे, यहां तक कि यात्री किराया भी अंग्रेज जब मर्जी तब बदल देते थे. पिल्लई ने जब अंग्रेजों को चुनौती दी, तो उन्होंने उन्हें जेल में डाल दिया.

जेल में पिल्लई पर बेइंतेहा जुल्म ढाए गए. उनसे खदान में काम कराया गया. उन्हें तेल के कोल्हू में बैल की जगह जोत दिया गया. चार साल तक अत्याचार के बाद जब उन्हें जेल से रिहा किया गया तो पता चला कि उनके जहाजों को अंग्रेज नीलाम कर चुके हैं. उनकी सारी दौलत खत्म हो चुकी थी. वकालत करने का उनका लाइसेंस भी रद्द कर दिया गया. तूतीकोरीन में जहां उनका घर था, वहां जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. बेहद गरीबी में 1936 में पिल्लई की मौत हो गई. तमिलनाडु के लोग उन्हें 'कप्पालोतिया थमिझान' यानी खेवनहार कहते हैं.

अल्लुरी सीतारामाराजू


राजू ने 1922 में राम्पा बगावल का नेतृत्व किया था. आदिवासियों की इस बगावत में राजू ने अंग्रेजों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध छेड़ दिया था. पूर्वी गोदावरी के जंगलों और विशाखापत्तनम में राजू की सेना ने अंग्रेजों को खूब परेशान किया. आंध्र प्रदेश के लोग आज भी उन्हें 'जंगल का हीरो' कहते हैं. दो साल की जद्दोजहद के बाद आखिर अंग्रेजों ने राजू को गिरफ्तार किया. पेड़ से बांधा और उन्हें गोली मार दी. जब राजू शहीद हुए तो उनकी उम्र महज 27 साल थी.

1974 में तेलुगू एक्टर कृष्णा ने राजू की जीवनी पर एक फिल्म की. इसी वजह से आज राजू की जो प्रतिमा स्थापित की गई है, उसमें कृष्णा की छवि दिखती है. कपड़े तक वही हैं जो कृष्णा ने फिल्म में पहने थे.

किट्टूर चेन्नमा

जिस नाइंसाफी के लिए रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था, बिल्कुल वैसी ही नाइंसाफी रानी किट्टूर चेन्नमा के साथ की गई. किट्टूर आज के कर्नाटक में है. अंग्रेजों ने कानून बनाया था कि अगर किसी राज परिवार में उत्तराधिकारी का जन्म नहीं हुआ तो गोद लिए बच्चे को तख्त नहीं मिलेगी और राज्य अंग्रेजी के हाथ में चला जाएगा. इस काले कानून के विरोध में रानी ने अंग्रेजों से तीन युद्ध लड़े. दो लड़ाइयों में रानी ने अंग्रेजों को हराया भी. कई अंग्रेज जनरलों को गिरफ्तार भी किया. जब अंग्रेजों ने युद्ध खत्म करने का वादा किया तो रानी ने उन्हें रिहा कर दिया. लेकिन दगाबाज अंग्रेजों ने वादा तोड़ दिया. फिर से युद्ध हुआ और इस बार रानी हार गई. उन्हें बंदी बना लिया गया. 1829 में कैद में ही रानी की मौत हो गई.

कर्नाटक के लिंगायत रानी को अपने समुदाय का बताते हैं. लिंगायत ने काफी दिनों तक उनकी दिव्य तलवार की तलाश की. कहा जाता है कि ये तलवार ब्रिटिश संग्रहालय में रखा है, हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि ऐसी कोई तलवार थी. चेन्नमा का नाम आज भी स्थानीय लोकगीतों में आता है.
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मार्तंड वर्मा

जिस जमाने में डच सेना को दुनिया में सबसे ताकतवर में से एक माना जाता था, उस जमाने में एक भारतीय राजा ने धूल चटाई थी. कहानी मार्तंड वर्मा की है. 10 अगस्त, 1741 को दक्षिणी त्रावणकोर में कोलाचेल नाम की जगह पर सिलॉन से डच सैनिक पहुंचे. आज के केरल में पड़ने वाली इस जगह से शुरुआत करके डच सेना त्रावणकोर का एक-एक इलाका जीतने लगी. फिर मार्तंड ने कुलकुलम में डच सेना का सामना किया. मार्तंण की सेना ने डच सेना को बुरी तरह परास्त किया और जीते हुए इलाके वापस लिया.

राजा मार्तंड वर्मा ने राज्य की सुरक्षा के लिए मजबूत किला बनाया, सेना को आधुनिक बनाया और अपनी प्रजा पर इंसाफ के साथ शासन किया.

कुंभकोणम बालमणि

अगर आप आज की बॉलीवुड अभिनेत्रियों की लोकप्रियता से प्रभावित हैं तो जरा कुंभकोणम बालमणि के बारे में जान लीजिए. एक थियेटर कलाकार. शायद महिला अधिकारियों के लिए लड़ने वाली पहली भारतीय महिला. एक सदी पहले कुंभकोणम बालमणि के शो देखने के लिए स्पेशल ट्रेन चलाई जाती थी. उन्होंने न सिर्फ संस्कृति के भुलाए जा चुके नाटकों का मंचन किया, बल्कि थियेटर का इस्तेमाल सत्ता को ललकारने के लिए किया. उन्होंने मंच को विरोध जताने का जरिया बनाया.

दक्षिण भारत में ऐसे सैकड़ों आजादी के सिपाही थे, जिनका नाम यहां गिनाया जा सकता है. लेकिन ये पांच कहानियां पढ़ने के बाद आप गूगल पर अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के नाम ढूंढें, तो हमारा मकसद पूरा होगा,हमें खुशी होगी. साथ ही नीचे कमेंट कर आप हमें ये भी बता सकते हैं कि आपके राज्य से किन स्वतंत्रता सेनानियों के नाम आपको याद हैं.

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