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नई दिल्ली में 9 और 10 सितंबर को जी20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit) होने जा रहा है. जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, फ्रांस के इमैनुएल मैक्रॉन और पीएम नरेंद्र मोदी जैसे बड़े नेता एक ही मंच पर एक साथ नजर आएंगे.
हालांकि, इस शिखर सम्मेलन में कुछ परिचित चेहरों की कमी खलेगी. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस बैठक में हिस्सा लेने भारत नहीं आ रहे हैं. सबसे खास बात यह है 2013 में सत्ता में आने के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है कि शी जिनपिंग जी20 कि बैठक में शामिल नहीं हो रहे हैं.
जी20 शिखर सम्मेलन हमेशा से बीजिंग की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है. चीन इसे जिनपिंग के समकक्षों के साथ कभी-कभार रणनीतिक वार्ता के लिए एक मंच के रूप में उपयोग करता रहा है.
हालांकि, G20 शिखर सम्मेलन के निमंत्रण पर चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के व्यवहार के क्या मायने हैं? लगता है कि यह बीजिंग द्वारा अपने राजनयिक यानी डिप्लोमेटिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक नियमित स्ट्रैटिजी और कोशिश है.
2020 में, भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़पों में कम से कम 20 भारतीय सैनिक मारे गए थे. 2,100 मील की लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर नियंत्रण के लिए दोनों के बीच 19 दौर की उच्च-स्तरीय वार्ता के बाद भी असहमति जारी रही.
सीमा विवाद पर डेडलॉक और असहमति के बीच जिनपिंग की अनुपस्थिति मेजबान देश और 2023 में जी20 शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष भारत के लिए नागवार गुजर सकती है.
जिनपिंग और मोदी ने पिछले हफ्ते ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर आमने-सामने बातचीत भी की थी. जिनपिंग ने भारत के साथ साझा सीमा पर तनाव कम करने पर चर्चा करने के लिए बिजनेस फोरम के भाषण को नजरअंदाज कर दिया था.
दोनों पक्षों के अधिकारियों ने संकेत दिया कि जिनपिंग और मोदी द्वारा विवादित भूमि पर बातचीत में तेजी लाने पर सहमति के बाद आशा जगी है.
लेकिन जल्द ही चीन द्वारा भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चीन के पठार को चीन की सीमाओं के अंदर दिखाने वाला एक नया मानचित्र जारी करने के बाद संबंधों में एक बार फिर कड़वाहट आ गई.
इसके बाद दोनों पक्षों की ओर से कड़ी प्रतिक्रियाएं आमने आईं. भारत ने "बेतुके" दावे को खारिज किया तो चीनी अधिकारियों ने भारत से कहा कि वह ओवर-रियेक्ट न करे.
जिनपिंग की अनुपस्थिति अमेरिका के प्रभुत्व वाले समूहों की जगह अन्य बहुपक्षीय समूहों को ऊपर उठाने के प्रयास का हिस्सा भी हो सकती है. जिनपिंग उन समूहों को प्राथमिकता देते हैं, जिनमें चीन अधिक प्रभावी है, जैसे कि जोहान्सबर्ग में हाल ही में संपन्न हुआ उभरते देशों का BRICS शिखर सम्मेलन.
जिनपिंग ने BRICS समूह को G20 और G7 जैसे पश्चिमी नेतृत्व वाले समूहों के विकल्प के रूप में आगे बढ़ाया है. जिनपिंग यह दिखाना चाहते हैं कि जहां पश्चिम डूब रहा है, वहीं पूर्व सूरज की तरह उदय हो रहा है.
G20 शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब चीनी अर्थव्यवस्था भी तीव्र गिरावट का सामना कर रही है. चीन बढ़ते आवास संकट के कारण वर्षों में अपने सबसे कठिन दौर में से एक में है.
जिनपिंग की अनुपस्थिति का एक और संभावित कारण 'याराना' दिखाना हो सकता है: शायद वो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ एकजुटता दिखा रहे हैं. पुतिन पर युद्ध अपराधों के आरोप में अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत में गिरफ्तारी वारंट जारी किया है. इसकी वजह से वे G20 शिखर सम्मेलन में भी भाग नहीं ले रहे हैं.
जिनपिंग की अनुपस्थिति का मतलब यह भी है कि जी20 के डिक्लरेशन पर आम सहमति संभावित रूप से खतरे में है. दूसरी तरफ जिनपिंग की अनुपस्थिति G20 पीएम मोदी की घरेलू राजनीति के लिए उतनी बुरा भी नहीं है. अतीत में विपक्षी दलों ने जिनपिंग के साथ संबंध बनाने की कोशिश के लिए पीएम मोदी आलोचना की है, जबकि सीमा पर तनाव के कारण संबंध और बिगड़ते चले गए.
चीन के नए विवादस्पद मानचित्र के बाद यह सवाल उठाता है कि अगस्त में जब दोनों नेता ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर मिले थे, तब क्या प्रगति हुई थी? क्योंकि दोनों देशों ने कहा था कि उन्होंने सीमा विवाद पर चर्चा की है.
सीमा विवाद पर वार्ता में किसी 'वास्तविक प्रगति' के बिना, जिनपिंग के दिल्ली आने का मतलब सीमा संकट को हल करने के लिए कोई गंभीर प्रयास किए बिना ही संबंधों को सामान्य बनाना होता.
यह सही है कि चीनी प्रधानमंत्री ली शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं, लेकिन जिनपिंग की अगुवाई वाले प्रतिनिधिमंडल की तुलना में इस प्रतिनिधिमंडल के पास शक्ति बहुत कम है. इसके अलावा, इस प्रतिनिधिमंडल को किसी समझौते पर पहुंचने के लिए बीजिंग में जिनपिंग की मंजूरी भी लेनी होगी. इसलिए इस चीनी प्रतिनिधिमंडल के लिए बातचीत की गुंजाइश कम हो जाती है.
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