ADVERTISEMENTREMOVE AD

G20 Summit: मोदी सरकार के लिए इम्तिहान, जिनपिंग-पुतिन के शामिल न होने के क्या मायने?

भारत ने शिखर सम्मेलन के लिए व्यापक व्यवस्था की है और उसके पास बड़े शिखर सम्मेलनों को आयोजित करने का पुराना तर्जुबा है.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

भारत की जी20 की अध्यक्षता मोदी सरकार का सबसे महत्वपूर्ण कूटनीतिक पहल है. संगठन का शिखर सम्मेलन, इसकी अध्यक्षता का चरम बिंदु है जो इस हफ्ते के आखिर में नई दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है.

पिछले साल 1 दिसंबर को जब इंडोनेशिया ने समूह की मशाल (जो रोटेशनल है) भारत को सौंपी, तब से यह बिल्कुल साफ हो गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार की उपलब्धियों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने दर्शाने के लिए जी20 की अध्यक्षता का इस्तेमाल करेंगे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
साथ ही, वह इसका राजनीतिक उपयोग करके, भारतीय जनता को एहसास दिलाना चाहते हैं कि उनकी कूटनीति ने भारत की वैश्विक स्थिति को कितना बढ़ाया है. इसके साथ-साथ वह जी20 के मूल स्वरुप पर एक अमिट छाप छोड़ने के लिए तैयार थे.

चूंकि शिखर सम्मेलन शुरू होने वाला है, इसलिए यह सोचा जाना चाहिए कि क्या मोदी ने अपने दो मकसद हासिल किए हैं? और जी20 शिखर सम्मेलन की कामयाबी की क्या संभावनाएं हैं?

जी20 के बारे में जागरूकता बढ़ी

विभिन्न राज्यों में विभिन्न स्तरों पर और विभिन्न मुद्दों पर जी20 बैठकें आयोजित करके मोदी ने एक नया नजरिया पेश किया. आमतौर पर ऐसी बैठकें राजधानियों या एक या दो प्रमुख शहरों में आयोजित की जाती हैं. हालांकि कुछ लोगों ने संशकित होकर कहा कि भारत के विभिन्न इलाकों में जी20 सदस्य देशों के मध्यम या वरिष्ठ अधिकारियों की बैठकें कराने का तर्क क्या था, लेकिन सच्चाई यह है कि इस प्रक्रिया ने कई भारतीयों को जी20 के बारे में पहले के मुकाबले ज्यादा अधिक जागरूक बनाया है.

इस पर कुछ विदेशी पर्यवेक्षकों का ध्यान गया. वाशिंगटन डीसी में सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआईएस) में यूएस-भारत नीति अध्ययन के अध्यक्ष रिक रोसो ने 30 अगस्त को एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा, "... बहुत सारे भारतीय नागरिक और मतदाता वैश्विक मुद्दों से उतने वाकिफ नहीं, इसलिए मुझे लगता है कि इस विषय को पूरे देश में फैलाने से उन्हें फायदा हुआ.''

मोदी सरकार ने इस बात का भी प्रचार किया कि अध्यक्षता हासिल होना अपने आप में एक उपलब्धि है, और भक्तों के अलावा कुछ दूसरे लोगों ने इस बात को माना. हालांकि जैसा कि पहले भी जिक्र किया गया है, यह रोटेशनल होती है यानि एक चक्र में एक देश से दूसरे देश को अध्यक्षता जाती है.

दिलचस्प है कि भारत की तरफ से जी20 अधिकारियों को देश के विभिन्न हिस्सों में ले जाने पर रोसो ने यह भी कहा, “मुझे लगता है कि भारत के हिसाब से कुल मिलाकर जी20 वर्ष असल में उसकी उम्मीदों पर खरा उतरा है. वह जी20 की कई बैठकों को देश के अलग-अलग कोनों में लेकर गया. देश के उन हिस्सों में विकास के कई मुद्दों को पहुंचाया. इस तरह उसने भारत की सांस्कृतिक विविधता को उजागर किया, जिन पर शायद ही उतना ध्यान दिया जाता."

ये शब्द मोदी सरकार के कानों में मिश्री घोलेंगे, लेकिन जी20 की अध्यक्षता पर अंतिम फैसला तब आएगा, जब भारत एक सफल शिखर सम्मेलन आयोजित करे. न सिर्फ आयोजन के लिहाज से, बल्कि उसका नतीजा भी ठोस हो.

पुतिन और शी, दोनों की गैरमौजूदगी, भारत की वैश्विक छवि को प्रभावित करेगी

भारत ने शिखर सम्मेलन के लिए व्यापक व्यवस्था की है और उसके पास बड़े शिखर सम्मेलनों को आयोजित करने का पुराना तर्जुबा है. यह सच है कि उसने पहले कभी भी दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों के नेताओं की किसी बैठक का आयोजन नहीं किया है, जैसा कि जी20 के साथ है. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि सम्मेलन बिना किसी गलती के आयोजित हो जाएगा, यानी उसकी लॉजिस्टिकल व्यवस्था में कोई चूक नहीं होगी. हालांकि ठोस नतीजे समस्याएं खड़ी करेंगे.

कई भारतीय विश्लेषकों को उम्मीद थी कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेंगे. यह कयास सही साबित हुआ. दूसरी तरफ चीन ने अब आधिकारिक तौर पर घोषणा की है कि प्रधानमंत्री ली कियांग उसके प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे.

पश्चिमी खेमे को तसल्ली है, वरना पुतिन की मौजूदगी में उन्हें मुश्किल विकल्प चुनने पड़ते, जबकि भारतीय राजनयिक शी जिनपिंग की गैरमौजूदगी को लेकर अपनी दलीलें दे रहे हैं. वे कह रहे हैं कि पहले भी कई नेता जी20 शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुए हैं.

हालांकि उन्हें पता होगा कि टॉप चीनी नेता की गैरमौजूदगी कोई मामूली बात नहीं है. पुतिन और शी के बिना, केवल प्रमुख पश्चिमी देशों का शीर्ष नेतृत्व ही मौजूद रहेगा और यह पक्की तौर से जी20 शिखर सम्मेलन की विश्वव्यापी धारणा को प्रभावित करेगा.

हालांकि बाली घोषणापत्र में यूक्रेन युद्ध और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर उसके प्रभाव वाले पैराग्राफ पर रूस और चीन ने जिस तरह विरोध जताया था, इससे उस पर कोई असर नहीं होगा.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

यूक्रेन युद्ध और अन्य नतीजे

ऐसी भी खबरें हैं कि जो शेरपा लंबे समय से दिल्ली घोषणापत्र पर काम कर रहे हैं, उन्हें कुछ रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है, चूंकि यूक्रेन से इतर मामलों पर भारतीय सिफारिशों पर चीन ने नाराजगी जताई है. एग्रीमेंट्स के आउटकम डॉक्यूमेंट और अध्यक्ष की समरी, जो मंत्रिस्तरीय बैठकों में उपलब्ध थी, अब शिखर सम्मेलन के दस्तावेजों में शामिल नहीं हैं. इसके अलावा, भले ही भारत अध्यक्षता का समरी मैथड अपना भी ले, तो भी यह शर्मनाक होगा कि इसे रूस और चीन नामंजूर कर दें.

इसमें कोई शक नहीं है कि मोदी एक साफ-सुथरा दिल्ली घोषणापत्र चाहेंगे और उम्मीद कर सकते हैं कि विद्वान और काबिल भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर इसे पूरा करेंगे, भले ही शेरपा, अमिताभ कांत, जो एक राजनयिक नहीं हैं, ऐसा नहीं कर सकते.

अगर जयशंकर इस मौके का फायदा उठाते हैं और सर्वसम्मति से दिल्ली घोषणापत्र सुनिश्चित करते हैं, तो भारत के सबसे कामयाब विदेश मंत्री के रूप में उनकी स्थिति पक्की हो जाएगी.

अगर वह ऐसा नहीं कर पाते, तो इसकी वजहें ढूंढी जाएंगी, लेकिन यह निश्चित रूप से उनकी छवि को नुकसान पहुंचाएगा, भले ही परिवार के वफादार ऐसा न मानें.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या भारत ग्लोबल साउथ का एक कामयाब नुमाइंदा बन सकता है?

भारत आर्थिक मसलों पर ग्लोबल साउथ का हिमायती बनेगा. अमेरिका और पश्चिमी सदस्य जितना भी दावा करें, लेकिन जैसा कि पहले भी हुआ है, वे नतीजे नहीं दे पाएंगे.

भारत इस बात पर जोर दे रहा है कि वह ग्लोबल साउथ और विकसित विश्व के बीच एक पुल बन सकता है- यह एक सराहनीय प्रस्ताव है लेकिन मजदूर संगठनों और मालिकों, दोनों का हिस्सा एक साथ नहीं बना जा सकता. खासकर, अगर कोई मौजूदा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में बड़ी भूमिका चाहता हो, जैसा कि भारत का इरादा है.

हां, भारत ग्लोबल साउथ के देशों की तरफ इसलिए ध्यान खींचना चाहता है क्योंकि उसने विकास के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया है. इससे विश्वसनीयता बनी रहेगी लेकिन यह विकसित विश्व के नजरिए और निहित स्वार्थों को नहीं बदलेगा.

स्वाभाविक रूप से, सभी लोगों, और इस लेखक की भी, तमन्ना है कि जी20 शिखर सम्मेलन सफल रहे, क्योंकि इससे भारत का कद बढ़ जाएगा.

(लेखक विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव (पश्चिम) हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @VivekKatju है. यह एक ओपिनियन पीस है, और इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए ज़िम्मेदार है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×