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राफेल डील पर सोमवार को एक और खुलासा हुआ है. इससे जुड़ी द हिंदू की एक और रिपोर्ट में कहा गया है कि फ्रांस के साथ हुई इस डील के समझौते पर दस्तख्त करने से चंद दिन पहले ही सरकार ने इसमें भ्रष्टाचार के खिलाफ पेनाल्टी से जुड़े अहम प्रावधानों को हटा दिया था.
द हिंदू की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार के दखल के बाद अनुचित ढंग से सौदे को प्रभावित करने , एजेंट और एजेंसी के कमीशन और दसॉ और एमबीडीए फ्रांस के अकाउंट के खातों तक पहुंच पर जुर्माने से संबंधित स्टैडर्ड डिफेंस प्रॉक्यूरमेंट प्रोसिजर यानी DPP के प्रावधानों से सौदे को छूट दे दी गई थी. इस कदम से मोदी सरकार के कथित भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों को एक और झटका लगा है. 2014 में मोदी सरकार यूपीए सरकार के कथित भ्रष्टाचारों को निशाना बना कर सत्ता में आई थी.
द हिंदू के पास जो सरकारी दस्तावेज हैं, उससे जाहिर होता है कि पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अगुआई वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद यानी DAC ने सितंबर 2016 में समझौते, सप्लाई प्रोटोकल, ऑफसेट कांट्रेक्ट और ऑफसेट शेड्यूल में आठ बदलावों का समर्थन किया था और इन्हें मंजूर किया था. और यह सब पीएम मोदी की अगुआई में रक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक में समझौते और इससे जुड़े दस्तावेजों को मंजूरी देने के बाद हुआ.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने 2013 की DPP शर्तों पर राफेल डील साइन की थी. लेकिन इसने पेनाल्टी, अनुचित प्रभाव. इंटग्रिटी पैक्ट और एजेंट/एजेंसी से जुड़े कमशीन और खातों तक पहुंच से जुड़े प्रावधान इस सौदे से हटा दिया और कुछ में बदलाव भी किए. सरकार ने उस क्लॉज को भी हटा दिया जिसमें कहा गया था कि दोनों कंपनियों को पेमेंट के लिए फ्रांस सरकार एक एस्क्रॉ अकाउंट ऑपरेट करेगी.
इससे पहले द हिंदू ने ही एक रिपोर्ट में खुलासा किया था कि राफेल विमानों के लिए पीएमओ ने डिफेंस मिनिस्ट्री की आपत्तियों को दरकिनार कर पैरेलल सौदेबाजी की थी.
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