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सरकार ने आरटीआई एक्ट में संशोधन की तैयारी कर ली है. मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के वेतन और सेवाओं पर नियम तय करने के लिए इस एक्ट में संशोधन किया जाएगा. कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि संसद के मौजूदा सत्र में पारित करने के मकसद से सूचना के अधिकार (संशोधन) विधेयक-2018 को राज्यसभा में पेश करने के लिए आशय पत्र दिया जा चुका है.
प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक सूचना आयुक्तों के लिए वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें केंद्र के निर्देश पर तय होंगी. कई आरटीआई कार्यकर्ताओं ने इस प्रस्तावित संशोधन का विरोध किया है. उनका कहना है कि इस संशोधन का मकसद सूचना आयुक्तों के ओहदे को कम करना है.
आरटीआई एक्ट में सरकार के प्रस्तावित संशोधनों से विपक्षी दलों और सूचना के अधिकार के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं में खलबली है. इन्हें डर है कि सरकार इन प्रस्तावों से आरटीआई एक्ट को कमजोर कर सकती है. सरकार की ओर से केंद्रीय और राज्यों के सूचना आयुक्तों की स्वायत्तता को कमजोर करने की कोशिश से यह आशंका और बढ़ गई है.
बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक संसद सदस्यों के बीच सूचना के अधिकार के संशोधित बिल की जो प्रतियां बांटी गई हैं, उनमें केंद्र और राज्यों के सूचना आयोगों की स्वतंत्रता की सुरक्षा खत्म करने की बात है. फिलहाल केंद्र और राज्य, दोनों जगह सूचना आयुक्तों के वेतन और उनके कार्यकाल को संवैधानिक संरक्षण मिला हुआ और उनका दर्जा केंद्र के मुख्य चुनाव आयुक्त और आयुक्तों के बराबर है. राज्यों के चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल और वेतन को भी यही दर्जा हासिल है.
संशोधन बिल के मुताबिक मुख्य चुनाव आयुक्त, सूचना आयुक्तों और राज्यों के मुख्य सूचना आयुक्तों और आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें केंद्र के निर्देश पर तय हो सकती है. इसमें यह भी कहा गया है कि केंद्र और राज्यों दोनों जगहों के सूचना आयोग पांच साल के बजाय केंद्र सरकार के निर्देश के आधार पर तैनात होंगे.
इन संशोधनों के बारे में आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज ने ट्वीट कर कहा
केंद्र, वामपंथी और दूसरे विपक्षी दलों ने कहा है कि वह इस बिल का विरोध करेंगे. लोकसभा में एनडीए का बहुमत होने की वजह से सरकार को इस बिल को लेकर दिक्कत नहीं आएगी. लेकिन राज्यसभा में उसकी राह में अड़चनें आ सकती हैं क्योंकि वहां इसे साधारण बहुमत भी हासिल नहीं है.
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