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राज्यसभा में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले ने कहा है कि भारत में पिछले पांच सालों में हाथ से मैला ढोने (Manual Scavenging) से कोई मौत रिपोर्ट नहीं हुई है. सरकार के जवाब पर हमने मीडिया में छपी ऐसी रिपोर्ट्स को खंगाला तो हमें ऐसे ढेरों मामले में मिले जहां मौत हुई है.
दरअसल राज्यसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार से सवाल किया था कि सरकार बताये मौजूदा समय में कितने लोग हाथ से मैला ढोने का काम कर रहे हैं और पिछले पांच सालों में इस कारण कितने लोगों की मौत हुई है. सरकार ने सच बताने की बजाय आंकड़ों की ओट में अपनी पीठ थपथपाने की कोशिश में ये दावा कर दिया कि हाथ से मैला ढोने से कोई मौत नहीं हुई. राज्यमंत्री रामदास इतनी जल्दी अपना 4 महीने पुराना बयान भूल गये जिसमें उन्होंने कहा था कि पिछले पांच सालों में नालों और टैंकों की सफाई के दौरान 340 लोगों की जान गई है.
हिदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 28 मई को ग्रेटर नोएडा में सीवर टैंक में मैला साफ करने के दौरान एक 21 साल के मजदूर की मौत हो गयी उसे बिना सुरक्षा उपकरणों के टैंक में भेज दिया था.
26 मार्च 2021 को दो मजदूरों की सीवर टैंक साफ करते वक्त मौत हो गयी. ये घटना दिल्ली के गाज़ीपुर की है जहां एक बैक्वट हॉल में बने सीवर की सफाई मशीन की बजाय मजदूरों से करायी और इस दौरान उनकी मौत हो गयी
एनडीटीवी में छपी खबर के मुताबिक अगस्त 2019 गाजियाबाद के पास सीवर टैंक में 5 मजदूरों की मौत हो गयी.
इसी साल मार्च में वाराणसी में भी दो मजदूरों की मौत सीवर टैंक में मैला साफ करने के दौरान हो गयी.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक सितंबर 2018 में दिल्ली के मोतीनगर में सीवर टैंक की सफाई करने में 4 मजदूरों की मौत हो गई. अखबार के पिछले 5 सालों में 340 लोगों की इस काम के दौरान जान चली गयी.
देश में 2013 से हाथ से मैला ढोना बैन है और फिर भी मजदूर सीवर और सेप्टिक टैंक का मैला हाथ से साफ करते हैं और इस घृणित काम के दौरान कई बार टैंक से जहरीली गैस के रिसाव की वजह और सही सुरक्षा उपकरण ना होने से मौत हो जाती है .कानूनी रूप से अवैध होने के बावजूद लोग सीवर के टैंक में एक खास जाति के लोगों से सफाई करवाते हैं. आमतौर पर सस्ती मजदूरी के चक्कर में लोग मजदूरों से ये काम कराते हैं.
इतना ही नहीं सिर पर मैला ढोने पर रोक के बावजूद ये कुप्रथा रुकी नहीं है और खुद सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2020 तक कुल 62904 लोगों की पहचान हो चुकी जो ये काम करते हैं और इसमें सबसे ऊपर उत्तर प्रदेश है.
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