"भारत में पिछले पांच सालों में हाथ से मैला ढोने से कोई मौत नहीं हुई."
ऑक्सीजन के बाद, अब हाथ से मैला ढोने (Manual Scavenging) पर सरकार ने ये जवाब दिया है. राज्यसभा में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले ने एक सवाल के जवाब में कहा कि भारत में पिछले पांच सालों में हाथ से मैला ढोने से कोई मौत रिपोर्ट नहीं हुई है.
बार एंड बेंच के मुताबिक, राज्यसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे लेकर सरकार से सवाल किया था. खड़गे ने पूछा था कि सरकार बताए कि,
मौजूदा समय में कितने लोग हाथ से मैला ढोने का काम कर रहे हैं
पिछले पांच सालों में इस कारण कितने लोगों की मौत हुई है
मैला ढोने वाले कितने लोगों का सरकार द्वारा पुनर्वास हुआ
इनके पुनर्वास के लिए कितना फंड आवंटित किया गया और इसमें से कितना इस्तेमाल हुआ है
उनके पुनर्वास को सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम
इन सवालों के जवाब में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले ने कहा कि कानून (Prohibition of employment as Manual Scavengers and their Rehabilitation Act 2013) के तहत, मैला ढोने पर 6 दिसंबर 2013 से प्रतिबंध लगा है. मैला ढोने में शामिल लोगों की जानकारी 2013 से पहले की है.
अठावले ने जवाब में आगे बताया कि मैला ढोने से कोई मौत रिपोर्ट नहीं की गई है.
यूजर्स ने लिखा- 'ऑक्सीजन के बाद एक और झूठ'
सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने सरकार के जवाब पर सवाल उठाया. यूजर्स ने कुछ दिनों पहले ऑक्सीजन को लेकर हुई मौतों पर सरकार के जवाब का हवाला देते हुए कहा कि सरकार एक बार फिर झूठ बोल रही है.
कुछ दिनों पहले, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने संसद में ऑक्सीजन से हुई मौतों को लेकर चौंकाने वाले लिखित जवाब में कहा था कि ऑक्सीजन की कमी के कारण कोई मौत नहीं हुई. इसपर चौतरफा आलोचना और किरकिरी होने के बाद केंद्र सरकार ने ऑक्सीजन से हुई मौतों पर राज्य सरकारों से डेटा मांगा है.
पांच सालों में मैला ढोने से नहीं हुई कोई मौत?
द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने फरवरी 2021 में लोकसभा में खुद बताया था कि पिछले पांच सालों में सीवर और सेप्टिक टैंक साफ करने के दौरान 340 लोगों की मौत हो गई है.
31 दिसंबर 2020 तक, मैला ढोने से कुल 340 लोगों की मौत हुई थी और 19 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में ये मौतें दर्ज की गई थीं. इसमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश (52), फिर तमिलनाडु (43), दिल्ली (36), महाराष्ट्र (34), हरियाणा (31) और गुजरात (31) में थीं.
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