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गुजरात में निकाय चुनावों में बीजेपी की जीत हैरान करने वाली नहीं है. राज्य को हिंदुत्व की लैब कहा जाता है और अब तक बीजेपी का गुजरात में शासन करीब ढाई दशक का हो चुका है. गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का गृह राज्य भी है.
हैरान करने वाली बात बीजेपी के जीतने का स्तर और कांग्रेस की हार है.
शाम 6.30 तक घोषित किए गए नतीजों के मुताबिक, बीजेपी ने करीब 75 फीसदी म्युनिसिपेलिटी सीटों, 80 फीसदी पंचायत सीटों और 70 फीसदी तालुक पंचायत सीटों पर जीत हासिल कर ली थी.
वहीं, कांग्रेस सिर्फ 15 फीसदी म्युनिसिपेलिटी सीटों, 17 फीसदी जिला पंचायत सीटों और 25 फीसदी तालुक पंचायत सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई थी.
ये नतीजे गुजरात के छह बड़े शहरों में म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन चुनावों के बाद आए हैं. इन चुनावों में भी कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था.
नतीजे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि अगर यही ट्रेंड चलता रहा तो ये गुजरात की राजनीति में एक नए फेज की शुरुआत होगी.
बीजेपी ने लगभग हर जगह जीत दर्ज की है. गांधीनगर, साबरकांठा, महेसाणा, कच्छ की जिला पंचायतों से लेकर केसोड, उंझा, आनंद, दाहोद, महुवा, भरुच, अंकलेश्वर, नडियाद, गांधीधाम, भुज जैसी म्युनिसिपेलिटी तक बीजेपी ने परचम लहराया.
धनानी और चावड़ा का इस्तीफा पार्टी में और बड़ा शून्य पैदा कर देगा.
कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनावों में हैरान करते हुए अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन उसके बाद से पार्टी के कई नेता जैसे कि कुंवरजी बवालिया, जवाहर चावड़ा और अल्पेश ठाकोर बीजेपी में जा चुके हैं. पार्टी को राज्य में एक रखने के लिए मजबूत नेताओं की कमी कांग्रेस की एक बड़ी कमजोरी है.
दूसरी समस्या है मुख्य वोट बेस में कांग्रेस का समर्थन कम होंगे. पार्टी ने OBC का ज्यादातर समर्थन खो दिया है. यहां तक कि 2017 में जो पाटीदार समुदाय कांग्रेस की तरफ झुकता हुआ दिखा था, वो भी अब दूर जाता हुआ लग रहा है. कांग्रेस ने सिक्का और मालिया मियाना जैसी म्युनिसिपेलिटी में अच्छा प्रदर्शन किया है और यहां अच्छी-खासी मुस्लिम पॉपुलेशन है.
चार साल पहले पटेल ने एक वोट से राज्यसभा सीट जीत ली थी. 2017 में कांग्रेस ने जो सीटें जीती थीं, उनसे पटेल की मौत के बाद उस सीट को भरा जा सकता था. लेकिन जब राज्यसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस ने उम्मीदवार खड़ा भी नहीं किया. पार्टी का ये कदम इशारा करता है कि उसने मान लिया था कि उसके पास नंबर नहीं है. नतीजा ये हुए कि अहमद पटेल की सीट अब बीजेपी के पास है.
बीजेपी ने साफ कर दिया था कि वो गुजरात में एक भी इंच कांग्रेस को नहीं देगी. पार्टी ने कांग्रेस नेताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. खासकर सौराष्ट्र जैसे इलाके में जहां 2017 में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था.
बीजेपी ने मीडिया और सोशल मीडिया पर निकाय चुनावों के लिए अपने वादों का बड़ा कैंपेन चलाने के लिए संसाधन झोक दिए थे.
पार्टी ने इन चुनावों में कांग्रेस से ज्यादा खर्च किया, लोग लगाए और अच्छी रणनीति बनाई.
बीजेपी की सोच सिर्फ हराने की नहीं, बल्कि विपक्ष को इस कदर हताश करने की लगती है, जिससे वो लड़ाई में ठहर ही नहीं पाए.
कांग्रेस के लिए और ज्यादा खराब स्थिति ये है कि AAP और AIMIM ने कुछ-कुछ सीटें जीती हैं. इससे कांग्रेस का वोट बेस और कमजोर हो सकता है.
AAP ने सूरत म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में 27 सीटें जीतकर प्रभावी शुरुआत की थी. अब पार्टी ने अपनी पहुंच दूसरे जिलों में भी बना ली है.
शाम 6.30 तक पार्टी ने 9 म्युनिसिपेलिटी, 2 जिला पंचायत और 31 तालुक पंचायत सीटें जीत ली थीं.
AIMIM ने मोदासा जिला पंचायत में 12 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद 9 जीत ली. पार्टी ने गोधरा म्युनिसिपेलिटी में 8 सीटों पर चुनाव लड़ा और 7 जीतीं और एक भरुच म्युनिसिपेलिटी में जीती.
एक और पार्टी जो कांग्रेस के वोट बेस को नुकसान पहुंचा सकती है, वो भारतीय ट्राइबल पार्टी है. ये कांग्रेस के आदिवासी बेस को लुभा सकती है.
कांग्रेस के लिए दुर्भाग्य से ये गुजरात की राजनीति में नए फेज की शुरुआत लगती है, जिसमें बीजेपी पहले से भी ज्यादा ताकतवर है.
ये समझना जरूरी है कि बीजेपी गुजरात में 1998 से शासन कर रही है. कांग्रेस ने राज्य में 35 फीसदी या उससे ज्यादा का अच्छा वोट शेयर बनाए रखा है और निकाय चुनावों के स्तर पर बीजेपी के खिलाफ लड़ती रही है.
लेकिन अब निकाय चुनावों के स्तर पर कांग्रेस का वोट शेयर और उसकी लड़ाई कम होती दिखती है.
वहीं, दूसरी तरफ AAP और AIMIM विपक्ष का वोट भी बांट सकते हैं.
कांग्रेस को गुजरात में बड़ा ओवरहॉल करना पड़ेगा. ऐसी संभावना है कि इस्तीफों का सिलसिला सिर्फ धनानी और चावड़ा पर नहीं रुकेगा और AICC इंचार्ज राजीव सतव पर दबाव और बढ़ेगा.
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