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साल 2002 में हुए गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाली SIT रिपोर्ट के खिलाफ दाखिल याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. ये याचिका गुजरात दंगे में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सासंद एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी की ओर से दाखिल की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने SIT की जांच रिपोर्ट को सही माना है.
बता दें कि ये फैसला जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने सुनाया है.
वहीं जाफरी की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल पेश हुए थे. एसआईटी की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और गुजरात राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता शामिल हुए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने सात महीने पहले जाकिया जाफरी की याचिका पर सुनवाई पूरी करने के बाद 9 दिसंबर 2021 को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
28 फरवरी 2002 को गुजरात में दंगे हुए थे, इसी दौरान अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी में एहसान जाफरी के घर पर भीड़ ने हमला किया और उनकी हत्या कर दी. इस दंगे में करीब 69 लोग मारे गए थे. 69 लोगों में से 39 लोगों के शव मिले लेकिन बाकी 30 शव नहीं मिले जिन्हें सात साल बाद कानूनी परिभाषा के तहत मृत मान लिया गया था.
हिंसा के बाद एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इसी दौरान हिंसा की जांच के लिए एक विशेष जांच दल बनाया गया. करीब 10 साल की जांच के बाद 08 फरवरी 2012 को SIT ने नरेंद्र मोदी और बाकी लोगों को क्लीन चिट देते हुए एक स्पेशल कोर्ट में मामला बंद करने की रिपोर्ट दाखिल की थी.
जिसके बाद एसआईटी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इस मामले में एफआईआर या चार्जशीट दर्ज करने के लिए कोई आधार नहीं मिला.
जाकिया जाफरी का प्रतिनिधित्व कर रहे सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने अपने दलील में कहा था कि एसआईटी ने मामले के महत्वपूर्ण पहलुओं पर जांच नहीं की, जो एक बड़ी साजिश को स्थापित करने के लिए जरूरी था. उन्होंने कपिल सिब्बल ने पुलिस पर सवाल उठाया था.
साल 2002 में गुजरात में सांप्रदायिक दंगे हुए. तीन दिन तक चले सांप्रदायिक दंगों में करीब 2000 लोगों की मौत हो गई थी. ये दंगे गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगाए जाने के बाद भड़के थे. यह ट्रेन कारसेवकों से भरी थी. इस आग में 59 कारसेवकों की जलकर मौत हो गई थी.
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