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Ramadan में हैदराबाद के चारमिनार की हलीम क्यों खास है?क्या है इसका इतिहास|Photos

धीरे-धीरे पक कर तैयार होने वाली यह चटपटी डिश रमजान में है खास

मीनाक्षी शशि कुमार
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>रमजान के महीने में हलीम के लिए हैदराबाद के चारमीनार में लोगों की भीड़ लगी रहती है</p></div>
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रमजान के महीने में हलीम के लिए हैदराबाद के चारमीनार में लोगों की भीड़ लगी रहती है

(फोटो-Meenakshy Sasikumar/द क्विंट)

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रमजान के महीने में हलीम के लिए हैदराबाद के चारमीनार (Hyderabad Charminar) में लोगों की भीड़ लगी रहती है, चार मीनार की गलियों में रात के 2 बजे तक होती है हलीम की बिक्री. "हलीम" धीमी आंच पर धीरे धीरे पकने वाली एक ऐसी डिश है, जिसमें मीट और कई तरह की दालें मिलाई जाती है और गाढ़े से सूप या स्टू जैसे इसे तैयार किया जाता है. चटपटा और नमकीन हलीम यूं तो मुसलमानों की संस्कृति की खास डिश है, लेकिन रमजान के महीने में इसको ज्यादा खाया और बनाया जाता है.

चिलचिलाती गर्मी की वजह से अप्रैल का महीना हैदराबादियों के लिए कुछ खास नहीं होता है. लेकिन इस महीने में भी अगर कुछ ऐसा है जो उनके उत्साह को बढ़ाता है, तो वह है पुराने शहर के चारमीनार की सड़कों पर टहलना, जहां स्वादिष्ट हलीम की खुशबु सबको अपनी ओर खींच लेती है. 

(फोटो-Meenakshy Sasikumar/द क्विंट)

शेख इकबाल, जो हैदराबाद के सबसे पुराने होटलों में से एक "शादाब होटल" में काम करते हैं, कहते हैं कि- हलीम का एक बैच तैयार करने में कम से कम 4-5 घंटे लगते हैं, हलीम में मीट, गेहूं और कई तरह की दालों का इस्तेमाल करके इसको बनाया जाता है. इसको बनाने में बहुत सारे समय और धैर्य की जरूरत होती है क्योंकि यह धीरे -धीरे पकता है और इसे लगातार चलाते रहना होता है. 

(फोटो-Meenakshy Sasikumar/द क्विंट)

हलीम बनाने के लिए सबसे पहले मीट को मसालों के साथ मिलाकर भुना जाता है और फिर छोटे-छोटे टुकड़ों में मीट को काट दिया जाता है. वहीं गेहूं और दाल को रात भर भिगोया जाता है और फिर एक पेस्ट तैयार करने के लिए उन्हें पीसा जाता है और फिर मीट और मसालों के साथ दाल के पेस्ट को मिलाया जाता है और धीमी आंच पर पकाया जाता है.

हलीम के स्वाद को और बढ़ाने के लिए इसको सर्व करने से पहले तली हुई प्याज, कटी हुई धनिया पत्ती से गारनिश किया जाता है. थोड़ा सा इसको और चटपटा बनाने के लिए इस पर नींबू के रस के निचोड़ा जाता है जो इसके जायके को और बढ़ा देता है. 

(फोटो-Meenakshy Sasikumar/द क्विंट)

शादाब होटल में देर रात तक भीड़ जमा हो जाती है आमतौर पर, हलीम बेचने के लिए चारमीनार में रेस्टोरेंट सुबह 2 बजे तक खुले रहते हैं

(फोटो-Meenakshy Sasikumar/द क्विंट)

हलीम के इतिहास पर नजर डालें तो, हलीम की शुरुआत के संकेत वेस्ट  एशिया से मिलते है. जहां हलीम जैसी ही एक डिश जिसे हरीस  कहा जाता था, बनाई जाती थी जो कि सबको काफी पसंद थी. उसको हरे गेहूं और मीट से तैयार किया जाता था और हलीम की ही तरह इसे भी लंबे समय तक पकाया जाता था, जब तक कि यह गाढ़ी न हो जाए.

बता दें रियासत के छठे निजाम महबूब अली खान के शासन के दौरान अरब व्यापारी इस डिश को  हैदराबाद लेकर आए. लेकिन सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान थे, जिन्होंने हलीम को पारंपरिक हैदराबादी व्यंजनों का हिस्सा बनाया.

(फोटो-Meenakshy Sasikumar/द क्विंट)

चारमीनार के पास होटल नायाब के मालिक शुजैद कहते हैं, "हम सुबह-सुबह मीट तैयार करना शुरू कर देते हैं. हम इसे 'भट्टियों' (ईंट और मिट्टी के ओवन) में बनाते हैं. दोपहर तक हम इसे ग्राहकों को बेचना शुरू कर देते हैं." शुजैद कहते हैं कि हलीम में स्वाद को बढ़ाने के लिए कोई सबसे जरूरी समाग्री है तो वो है मीट, मीट और मीट, बाकी सब कुछ सिर्फ मीट के साथ मिलकर स्वाद को बढ़ाता है."

(फोटो-Meenakshy Sasikumar/द क्विंट)

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लेकिन सवाल उठता है कि ऐसा क्या है जो रमजान के दौरान हलीम को इतना खास बनाता है?

चारमीनार के ठीक बगल में स्थित इकबाल रेस्टोरेंट के एक वर्कर ने द क्विंट को बताया कि हलीम का एक कटोरा इतना भारी होता है कि एक कटोरा हलीम ही रोजा तोड़ना के लिए काफी होता है.

(फोटो-Meenakshy Sasikumar/द क्विंट)

इकबाल रेस्टोरेंट के मालिक, मोहम्मद मोहसिन, कहते हैं कि- अभी रमजान के शुरुआती दिन हैं, इसलिए हलीम का कारोबार अभी हल्का है. यह आमतौर पर पहले कुछ दिनों में काफी धीमा रहता है." उनका कहना है कि उनका रेस्टोरेंट ज्यादातर 'स्पेशल चिकन हलीम' बेचता है, जो वो न केवल रमजान के दौरान बल्कि पूरे साल भी बेचते है

(फोटो-Meenakshy Sasikumar/द क्विंट)

सैयद अनस ने क्विंट को बताया कि उन्होनें पहली बार चारमीनार में हलीम का स्टॉल लगाया है. अरेबियाना रेस्टोरेंट के मालिक अनस ने अपना बिजनेस शुरू करने के लिए आईटी सॉल्यूशन आर्किटेक्ट की नौकरी छोड़ दी. अरेबियाना के हलीम के बारे में वह कहते हैं, ''हमारी खासियत यह है कि हम क्वालिटी से समझौता नहीं करते. हमारे हलीम में वीट और मीट का अनुपात 1:3 होता है. यानी मीट ज्यादा होता है.और जितना ज्यादा मीट उतना ही ज्यादा गेहूं रखा जाता है.

(फोटो-Meenakshy Sasikumar/द क्विंट)

हलीम का कोई भी  प्रशंसक,कोई भी हलीम का चाहने वाला आपको बताएगा कि हलीम सिर्फ बनावट और स्वाद के बारे में है. हलीम आदर्श रूप से इतना सही से पका हुआ होना चाहिए कि इसमें कोई गांठ या न बने .एक चम्मच मुंह में रखते ही मीट मुंह में घुल जाए.

फोटो में होटल चेन पिस्ता हाउस के कर्मचारी हलीम का टब भरते नजर आ रहे हैं.

(फोटो-Meenakshy Sasikumar/द क्विंट)

स्वाद के अनुसार देखें तो हैदराबाद में बनाया जा रहा हलीम भारतीय स्वाद के लिए परफेक्ट है,थोड़ा सा चटपटा और तीखा. बता दें,समय के साथ हलीम में मसालों और मुख्य अनाज को शामिल किया जाने लगा.

फोटो में पिस्ता हाउस के कर्मचारी हलीम की पैकिंग और बिक्री में व्यस्त हैं. होटल के बाहर  हलीम की बिक्री के लिए रेस्टोरेंट अक्सर एक अलग जगह बना लेते है,एक तरफ हलीम अंदर तैयार होता रहता है और दूसरी तरफ बिक्री होती रहती है.

(फोटो-Meenakshy Sasikumar/द क्विंट)

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