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बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर ने फूड प्रोसेसिंग के केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. कौर का इस्तीफा नरेंद्र मोदी सरकार के खेती से संबंधित विधेयकों के खिलाफ हुआ है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कौर का इस्तीफा मंजूर कर लिया है.
इन विधेयकों का पंजाब और हरियाणा में जमकर विरोध हो रहा है. किसान आशंका जता रहे हैं कि ये कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) व्यवस्था को हटाने की तरफ एक कदम है.
हरसिमरत का इस्तीफा हैरान करने वाला है क्योंकि अकाली दल ने पहले इन विधेयकों पर केंद्र का बचाव किया था.
यहां तीन सवाल महत्वपूर्ण हैं:
एक महीने से भी कम समय पहले अकाली दल के कार्यकारी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाया था. बादल का कहना था कि दोनों पार्टियां किसानों से कह रही हैं कि ये विधेयक MSP खत्म कर देंगे. बादल ने उस लेटर को भी सार्वजानिक किया, जिसमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि MSP को छुआ भी नहीं जाएगा.
तो क्या बदल गया?
लेकिन तब से अब तक पंजाब में प्रदर्शन तेज हो गए हैं. कुछ गांवों ने ऐलान कर दिया है कि जो पार्टी विधेयकों का समर्थन करेंगी, उनके नेताओं की एंट्री बंद कर दी जाएगी.
किसानों के प्रदर्शनों को पंजाबी समाज के कई वर्गों का समर्थन मिल गया है. यहां तक कि एक्टर-सिंगर दिलजीत दोसांझ ने भी किसानों का समर्थन किया है.
अकाली दल परेशान इस बात से भी है कि इन विधेयकों के खिलाफ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी बढ़-चढ़कर बोल रही हैं. अकालियों पर सवालों की बौछार हो रही थी और वो इनका जवाब नहीं दे पा रहे थे कि हरसिमरत कौर ने कैबिनेट में इसके खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाई.
अकाली दल को मुख्य रूप से ग्रामीण सिख वोटरों का समर्थन रहता है. लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में किसानों ने अकालियों के खिलाफ निर्णायक रूप से वोट किया. बठिंडा, मनसा और बरनाला जैसे कॉटन-बेल्ट जिलों में गुस्सा सबसे ज्यादा था.
ये जिले मालवा क्षेत्र के हिस्से हैं. ये क्षेत्र सतलज के दक्षिण और यमुना नदी के उत्तर में पड़ता है. मालवा पारंपरिक रूप से मौजूदा प्रदर्शन समेत किसान आंदोलनों का गढ़ रहा है.
अकाली दल इस क्षेत्र में फिर से खुद को मजबूत करना चाहता है. केंद्र के विधेयकों के खिलाफ जाना इसका ही हिस्सा लगता है.
हरसिमरत कौर के इस्तीफे के पीछे एक वजह और हो सकती है. एक मर्डर और किडनेपिंग केस में फंसे पूर्व डीजीपी सुमेध सैनी के मामले में भी अकाली दल की आलोचना हो रही है. सैनी को बादल का करीबी माना जाता है और उन्हें बरगाड़ी अपवित्रीकरण और बहबल कलां फायरिंग मामले के मुख्य विलेन के तौर पर देखा जाता हैं. पंजाब में सैनी की गिरफ्तारी की मांग तेज हो गई है और बादल परिवार पर दबाव था. इस इस्तीफे की वजह विश्वसनीयता वापस पाना हो सकता है.
शिवसेना के निकलने के बाद अकाली दल बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी बची है. दोनों पार्टियों का गठबंधन 1997 से है, जब दोनों ने मिलकर पंजाब में सरकार बनाई थी. नरेंद्र मोदी उस समय बीजेपी के राज्य इंचार्ज थे और गठबंधन बनाने में उनकी भूमिका अहम रही थी.
लेकिन ये गठबंधन पिछले कुछ समय से दिक्कत में है. और ये सुखबीर सिंह बादल के पार्टी कमान संभालने के बाद और ज्यादा बढ़ गया है. दोनों पार्टियां कई मुद्दों पर आमने-सामने आ चुकी हैं:
हालांकि, अकाली दल NDA छोड़ेगा या नहीं, इस बारे में कुछ भी कोर कमेटी की बैठक के बाद ही कहा जा सकता है.
खेती संबंधी विधेयक चुनाव से पहले पंजाब के राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं.
बीजेपी के ग्रामीण पंजाब में पैठ बनाने के सपने को भारी झटका लग सकता है. अल्पसंख्यक-विरोधी' और 'किसान-विरोधी' तमगा मिलने से बीजेपी पर सिर्फ शहरी हिंदू वोटों तक सिमटने का खतरा है. अगर 2017 का चुनाव देखें तो सिर्फ इस वोट बैंक के सहारे भी नहीं बैठा जा सकता है. मौर मंडी ब्लास्ट के बाद इस वोट बैंक का कांग्रेस की तरफ पलायन देखने को मिला था.
बीजेपी अकाली दल के साथ अपने समीकरण बदलने और ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के सपने देख रही थी, लेकिन इस कदम से ये भी दिक्कत में आ गया है.
मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का कार्यकाल ठीकठाक ही रहा है. सिंह की सरकार पर बरगाड़ी अपवित्रीकरण और बहबल कलां फायरिंग में कुछ न करने के आरोप लगे हैं. शुरुआत में सरकार ने किसानों के मुद्दे पर कुछ अच्छा काम किया था लेकिन अब वो भी नहीं भुनाया जा सकता है.
केंद्र के विधेयकों के खिलाफ गुस्सा कांग्रेस के लिए अच्छा मौका है. लेकिन इसमें भी पार्टी में तकरार चल रही है कि नेतृत्व कौन करेगा. अभी तक अमरिंदर सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ नेतृत्व कर रहे थे, लेकिन फतेहगढ़ साहिब के विधायक कुलजीत नागरा ने विधेयकों के खिलाफ इस्तीफा देकर आगे आने की कोशिश की है. वो पार्टी हाई कमांड के भी करीबी हैं.
AAP इन विधेयकों के खिलाफ काफी मुखर हो रही है. 2017 में पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें कृषि संकट से जूझ रहे मालवा क्षेत्र से मिली थीं.
इस समय संगरूर के सांसद भगवंत मान विधेयकों के मुद्दे पर पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं.
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