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हरियाणा बेरोजगारी (Haryana Unemployment Data) के मामले में नंबर 1 है. CMIE (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनामी) के जनवरी 2023 के आंकडों के मुताबिक हरियाणा में बेरोजगारी दर 37.4 फीसदी है जो देश में सबसे ज्यादा है. पिछली रिपोर्ट भी यही तस्वीर पेश कर रही थी. सवाल है कि कृषि के मामले में एक अमीर राज्य नौकरी के मामले में इतना पिछड़ कैसे गया है? जिस राज्य में रोजगार के लिए बिहार-झारखंड, ओडिशा से मजदूर आते हैं वो खुद रोजगार में कैसे फिसड्डी हुआ. हरियाणा में एक तरफ कृषि है तो दूसरी तरफ गुरुग्राम-फरीदाबाद जैसे इंडस्ट्रियल हब भी हैं. तो भी रोजगार की इतनी किल्लत की वजह क्या है?
फतेहाबाद जिले के राजीव जोली कहते हैं कि "मैं कई बार सरकारी नौकरियों के लिए पेपर दे चुका हूं. या तो पेपर लीक हुआ है या फिर भर्ती का ही कोई पता नहीं चला है. ऐसे में मैंने सरकार से नौकरी की उम्मीद छोड़ दी है. क्योंकि ये सरकार नौकरी खा सकती है लेकिन दे नहीं सकती. ये वादे बडे-बड़े करती है लेकिन पूरा नहीं करती."
यमुनानगर जिले के सुफियान खान कहते हैं कि "मेरी उम्र अब 35 साल से ज्यादा हो चुकी है और पिछले 8 साल से सरकारी नौकरी के लिए पेपर दे रहा हूं. लेकिन सरकारी की ढुलमुल नीति और भर्तियों के कोर्ट में पहुंचने से आयु सीमा भी धीरे-धीरे निकलती जा रही है. ठेके पर नौकरी मिलना भी मुश्किल हो गया है."
जींद के निशांत शर्मा का कहना है कि "इस सरकार में बिना पर्ची-खर्ची के नौकरी मिली है जो पहले की सरकारों में नहीं मिलती थी. अब तो आप दिल से मेहनत कीजिए नौकरी आपके द्वार है."
अगर पड़ोसी राज्य हिमाचल, पंजाब, उत्तराखंड और राजस्थान का जिक्र करें तो भी बेरोजगारी के ग्राफ में हरियाणा के आगे कोई नहीं टिकता. हिमाचल में बेरोजगारी 7.6% जबकि पंजाब में 6.8% युवाओं के पास कोई रोजगार नहीं है. हरियाणा से सटे उत्तराखंड में बेरोजगारों की संख्या 4.2% है.
हालांकि राजस्थान में बेरोजगार युवाओं की जमात अच्छी-खासी है. राजस्थान में बेरोजगारों की तादाद 28.5 फीसदी है. ऐसे में ये आंकड़ा बताने के लिए काफी है कि इन राज्यों की सरकारें युवाओं के लिए कितनी फिक्रमंद हैं. चुनावों के वक्त अपने मेनिफेस्टो में बड़े-बड़े वादे करके सत्ता पर आसीन तो होतीं हैं लेकिन युवाओं को रोजगार देने में कितनी विफल रहती है, ये बताने के लिए CMIE के आंकड़े काफी हैं.
वरिष्ठ पत्रकार धर्मपाल धनखड़ का कहना है कि आज के दौर में बच्चे लगातार पढ़ाई की तरफ ध्यान दे रहे हैं, ऐसे में उन्हे नौकरी नहीं मिल रही है और पढ़े-लिखे युवा बेरोजगारी की लाइन में खड़े हो रहे हैं. उन्होने बताया कि हरियाणा में नई फैक्ट्रियां नहीं आ रही हैं, नए रोजगार के साधन नहीं आ रहे हैं. बीते 8 साल में प्रदेश में विदेशी निवेश ना के बराबर आया है. उन्होंने आगे बताया कि बेरोजगारी तो पहले भी थी लेकिन अब बेरोजगारी का स्तर बढ़ गया है. हजारों करोड़ रुपए का निवेश करना पड़ता है और सिर्फ 200 लोगों को ही नौकरियां मिल पाती हैं. उनका दावा है कि इस सरकार में सरकारी नौकरियां बेहद की कम युवाओं को मिल पाई हैं.
किसी भी राजनीतिक दल के लिए बेरोजगारी उनके ज्वलंत मुद्दों में शामिल होता है. लेकिन ये मुद्दा सिर्फ राजनीतिक रोटियां सेंकने के ही काम आता है. हरियाणा के मुख्यमंत्री CMIE के आंकड़ों को नहीं मानते. उनका तर्क है कि ये सर्वे एजेंसी कांग्रेस की बी टीम है. और 50 या 100 लोगों का सर्वे करके अपनी रिपोर्ट बनाती है.
मुख्यमंत्री बताते हैं कि 2014 में हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनने के बाद करीब 50 हजार लघु, मध्यम ईकाइयां लगी हैं. जिनमें करीब 33 लाख लोगों के लिए नौकरी के अवसर पैदा हुए हैं. CM मनोहर लाल ने कहा कि हर युवा को सरकारी नौकरी नहीं दी जा सकती. 1 साल में औसतन 20 हजार नई नौकरियां ही मिलती हैं. मुख्यमंत्री ने ये भी दावा किया है कि ग्रुप सी में 36 हजार नौकरियां निकाली जाएंगी, जिसमें 6 हजार पुलिस की भर्ती भी शामिल होंगी.
बेरोजगारी के इस संवेदनशील मुद्दे पर हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा लगातार आवाज उठाते रहे हैं. भूपेंद्र हुड्डा ने कहा कि महीना बदलता है, साल बदलता है,कैलेंडर बदलता है लेकिन गठबंधन सरकार का रिकॉर्ड नहीं बदलता है.
पूर्व शिक्षा मंत्री और झज्जर से मौजूदा विधायक गीता भुक्कल का कहना है कि बीजेपी कहती कुछ और है और इनका एजेंडा कुछ और होता है. ये सभी सरकारी संस्थानों को प्राइवेट करने जा रहे हैं. कौशल रोजगार के तहत तो सरकार भर्तियां निकाल रही है लेकिन रेगुलर भर्ती में कहती है कि वेकैंसी नहीं है. गीता भुक्कल ने कहा कि सरकार की नीयत में खोट है. वो पैसे बचाकर विज्ञापन पर खर्च करना चाहती है, जो युवाओं के साथ भद्दा मजाक है.
साल 2023 हरियाणा के इन युवाओं के बेहतर भविष्य के लिए अच्छा है, जो कड़ी मेहनत से रोजगार पाना चाहते हैं. क्योंकि 2024 में लोकसभा और फिर उसी साल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में सरकार इस साल को गोल्डन ईयर बनाना चाहती है. क्या ऐसा सच में सरकार कर पाएगी ये तो साल का अंत ही बताएगा.
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