Janab Aise Kaise: न्यूज एंकर्स की हेट स्पीच पर कब लगेगी लगाम?

Janab Aise Kaise अदालत ने भी पूछा है कि टीवी न्यूज से फैलने वाली नफरत पर केंद्र सरकार मूकदर्शक क्यों है?

शादाब मोइज़ी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>Janab Aise Kaise: नफरत की पत्रकारिता का 'विष-लेषण', हेट स्पीच पर लगाम कब ?</p></div>
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Janab Aise Kaise: नफरत की पत्रकारिता का 'विष-लेषण', हेट स्पीच पर लगाम कब ?

(ग्राफिक्स- क्विंट हिंदी)  

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आज 'ब्लैक एंड भगवा' में हम पत्रकारिता के मूल को ब्रेक करने का 'विष-लेषन' करेंगे.

ये 'बिरयानी जिहाद' क्या है? ईद पर सेवइ, बिरयानी, दिवाली में सोनपापड़ी, छठ में ठेकुआ खाने क्यों हिंदू मुसलमान एक दूसरे के घर जाते हैं? क्या ये एकता जिहाद है?

आज हम आपको सबसे पहले दो पहलू बताएंगे

पहली बात आखिर ये भारतीय बिरयानी खाना क्यों चाहते हैं.. क्या इसके पीछे 'ललचाना जिहाद' मकसद है?

बड़ा सवाल ये भी है और आप सोचिएगा, कई लड़के मां बाप को बिना बताए चोरी छिपे बिरयानी खाने क्यों जा रहे हैं, क्या आवश्यकता है?

आप सोच रहे होंगे कि ये सब क्या था? क्या इस तरह से पत्रकार करते हैं, दरसल ये बातें एक नाट्य रूपांतरण थी लेकिन सच इससे ज्यादा अलग नहीं है. इसलिए हम आज नफरत की पत्रकारिता का विश्लेषण करेंगे.

दरअसल अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने नफरती भाषण के मुद्दे पर टीवी चैनलों को कड़ी फटकार लगाई थी. लेकिन उस फटकार का असर होता नहीं दिख रहा है.

जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने 11 रिट याचिकाओं की सुनवाई की थी, जिसमें हेट स्पीच को रोकने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है. याचिकाओं में सुदर्शन न्यूज टीवी पर "यूपीएससी जिहाद" शो, धर्म संसद में दिए गए भाषण, जैसे मुद्दों को उठाया गया था. जस्टिस जोसेफ ने मौखिक रूप से कहा,

" राजनीतिक दल आएंगे-जाएंगे, लेकिन इसका असर असल में पूरा देश झेलता है. देश की संस्थाएं झेलती हैं. पूरी तरह से स्वतंत्र प्रेस के बिना, कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता."

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने न्यूज एंकरों के लिए एक खास बात कही थी, "जहां तक ​​मुख्यधारा के टेलीविजन चैनल का सवाल है, हम अभी भी कहते हैं, वहां एंकर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जैसे ही आप किसी को हेट स्पीच में जाते हुए देखते हैं, यह एंकर का कर्तव्य है कि वह तुरंत देखें कि वह उस व्यक्ति को आगे कुछ भी कहने के लिए अनुमति ना दे."

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कमाल देखिए अदालत जिस हेट स्पीच को रोकने के लिए एंकर की भूमिका अहम बता रही है, वो एंकर खुद हेट स्पीच के टॉर्च बियरर बने हुए हैं. कौन समाज को कितना बांट सकता है, नफरत फैला सकता है इस रेस में हैं.

हद देखिए, एक एंकर टीवी स्क्रीन पर ‘देश नहीं झुकने देंगे’ का डायलॉग देते हैं और फिर देश को झुकाने की हर कोशिश कर रहे हैं. गुजरात के खेड़ा में कथित तौर पर 10 मुसलमान पुरुषों को पुलिस सरेआम पीटती है और एंकर उस कानून के मजाक बनने को गुजरात पुलिस का डांडिया कह रहे हैं.

आप न्यूज़ चैनल और ऐंकर की चालाकी देखिए, अपनी खबर में प्रश्न चिन्ह, विस्मयादिबोधक चिह्न, और क्वोट का इस्तेमाल करते हैं, ताकि अपनी बात कह भी दी और जब सवाल उठे तो कह देंगे हमने तो बस सवाल पूछा था. हमने प्रश्न का चिन्हा लगाया था, हमने तो विस्मयादिबोधक चिन्ह लगाया था.

अभी हाल ही में बीजेपी सांसद परवेश वर्मा ने दिल्ली में एक समुदाय विशेष के बहिष्कार की मांग की.

आप खुद सोचिए, नेताओं के भड़काऊ बयान और हिंदू फेस्टिवल में मुसलमानों का क्या काम कहने वाले एंकर में क्या फर्क है? ये नफरती नेक्सस नहीं तो और क्या है? कितने एंकर ने इस नफरती भड़काऊ बयान पर एक्शन की बात कही, कितने प्राइम टाइम हुए? अहम सवाल ये भी है कि क्यों पुलिस ऐसे लोगों पर खुद एक्शन नहीं ले रही है?

अदालत ने भी पूछा है कि टीवी न्यूज से फैलने वाली नफरत पर केंद्र सरकार मूकदर्शक क्यों है? लेकिन सवाल ये भी है कि क्यों अदालत बिना देर किए कोई निर्देश, आदेश नहीं दे रही है? अब एंकर अगर राजनीति दल, नफरत और हिंसा फैलाने वाले संगठन के प्रवक्ता बनेंगे तो हम पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?

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