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उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए गैंगरेप मामले को लेकर सबसे ज्यादा गुस्सा यूपी पुलिस के खिलाफ दिख रहा है. सोशल मीडिया से लेकर नेताओं की बयानबाजी तक में यूपी पुलिस सवालों के घेरे में है. 14 सितंबर को 20 साल की युवती के साथ गैंगरेप होता है और उसे बुरी तरह से पीटा जाता है, यहां तक कि उसकी हड्डियां तक तोड़ी जाती हैं. लेकिन पुलिस ने आखिर तक इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया. पीड़िता के भाई का कहना है कि जब अधमरी हालत में उसकी बहन पत्थर पर लेटी थी तो थाने के एसएचओ ने कहा कि ये नौटंकी कर रही है.
दरअसल हाथरस में हुई इस हैवानियत को लेकर पुलिस पर सवाल इसलिए खड़े हो रहे हैं, क्योंकि पुलिस खुद अपने बचाव में बयान बदल रही है. वहीं पुलिस ने समय रहते न तो आरोपियों को गिरफ्तार किया और न ही बालात्कार का मामला दर्ज किया गया.
अगर पुलिस पर आरोपों की बात करें तो सबसे पहले परिवार के लोगों ने ही पुलिस पर उंगली उठाई. ये घटना 14 सितंबर को हुई थी और मीडिया में करीब 28 सितंबर को आई. लेकिन 14 सितंबर से लेकर 28 सितंबर तक परिवार को काफी कुछ झेलना पड़ा. परिवार का आरोप है कि जब पुलिस को इस मामले की जानकारी दी गई तो तुरंत कार्रवाई करने की बजाय परिवार और युवती पर ही सवाल खड़े किए गए. पीड़िता के भाई ने एसएचओ की बदसलूकी को लेकर बताया कि उसने दर्द में कराह रही उसकी बहन को कहा कि वो नौटंकी कर रही है.
इसके बाद प्रशासन ने एसएचओ पर कई भी बड़ी कार्रवाई नहीं की है. बताया गया था कि एसएचओ को लाइन हाजिर किया गया.
अब दूसरा सवाल प्रशासन और पुलिस पर ये उठता है कि आखिर पीड़िता की हालत जब इतनी गंभीर थी कि वो कई दिनों तक होश में भी नहीं आ पाई तो उसे बेहतर इलाज क्यों नहीं दिया गया. आखिर क्यों पीड़िता को करीब 12 दिनों तक हाथरस के ही हॉस्पिटल में रखा गया. जहां न तो उचित इलाज की गारंटी थी और न ही बेहतर डॉक्टरों की. करीब डेढ़ हफ्ते बाद जब पीड़िता की हालत ज्यादा बिगड़ने लगी और तमाम लोग उचित इलाज की मांग करने लगे तो प्रशासन ने पीड़िता को दिल्ली रेफर कर दिया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. पीड़िता ने 15 दिनों बाद दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया.
यूपी पुलिस की लापरवाही और पीड़िता को बेहतर इलाज नहीं मिलने को लेकर तमाम नेताओं ने भी सवाल उठाए हैं. अखिलेश यादव से लेकर भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ऐसे ही गंभीर सवाल उठा चुके हैं. वहीं अब कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी एक वीडियो जारी कर कहा है कि कई दिनों तक पीड़ित परिवार की आवाज को नहीं सुना गया. उन्होंने कहा,
अब एक और गंभीर सवाल पुलिस पर पीड़िता की मौत के बाद उठने लगा. जब पीड़िता का शव परिवार को नहीं सौंपा गया तो काफी हंगामा हुआ. तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने सफदरजंग हॉस्पिटल में इसे लेकर प्रदर्शन किया. लेकिन यूपी पुलिस ने आधी रात को करीब ढ़ाई बजे पीड़िता के शव को एक सुनसान जगह पर ले जाकर अंतिम संस्कार कर दिया. लेकिन इस दौरान परिवार के कोई भी लोग वहां मौजूद नहीं दिखे.
एक पिता को अपनी बेटी को मुखाग्नि देने का भी मौका नहीं दिया गया. मीडिया पहुंची तो पुलिस जवाब देने से कतराने लगी. जब आरोप लगे तो, पुलिस इससे सीधा मुकर गई और कहा गया कि परिवार की मौजूदगी में तमाम रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार हुआ. अब सवाल उठता है कि क्या प्रशासन ने अपने स्तर पर ही ये फैसला ले लिया या फिर सरकार की तरफ से ऐसा करने के निर्देश जारी हुए थे.
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