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उत्तर प्रदेश के हाथरस में 14 सितंबर 2020 को 19 साल की युवती के साथ कथित तौर पर गैंगरेप (Hathras Gang-Rape-Murder) होता है और उसे बुरी तरह से पीटा जाता है, जीभ काटी गयी, यहां तक कि उसकी हड्डियां तक तोड़ी जाती हैं. परिवार ने आरोप लगाया था कि पुलिस को मामला दर्ज करने में करीब 7 दिन लगे. 15 दिन बाद मौत से जंग लड़ने के बाद पीड़िता ने दिल्ली के हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया तो पुलिस पर जबरन अंतिम संस्कार करने के आरोप लगे.
इसके लगभग ढाई साल बाद इस मामले में कोर्ट का फैसला आया है. 4 में से 3 आरोपी बरी हो गए हैं.
आपको शुरू से बताते हैं आज से ढाई साल पहले हाथरस में क्या कुछ हुआ था जिसने पूरे देश को सन्न कर दिया था.
दिल्ली से करीब 200 किमी दूर उत्तर प्रदेश के हाथरस में 14 सितंबर को एक 19 साल की युवती के साथ हैवानियत की घटना हुई. पीड़िता ने खुद बयान दिया कि उससे मारपीट की गयी और उसके साथ कथित तौर पर गैंगरेप किया गया. यहां तक कि उसकी जीभ काट दी गई और हड्डियां तोड़ी गईं. लेकिन इन सबके बावजूद यूपी पुलिस पर उदासीन बने रहने का आरोप लगा.
परिवार ने आरोप लगाया कि जब पुलिस को इस मामले की जानकारी दी गई तो तुरंत कार्रवाई करने की बजाय परिवार और युवती पर ही सवाल खड़े किए गए. पीड़िता के भाई के अनुसार स्थानीय SHO ने दर्द में कराह रही उसकी बहन को कहा कि वो नौटंकी कर रही है.
अब दूसरा सवाल प्रशासन और पुलिस पर ये भी उठा कि आखिर पीड़िता की हालत जब इतनी गंभीर थी कि वो कई दिनों तक होश में भी नहीं आ पाई तो उसे बेहतर इलाज क्यों नहीं दिया गया. 11 दिनों तक उसे हाथरस के ही जेएन मेडिकल कॉलेज में रखा गया था.
आखिर में दबाव बढ़ने पर प्रशासन ने पीड़िता को दिल्ली रेफर कर दिया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. पीड़िता ने 15 दिनों बाद दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया.
पुलिस पर पीड़िता की मौत के बाद एक और गंभीर सवाल उठने लगा. परिवार ने आरोप लगाया कि उनकी बेटी का शव परिवार को नहीं सौंपा गया. आनन-फानन में स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने पीड़िता के शव का परिजनों की मर्जी के बिना दाह संस्कार कर दिया.
इस सनसनीखेज मामले में प्रशासन के रवैये से सिर्फ पीड़िता के परिजनों ही नहीं पूरे देश में आक्रोश था. हालांकि स्थानीय पुलिस ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए अपने बयान में कहा था कि दाह संस्कार परिवार के अनुसार ही हुआ है.
इस संवेदनशील मामले में हाथरस के तत्कालीन स्थानीय प्रशासन और आला अधिकारियों द्वारा कथित रूप से किए जा रहे गैर जिम्मेदाराना रवैया के आरोपों के बीच यह पूरा मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. सीबीआई ने पीड़िता द्वारा दिया गया डाईंग डिक्लेरेशन को मुख्य साक्ष्य मानते हुए इस पूरे मामले में 4 अभियुक्तों के खिलाफ दिसंबर 2020 में चार्जशीट दाखिल की. सीबीआई ने स्थानीय पुलिस द्वारा जांच में किये गए कथित टाल-मटोल को भी अपनी केस डायरी का हिस्सा बनाया.
मौजूदा एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार ने 2020 में घटना की जांच के दौरान मेडिकल परीक्षण पर अपना बयान देते हुए कहा था की जमा किए गए सैंपल्स के परीक्षण में कोई भी स्पर्म या शुक्राणु नहीं पाए गए जो रेप या गैंगरेप की पुष्टि करता हो.
केरल के पत्रकार सिद्दिक कप्पन इस खबर को कवर करने हाथरस जा रहे थे, तभी उन्हें 3 लोगों के साथ 5 अक्टूबर 2020 को रास्ते से गिरफ्तार किया गया था. उनके ऊपर आरोप लगाया कि वे शांति भंग करने के इरादे से हाथरस आए थे. कप्पन के जेल जाने के बाद, उनपर UAPA और देशद्रोह की धाराओं के तहत दूसरी FIR दर्ज की गई थी. 2 साल बाद जेल में गुजारने के बाद कप्पन हाल ही में जमानत पर बाहर आये हैं.
विपक्षी पार्टियों ने भी योगी सरकार पर इस मामले को दबाने का आरोप लगाया. हाथरस केस के पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को पुलिस ने यमुना एक्सप्रेस-वे पर गिरफ्तार कर लिया था. परिवार से मिलने पहुंचे राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया जयंत चौधरी और उनके समर्थकों पर स्थानीय पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था.
ढाई साल बाद आए फैसले पर मृतका के परिवार ने असंतुष्टि जताई है. मृतका की भाभी ने कहा है कि जबतक इंसाफ नहीं मिल जाता, ढाई साल से रखी अस्थियों का विसर्जन नहीं होगा. महिला संबंधी इस संवेदनशील मामले में पुलिस की उदासीनता को सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में भी दर्ज किया था. क्या यही कारण है यह मामला साक्ष्य के अभाव में कोर्ट में कमजोर पड़ गया?
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