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घर में बंद महिलाएं एक और भी जंग लड़ रही हैं, HC से केंद्र को नोटिस

लॉकडाउन में उत्तर भारत में ज्यादा हो रही महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा

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लॉकडाउन के दौरान बढ़ीं घरेलू हिंसा की घटनाएं
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लॉकडाउन के दौरान बढ़ीं घरेलू हिंसा की घटनाएं
(प्रतीकात्मक फोटो: iStock)

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लॉकडाउन में जब पूरा देश कोरोना वायरस से लड़ रहा है तो महिलाएं एक और जंग लड़ रही हैं. दिल्ली हाईकोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान बढ़ती घरेलू हिंसा से संबंधित एक याचिका पर केंद्र, दिल्ली सरकार और अन्य को नोटिस भेजे हैं. कोर्ट ने राष्ट्र महिला आयोग और दिल्ली महिला आयोग से इस बारे में स्टेट्स रिपोर्ट के साथ जवाब मांगा है.

हाईकोर्ट से तुरंत मदद की गुहार

याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट से कोविड-19 के चलते लागू लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा और बाल उत्पीड़न को रोकने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया गया है. जस्टिस जे आर मिढा और जस्टिस ज्योति सिंह की पीठ ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा दिल्ली सरकार और महिला आयोगों को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है.

एनजीओ ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ ह्यूमन राइट्स, लिबर्टीज एंड सोशल जस्टिस की याचिका पर पीठ ने मुद्दे की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित करने को कहा है और सुनवाई की अगली तारीख 24 अप्रैल तय की है
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उत्तर भारत में ज्यादा हो रही घरेलू हिंसा

राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक लॉकडाउन लागू होने के बाद 24 मार्च से  1 अप्रैल तक  महज 9 दिनों में करीब 69 शिकायतें दर्ज कराई गई हैं और ये एक के बाद एक बढ़ते जा रही हैं. एक-दो शिकायतें तो  आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा के निजी ईमेल पर भी आएं हैं.

घरेलू हिंसा की शिकायतें ज्यादातर उत्तर भारत से मिली है, इनमें दिल्ली, यूपी और पंजाब राज्य की शिकायतें सबसे अधिक हैं. घर बैठे पुरुष तनाव के कारण अपनी भड़ास महिलाओं पर निकाल रहे हैं.
रेखा शर्मा, अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग

संयुक्त राष्ट्र ने भी कहा-बढ़ी घरेलू हिंसा


हाईकोर्ट जाने वाले एनजीओ ने अपनी याचिका में कहा है कि घरेलू हिंसा और बाल उत्पीड़न की घटनाएं न सिर्फ भारत में, बल्कि ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में भी बढ़ी हैं. ये बात दरअसल संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी कही है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक कोरोनावायरस के बढ़ते प्रकोप के बीच अरब क्षेत्र में महिलाओं व लड़कियों को घरेलू हिंसा और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और उनकी स्थिति और खराब हो गई है. संयुक्त राष्ट्र की इकोनॉमी एंड सोशल कमीशन फॉर वेस्टर्न एशिया (ईएससीडब्ल्यूए) की एक नई पॉलिसी ब्रीफ में इस बात की जानकारी दी गई है.

वर्तमान में जारी लॉकडाउन के बीच विश्व और अरब क्षेत्र में घरेलू हिंसा में वृद्धि हुई है. ऐसा माना जा रहा है कि लागू लॉकडाउन में जारी क्वारंटाइन, आर्थिक तनाव, खाद्य असुरक्षा और वायरस (कोविड-19) के संपर्क में आने की आशंका के कारण महिलाओं के साथ हिंसा की घटना में तेजी देखने को मिल रही है
रोला दशति, एग्जीक्यूटिव सेक्रेटरी, ESCWA

सबसे चिंता की बात ये है लॉकडाउन में घरेलू हिंसा या उत्पीड़न होने पर महिलाओं को बाहर से मदद मांगने में भी दिक्कत हो रही है.

महिलाओं की सेहत को लेकर भी सवाल

भारत समेत कई देशों में अक्सर महिलाओं को ये हक नहीं होता कि वो अपने गर्भधारण का फैसला ले सकें. लॉकडाउन के दौरान जब कंडोम और गर्भनिरोधक पर सप्लाई चेन का असर पड़ा है तो महिलाएं अनचाहे गर्भ की परेशानी झेल सकती हैं. फैसले लेने का अधिकार न हो तो इसका क्या असर होता है. असर यह होता है कि औरतों की सेहत प्रभावित होती है. यूनिसेफ का कहना है कि दुनिया भर में 15 से 19 साल की लड़कियों की मौत का सबसे बड़ा कारण गर्भावस्था और प्रसव से जुड़ी समस्याएं होती हैं.

कंडोम और दूसरे गर्भनिरोधक अधिकतर एशिया में मैन्यूफैक्चर होते हैं. बहुत सी चीनी कारखाने बंद हैं और बहुत से कारखाना मजदूरों को घर पर रहकर काम करने को या कम घंटे काम करने को कहा गया है. बहुत से कॉन्ट्रासेप्टिव सप्लायर्स अपनी पूरी क्षमता भर काम नहीं कर पा रहे. डीकेटी जैसे फैमिली प्लानिंग प्रॉडक्ट्स और सेवा प्रदाता ने म्यांमार में स्टॉक आउट की खबर दी है.

लान्सेट ग्लोबल हेल्थ जैसे संगठन का कहना है कि मातृत्व मृत्यु के 4.7% से 13.2% मामलों का कारण असुरक्षित गर्भपात है. विश्व में प्रति एक लाख जीवित जन्म पर मातृत्व मृत्यु दर 211 है.

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Published: 18 Apr 2020,11:36 PM IST

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