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हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने केंद्र सरकार को राज्य में संभावित जोशीमठ (Joshimath) जैसी जमीन धंसने की चेतावनी दी है और "व्यापक तबाही" को रोकने के लिए संवेदनशील क्षेत्रों पर ध्यान देने का आग्रह किया है. क्विंट की टीम मंडी के कुछ गांवों में पहुंची, जहां वाकई में सीएम की चेतावनी सच होती दिख रही है.
दिल्ली में आयोजित भारत मौसम विज्ञान विभाग के 148वें स्थापना दिवस समारोह के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुक्खू ने कहा, "जैसा कि जोशीमठ में हुआ है, हिमाचल प्रदेश में भी ऐसे कई क्षेत्र हैं जो धीरे-धीरे भू-धंसाव का अनुभव कर रहे हैं. अगर सही समय पर सही समाधान और उपाय नहीं किए गए, तो व्यापक तबाही हो सकती है."
उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने के हाहाकार की आहट अब हिमाचल में भी सुनाई देने लगी है. यहां मंडी जिले के तीन गांवों पर खतरा मंडरा रहा है. आलम ये है कि लोगों की जमीन पर चौड़ी-चौड़ी दरारें आ गई हैं. वहीं घर भी फटने शुरू हो गए हैं. ये दरारें कब तबाही का रूप ले लें कोई नहीं जानता.
मंडी जिला की सराज घाटी में नागानी, थलौट और फागू गांव में 60 से 80 बीघा जमीन धंस रही है. यहां घरों में दरारें आने से लोग दहशत में हैं. जमीन में कही आधा फीट से तो कहीं इससे भी गहरी दरारें पड़ गई हैं. लोगों का कहना है कि शायद ये खतरा इतना नहीं होता अगर प्रशासन पहले जाग जाता और फोरलेन प्रोजेक्ट कंपनी की मनमानी रुक जाती तो शायद ये दिन नहीं देखना पड़ता.
बता दें कि इस खतरे को देखते हुए बैठक के दौरान हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने केंद्रीय विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह से आपदा प्रबंधन से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए हिमाचल प्रदेश आने का अनुरोध किया है. मुख्यमंत्री ने कहा,
लोगों का कहना है फोर लेन निर्माण में जरूरत से ज्यादा कटिंग की गई. पूरी की पूरी पहाड़ी काट दी गई. लोगों का कहना है कि खतरा पहले से था लेकिन अब दो दिन से ये दरारें ज्यादा बढ़ रही हैं.
लोगों का आरोप है कि फोरलेन कटिंग से कई लोग बेघर हो चुके हैं. दरारें बढ़ने के कारण कुछ घरों को खाली करा दिया गया है. लिहाजा पीड़ितों का कहना है कि वे अपना सबकुछ छोड़कर आखिर कहां जाएं. अपने बच्चों को लेकर कहां जाएं. उनकी सारी कमाई उनके घरों पर लग गई और अब ना घर है, ना पैसा. बहते हुए आंसुओं के साथ ग्रामीण कहते हैं कि तीन टीमें उनके गांवों का दौरा कर चुकी हैं और मुआवजे का आश्वसन भी दिया लेकिन अभी तक उन्हें एक पैसा तक नहीं मिला.
कीरतपुर-मनाली हाइवे का काम 2018-19 में शुरू हुआ था. गांव वालों का कहना है तब गांव के हालात सामान्य थे. लिहाजा जैसे-जैसे फोरलेन का काम बढ़ने लगा तो दरारें आनी शुरू हो गईं. गांव वालों के मुताबिक सबसे पहले दरारें 2020 के बाद आनी शुरू हुई थीं. और अब ये दरारें काफी गहरी होने के साथ साथ और चौड़ी होती जा रही हैं. आपको बता दें कि फोरलेन का काम पूरा होने की अवधी 2024 तक है.
बहते आंसुओं के साथ फांगू गांव की महिलाओं चमारी और साइना ने बताया कि घर लगभग तबाह हो चुका है और बारिश में भी ये खतरा बना रहता है. ऐसे में पड़ोसी लोग भी यहां से चले जाने को कहते हैं. चमारी देवी कहती हैं -
''मैंने सारी उम्र यहां बिताई है अब बुढ़ापे में आखिर कहां जाऊं. वहीं साइन का कहना है कि घर टूट चुका है और परिवार में पांच बच्चे हैं. ऐसे में बच्चों को लेकर कहां जाएं.''
गांव की इस हालत को लेकर जब क्विंट ने ADM मंडी से बात की तो उन्होंने गांवों में खतरे की बात को माना. उन्होंने कहा कि पहाड़ी कटने से घरों में दरारें आई हैं. ADM ने बताया की टीमों ने करीब 10 गांव का दौरा किया है और तीन से चार घरों में ज्यादा दरारें आई हैं. ADM ने बताया कि टीम जांच कर रही है, अभी रिपोर्ट आना बाकी है और उसी के बाद साफ तौर पर कुछ भी कहा जा सकता है.
जानकारी के मुताबिक गांव के आस पास NTPC की नौ सुरंगें बनी हैं और इन सुरगों के निर्माण के लिए विस्फोटकों का इस्तेमाल किया गया है. स्थानीय लोगों का दावा है कि इन धमाकों से सारा इलाका दहल चुका है, जमीन फट चुकी है और घरों की नींव भी कच्ची हुई है.
धंस रहे मंडी के तीन गांव तो एक तरफ हैं लेकिन दूसरी तरफ राजधानी शिमला का ऐतिहासिक रिज मैदान भी सुरक्षित नहीं है. शिमला भी जोशीमठ जैसे हालातों के साथ खड़ा है और अपने बोझ तले दब रहा है. यहां रिज मैदान का एक हिस्सा भी धंस चुका है. इसके अलावा लक्कड़ बाजार और लद्दाखी मोहल्ला का कुछ इलाका भी खतरे में हैं. कई भूवैज्ञानिक सर्वे में इन्हें असुरक्षित घोषित कर चुके हैं. वन कटाव और जल निकासी की सही व्यवस्था ना होना इसका मुख्य कारण माना जा रहा है.
चंबा के झरौता गांव में जोशीमठ की तरह घरों की दीवारें तिरछी हो गई हैं, सीढ़ियां टेढ़ी हो गई हैं और जमीन धंस गई है. झरौता गांव शिमला से करीब 400 किलोमीटर दूर है. झरौता गांव के लोग बेहद परेशान हैं और उजड़ने की आशंका के बीच जीने को विवश हैं. दरअसल यहां पिछले साल बिजली परियोजना की एक सुरंग के कारण झरौता घरों में दरारें आ गई थी. घटना को एक साल बीत जाने के बाद भी कोई ग्रामीणों के जख्मों पर मरहम लगाने को तैयार नहीं है. चंद नेताओं और स्थानीय प्रशासन की टीम के अलावा इस गांव के लोगों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.
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Published: 16 Jan 2023,08:36 PM IST