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हिंदी दिवस: ‘मेरे गांव की किरही गढ़ही में सारी बनमुर्गियां’

Hindi Diwas: 'मूसलाधार बारिश के बाद मेरे गांव की किरही गढ़ही में'

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>हिंदी दिवस: ‘मेरे गांव की किरही गढ़ही में सारी बनमुर्गिया’</p></div>
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हिंदी दिवस: ‘मेरे गांव की किरही गढ़ही में सारी बनमुर्गिया’

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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साल 1949 में 14 सितंबर को संविधान सभा में एक मत से हिन्दी (Hindi) को राजभाषा घोषित किया गया था. इसके बाद साल 1953 से भारत में 14 सितंबर हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. हिंदी दिवस पर पढ़िए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्र विकास गोंड की कविता, जिसका शीर्षक है ‘किरही गढ़ही’

मूसलाधार बारिश के बाद

मेरे गांव की किरही गढ़ही में

सारी बनमुर्गियां

एक साथ झूम कर गाती है

उत्सव के गीत

जंगली जलेबी और आम

के पेड़ पर लगे कच्चे फलों को

बच्चे मार रहे हैं

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एक बूढ़ा व्यक्ति

इनकी करता है रखवाली ज़माने से,

 

मेरे गांव की किरही गढ़ही में

जलकुंभी के फूल खिले हैं

जिनसे बच्चे खेल तो सकते है

लेकिन गढ़ही में काग़ज़ की नाव नहीं चला सकते,

कुछ बच्चे खेत में

गेहूं के बाल बिनने गए हैं,

कटाई के बाद जो खेतों में रह गए थे

उसमें से निकले गेहूं को बेचकर

खरीदेंगे चूरन, जिससे जीभ लाल होता है,

और कर देंगे लाल पूरी दुनिया को

अपनी जीभ की तरह!

तोड़ देंगे उन सभी बंधनों को

जो प्रेम के विरुद्ध स्थापित किए गए हैं,

किसी गेहूं की बाल की तरह.

- विकास गोंड, छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय

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