Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019गांव से शहर तक कैसे बदल जाते हैं देश को जोड़ने वाली हिंदी के मायने

गांव से शहर तक कैसे बदल जाते हैं देश को जोड़ने वाली हिंदी के मायने

हिंदी भाषा देश के नेताओं के लिए एक चोले की तरह रही है, जिसे जरूरत पड़ने पर ओढ़ लिया जाता है

क्विंट हिंदी
भारत
Published:
हिंदी भाषा देश के नेताओं के लिए एक चोले की तरह रही है, जिसे जरूरत पड़ने पर ओढ़ लिया जाता है
i
हिंदी भाषा देश के नेताओं के लिए एक चोले की तरह रही है, जिसे जरूरत पड़ने पर ओढ़ लिया जाता है
(सांकेतिक तस्‍वीर: iStock)

advertisement

हिंदी एक ऐसी भाषा है, जिसे भारत में सबसे ज्यादा बोला जाता है, इसीलिए इसे राज भाषा का दर्जा मिला है. लेकिन इस भाषा को साल में सिर्फ एक दिन याद किया जाता है. 14 सितंबर को हर साल नेता और अन्य तथाकथित बुद्धिजीवी हिंदी पर एक लंबा चौड़ा भाषण लिखकर आते हैं और लोगों की तालियां बटोरने की कोशिश करते हैं. इसके बाद हिंदी को पूछने वाला कोई नहीं होता, यही कारण है कि अंग्रेजी जैसी "एलीट" भाषा के सामने हिंदी हाशिए पर खिसकती हुई दिखती है.

भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में कुल 22 भाषाएं हैं, जिन्हें देशभर के अलग-अलग हिस्सों में बोला जाता है. जिनमें से सबसे ज्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषा हिंदी है. 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में कुल 43.63% लोग हिंदी भाषा बोलते हैं.

लेकिन इस बदलते भारत में हिंदी के मायने भी बदलते जा रहे हैं. हिंदी भाषा और इसे बोलने वालों को वो सम्मान नहीं मिल पा रहा है, जो कभी हमारे समाज सुधारकों, साहित्यकारों और धर्म गुरुओं ने इसे दिया था.

शहरों में कैसे बदल जाते हैं हिंदी के मायने

देशभर के कई राज्य ऐसे हैं जहां पर हिंदी भाषा का ही सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है. लोग गर्व से इस भाषा का इस्तेमाल करते हैं और इससे आपसी मेलजोल भी बना रहता है. लेकिन शहरों में आते ही हिंदी के मायने भी बदल जाते हैं. यहां की चमचमाती सड़कों और फर्राटा भरती मेट्रो में हिंदी भाषा की बेबसी रोजाना दिख जाती है.

ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि शहरों का यही नया ट्रेंड है. गांव से आए गरीब युवाओं को लगता है कि हिंदी उनकी ताकत है, लेकिन शहर में पहुंचते ही क्यों वो हिंदी को अपनी कमजोरी समझने लगते हैं? क्योंकि यहां अगर भीड़ में अंग्रेजी में पूछे गए सवाल का जवाब अगर किसी ने हिंदी में दे दिया तो सैकड़ों नजरें उसे वहीं शर्मसार करने में जुट जाती हैं.

एक कहावत है कि "निज भाषा का जो नहीं करते सम्मान, वे कहीं नहीं पाते हैं सम्मान", लेकिन आजकल बिल्कुल भी ऐसा नहीं है. अगर आपको हिंदी काफी अच्छी आती है, लेकिन अंग्रेजी नहीं आती तो, आपको खुद ही ये शहर वाला समाज खुद से दूर करने लगेगा. क्योंकि अब भाषा को भी क्लास में बांटा जाने लगा है, अगर आप फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं तो आपकी क्लास काफी हाई होगी, वहीं अगर आप सिर्फ हिंदी बोलते हैं तो क्लास गिरना तय है. अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन ये सब दिखता नहीं है, सिर्फ महसूस होता है और बिना बोले तय हो जाता है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हिंदी-अंग्रेजी के दो पाटों में पिसने को मजबूर

इसीलिए हिंदी और अंग्रेजी भाषा के दो पाटों के बीच आज हजारों लोग पिस रहे हैं. जिस छात्र के ग्रुप में सब लोग अंग्रेजी में बोलते हैं और वो हिंदी भाषी राज्य से आया है तो उसमें खुद ही एक हीन भावना पैदा हो जाती है, इसके लिए वो खुद को कोसता है कि उसने क्यों अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाई नहीं की. ऐसा ही उन महिलाओं के साथ भी होता है, जिनकी सहेलियां अंग्रेजी को क्लास के तौर पर इस्तेमाल करती हैं, वहीं दफ्तरों में, हिंदी में काम करने के लिए इंटरव्यू के दौरान अंग्रेजी में पूछे गए सवालों से, भीड़ में गलती से किसी के पैर पर पैर पड़ने के बाद अंग्रेजी की भारी भरकम गालियों से भी हिंदीभाषियों के दिलों में टीस उठती है.

नेताओं के लिए सिर्फ एक चोला

अब नेताओं की बात कर लेते हैं. जो हिंदी दिवस नजदीक आते ही एक बेहतरीन भाषण की तैयारी करना शुरू कर देते हैं. इस भाषण में हिंदी के काफी भारी शब्दों का इस्तेमाल होता है, जिससे सुनने वालों को ये लगे कि नेता जी हिंदी के जानकार हैं और इसका सम्मान करते हैं. लेकिन दरअसल देश के नेताओं ने भी हिंदी पर इतना ध्यान नहीं दिया, जितना उन्हें देना चाहिए था. इसके प्रति लोगों की दिलचस्पी बढ़े, ऐसा कोई भी ठोस काम नहीं हुआ.

नेताओं के लिए भी हिंदी एक ऐसे चोले की तरह है, जिसे वो मौका आने पर स्त्री करते हैं और पहन लेते हैं. लेकिन हिंदी पर बढ़ते अंग्रेजी भाषा के प्रभाव को रोकने के लिए भी कोई प्रयास नहीं किए गए.

कुछ ऐसे भी नेता हैं, जो भाषा के नाम पर भी लोगों को बांटने की कोशिश करते हैं. हिंदी भाषा को देश की भाषा नहीं बल्कि हिंदुओं की भाषा बता दिया जाता है. ऐसा समझा जाता है कि इसे भारत के लोगों पर थोपा जा रहा है. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है, हिंदी ने हमेशा पूरे हिंदुस्तान को जोड़ने का काम किया है.

आखिर किसकी गलती?

अब आप ये भी सोच रहे होंगे कि हिंदी बोलने वाला या वाली अगर अपने मन में हीन भावना लाता है तो ये उसकी गलती है. लेकिन ये सिर्फ उसकी गलती नहीं हैं. उसे ऐसा सोचने और करने पर मजबूर किया गया. उसने जब शहरों में आकर देखा तो समाज को दो हिस्सों में बंटा हुआ पाया. क्योंकि उसे यहां पर बराबरी का हक कभी नहीं दिया गया. भले ही उसने लाख कोशिशें की हों, लेकिन उसे कभी जगह नहीं दी गई.

लेकिन हिंदी दिवस पर अगर सभी लोग समाज को दो हिस्सों में बांटने की बजाय अगर एक साथ चलने का प्रण लें तो सबको बराबरी का हक मिल सकता है. हिंदी बोलने वालों का सम्मान कीजिए और उन्हें कभी भी ये सोचने पर मजबूर मत कीजिए कि वो अलग समाज का हिस्सा हैं.

क्योंकि अगर आप उनका साथ देंगे अगर आप हिंदी का साथ देंगे तो ये आपको हमेशा एक दूसरे से जोड़कर रखेगी. हिंदी और उसके अपनेपन की ताकत तो अंग्रेजों ने भी स्वीकार कर ली थी. अंग्रेज शासन के दौरान जब अंग्रेजी और फारसी से जनता और सरकार में संवाद की परेशानी आई तो कंपनी सरकार ने फोर्ट विलियम कॉलेज में हिन्दुस्तानी विभाग खोलकर अधिकारियों को हिंदी सिखाने की व्यवस्था की. जिसके बाद कई अंग्रेज अधिकारियों ने हिंदी की तारीफ की थी और कहा था कि ये एक ऐसी भाषा है जिसे हिंदुस्तान के हर कोने में बोलने और समझने वाला मिल जाता है. जार्ज ग्रियर्सन ने हिंदी को 'आम बोलचाल की महाभाषा' कहा था. जो भारतीय भाषा विज्ञान के काफी बड़े प्रचारक थे.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT