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दिल्ली के बुराड़ी में रविवार, 3 अप्रैल को 'हिंदू महापंचायत' का आयोजन हुआ था, जिसमें धर्म विशेष के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिए गए साथ ही दक्षिणपंथी समूह ने दो अलग-अलग घटनाओं में कई पत्रकारों पर हमला किया. अब इस मामले पर पुलिस ने प्रेस रिलीज जारी किया है. दिल्ली पुलिस के मुताबिक 'हिंदू महापंचायत' में भड़काऊ बयानबाजी करने के मामले में डासना मंदिर का पुजारी यति नरसिंहानंद समेत कई वक्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.
दिल्ली पुलिस के मुताबिक हिंदू महापंचायत सभा नाम के कार्यक्रम के लिए सेव इंडिया फाउंडेशन नाम की संस्था के प्रीत सिंह ने इजाजत मांगी थी, जिसे पुलिस ने इंकार कर दिया था. पुलिस का कहना है कि कार्यक्रम के लिए पुलिस ने इजाजत इसलिए नहीं दी थी क्योंकि बुराड़ी ग्राउंड में सभा के लिए डीडीए से इजाजत नहीं मिली थी, इसके बावजूद 700-800 लोग कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे और कई वक्ताओं ने भड़काऊ भाषण दिए.
बता दें कि इस कार्यक्रम को कवर कर रहे छह पत्रकारों के साथ कथित तौर पर मारपीट का मामला भी सामने आया है. पुलिस ने अबतक तीन एफआईआर दर्ज किए हैं.
हिंदू महापंचायत के दौरान हिंसा की दो घटनाएं सामने आई हैं. हमले की एक घटना में भीड़ ने न्यूजलॉन्ड्री की रिपोर्टर शिवांगी सक्सेना और रौनक भाटी निशाना बनाया गया. जिसके बाद न्यूज़लॉन्ड्री की पत्रकार शिवांगी सक्सेना और रौनक भट ने आईपीसी की धारा 354 (महिला का शील भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने की सजा) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है. दूसरी घटना में दो पत्रकारों को पीटा गया और द क्विंट के प्रमुख संवाददाता मेघनाद बोस के साथ भीड़ ने धक्का-मुक्की की गई थी.
बोस के अलावा, दूसरे पत्रकार हैं मीर फैसल, जो हिंदुस्तान गजट में काम करते हैं, फोटो जर्नलिस्ट मोहम्मद मेहरबान, स्वतंत्र पत्रकार अरबाब अली. पुलिस के अनुसार इस घटना के संबंध में आईपीसी की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने की सजा) और 341 (गलत तरीके से रोक लगाने की सजा) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है.
डीसीपी उत्तर पश्चिम दिल्ली उषा रंगिनी के मुताबिक
ट्विटर पर अरबाब अली ने लिखा है कि वो और फैसल महापंचायत में इंटरव्यू ले रहे थे तभी भीड़ ने उनका फोन और कैमरा छीन लिया. अली ने कहा कि "जब मीर और मैंने उन्हें अपना नाम बताया तो उन्होंने हमें जिहादी कहा."
उन्होंने ट्विटर पर लिखा,
आर्टिकल 14 की ओर से कार्यक्रम को कवर करने गए पत्रकार ने कहा कि फैसल और उन्हें भीड़ से बचाने के लिए दो पुलिसकर्मी आए थे, लेकिन असफल रहे. इसके बाद, और पुलिस अधिकारी आए और भीड़ से दोनों पत्रकारों को जबरदस्ती निकाला, और पुलिस वैन में ले गए.
अली ने ट्विटर पर लिखा, "पुलिसकर्मी हम दोनों को धक्का दे रहे थे. हमें नहीं पता था कि वे कौन थे. हमें लगा कि वे भी हिंदू भीड़ का हिस्सा हैं और जल्द ही हम पर हमला करेंगे. हम दोनों का पीछा लगभग 150 दक्षिणपंथियों की भीड़ ने किया. वे हमारा नाम ले रहे थे और कह रहे थे कि वे हमें पीटेंगे."
बोस और एक घायल पत्रकार मेहरबान सहित तीन अन्य पत्रकारों को भी पुलिस वैन में ले जाया गया, जिसके बाद पुलिस उन्हें ले गई.
डीसीपी नॉर्थ-वेस्ट दिल्ली उषा रंगानी ने कहा कि पुलिस रिपोर्टरों को सुरक्षा देने के लिए कार्यक्रम से दूर ले गई थी. उन्होंने अपने एक ट्वीट में कहा, "कुछ रिपोर्टर अपनी मर्जी से भीड़ से बचने के लिए, जो उनकी उपस्थिति से उत्तेजित हो रही थी, कार्यक्रम स्थल पर खड़े एक पीसीआर वैन में बैठ गए और सुरक्षा कारणों से पुलिस स्टेशन जाने का विकल्प चुना. किसी को हिरासत में नहीं लिया गया था और उन्हें उचित पुलिस सुरक्षा प्रदान की गई थी."
इसके अलावा एडिशनल डीसीपी (नॉर्थ वेस्ट) कृष्ण कुमार ने क्विंट को बताया कि रिपोर्टरों को हिरासत में नहीं लिया गया था, बल्कि झड़प के बाद पुलिस स्टेशन ले जाया गया था. उन्होंने दावा किया कि रिपोर्टरों ने खुद पुलिस को वहां से बाहर सुरक्षित रूप से ले जाने के लिए कहा था.
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