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हिंदी भाषा में प्रयोग, इसका विस्तार और इसमें हो रहे बदलाव भाषा प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय रहे हैं. जिस तरह से वक्त के साथ हम अपने आस-पास बदलाव देख रहे हैं, ठीक उसी तरह से भाषा भी हम तक बदले हुए माध्यमों से होते हुए अब डिजिटल माध्यम से पहुंच रही है. रेख्ता फाउंडेशन के उपक्रम हिन्दवी डॉट ओआरजी (hindwi.org) के बैनर तले दिल्ली के साहित्य अकादमी (Sahitya Akademi) के रवींद्र भवन में वेबसाइट के 2 साल पूरे होने पर शनिवार, 30 जुलाई को 'हिन्दवी उत्सव' का आयोजन किया गया.
इस दौरान हिंदी भाषा की रचना में नया क्या हो रहा है इस विषय पर चर्चा हुई. इसमें बतौर मुख्य अतिथि हिंदी के सुप्रसिद्ध लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी (Vishwanath Tripathi) ने शिरकत की.
हिंदी के जाने-माने लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी ने भाषा के विस्तार में तकनीकी को मददगार बताया. उन्होंने कहा कि भाषा आज समय के साथ नए स्वरूप में अपना विस्तार पा रही है, जिसमें तकनीकी का बहुत बड़ा योगदान है. इसके अलावा उन्होंने तकनीकी की चेतावनी का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि तकनीकी के पास बहुत कुछ है मगर सौंदर्य की घुट्टी तकनीकी के पास नहीं है.
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हिन्दवी उत्सव में हिंदी लेखिका गरिमा श्रीवास्तव ने भी शिरकत की और ‘हिंदी भाषा के स्तर पर स्त्री लेखन में क्या नया हो रहा है’ विषय पर चर्चा की. इस दौरान उन्होंने कहा कि मौजूदा वक्त में स्त्री लेखन और स्त्री विमर्श पर खूब साहित्य रचा जा रहा है. यदि मैं यह कहूं कि यह सदी स्त्री लेखन की शादी है तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी.
‘दलित लेखन में नई करवट’ विषय पर लेखक श्यौराज सिंह बेचैन ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का जिक्र करते हुए बात की. इस दौरान उन्होंने कहा कि पहले हम एक दूसरे के दरवाजे तक नहीं जा पाए अब हम पास आए हैं, हजारों सालों के दरवाजे तोड़कर यह एक बदलाव का वक्त है.
‘कविता और भाषा के विस्तार’ पर वर्तमान परिदृश्य पर बात करते हुए हिंदी लेखिका शुभा ने कहा कि कविता और साहित्य का महत्व तब और बढ़ जाता है, जब संस्थागत ढांचे में न्याय की गुहार लगाने वालों को अपराधी साबित किया जा रहा हो और ऐसे वक्त में वे कहती हैं- “करुणा से काम नहीं चलेगा, हमें न्याय चाहिए...सदियों से चुप लोग कविता में बोल रहे हैं.”
इस प्रोग्राम के आखिरी हिस्से में मशहूर लेखक अशोक वाजपेई ने अपनी बात रखी. इस दौरान उन्होंने डिजिटल दुनिया में हो रहे भाषा के प्रसार पर कहा कि जिस तकनीकी का उपयोग भाषा साहित्य और लोकतंत्र को बढ़ाने में किया जाता है, उसी तकनीकी का उपयोग करके लोकतंत्र को घटाने का काम भी किया जा रहा है. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तकनीकी से कविता के लोकतंत्र का विस्तार हुआ है, कविता के भूगोल का विस्तार हुआ है.
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