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रेख्ता फाउंडेशन का हिंदी साहित्य को समर्पित पोर्टल ‘हिन्दवी’ लॉन्च

काव्य संकलनों को पढ़ने के साथ ही सुना भी जा सकता है.

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भारत
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रेख्ता फाउंडेशन ने 31 जुलाई को हिंदी साहित्य पर अपनी नई वेबसाइट 'हिन्दवी' लॉन्च कर दी है. ये वेबसाइट हिंदी भाषा और साहित्य को समर्पित है. रेख्ता फाउंडेशन ने इसे हिंदी के बड़े साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की जन्मतिथि पर लॉन्च किया. इसके लॉन्च कार्यक्रम में नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी चीफ गेस्ट रहे और साहित्यकार अशोक बाजपेयी गेस्ट ऑफ हॉनर के तौर पर मौजूद रहे. काव्य संकलनों को पढ़ने के साथ ही सुना भी जा सकता है.

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रेख्ता फाउंडेशन संजीव सराफ चलाते हैं और ये फाउंडेशन ‘रेख्ता’ नाम की वेबसाइट भी चलाती है. इस पर उर्दू साहित्य का बेहतरीन संकलन मिलता है. ऐसे-ऐसे शायर जो शायद गुमनामी के अंधेरे में चले गए थे, उन्हें ‘रेख्ता’ ने एक बार फिर से ‘जिंदा’ कर दिया. इस वेबसाइट पर इस समय लगभग 1200 उर्दू शायरों की 12000 ग़ज़लें और नज़्में उपलब्ध हैं. ‘रेख्ता’ का दावा है कि वो पहली वेबसाइट है, जिस पर मीर तक़ी मीर और मिर्ज़ा ग़ालिब की सारी ग़ज़ले और कहानीकार सआदत हसन मंटो की सारी कहानियां मौजूद हैं.

रेख्ता फाउंडेशन हर साल राजधानी दिल्ली में 'जश्न-ए-रेख्ता' नाम का एक कार्यक्रम भी कराती है. ये तीन दिन का फेस्टिवल होता है और इसमें उर्दू का जश्न मनाया जाता है.

इसके अलावा रेख्ता फाउंडेशन 'सूफीनामा' और 'आमोज़िश' नाम की दो वेबसाइट और चलाती है. 'आमोज़िश' उर्दू सीखने का एक पोर्टल है.

लॉन्च पर किसने क्या कहा?

रेख्ता फाउंडेशन के चेयरमैन संजीव सराफ ने कहा, "हमारे मन में रेख्ता जैसी वेबसाइट बनाने का सपना था. हिंदी के लिए और भी वेबसाइट हैं लेकिन कोई प्रमाणित नहीं दिखतीं. पाठकों को सामान्य साधनों से काम चलाना पड़ता है. मेरा मानना है कि भारत की हर भाषा के लिए हिन्दवी जैसी वेबसाइट होनी चाहिए. हमें अपनी जड़ों से दूर नहीं होना चाहिए. आजकल बच्चे सिर्फ अंग्रेजी पर फोकस करते हैं. हमें उन्हें हिंदी और उर्दू भी सिखानी चाहिए, जिससे वो हमारी संस्कृति को जान पाएं. हिन्दवी टीम की दो साल की मेहनत रंग लाई है. हिन्दवी और रेख्ता साथ मिलकर हिंदी और उर्दू दोनों बहनों को एक करेंगी."

कैलाश सत्यार्थी ने रेख्ता फाउंडेशन को 'हिन्दवी' के लॉन्च पर बधाई दी.

आज का दिन महत्वपूर्ण है. 140 साल पहले कहानियों के पितामह मुंशी प्रेमचंद का जन्म हुआ था. उनका साहित्य मध्यमवर्गी समाज से हटकर समाज के सबसे नीचे मौजूद शख्स तक पहुंचता है. कोरोना वायरस सभ्यता का संकट है और इससे सोचने समझने का तरीका बदलेगा. हिन्दवी साहित्य के माध्यम से इसमें मदद करेगी. 
कैलाश सत्यार्थी

साहित्यकार अशोक बाजपेयी ने कहा, "हिन्दवी जैसा उपक्रम संभव हुआ, ये मेरे लिए निजी खुशी की बात है. हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं है, वो 46 बोलियों का समूह है. दुनिया में शायद ही किसी भाषा में इतनी बोलियां होंगी. हिंदी एक ऐसी भाषा है, जिसने दूसरी भाषाओं के कई शब्दों को स्वीकार किया है. साहित्य का काम याद रखना और याद दिलाना है और मैं उम्मीद करता हूं कि हिन्दवी भूलने के खिलाफ एक कार्रवाई होगी."

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