68 साल पहले कैसे सरकार ने टाटा से लिया था 'एयर इंडिया'

जेआरडी टाटा ने नेहरू से कहा था कि, सरकार टाटा की हवाई सेवाओं को कुचलने की सुनियोजित कोशिश कर रही है.

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भारत
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JRD TATA

Photo: Altered By Quint Hindi

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तारीख 8 अक्टूबर, दिन शुक्रवार भारतीय उद्योगपति रतन टाटा (Ratan Tata) एक ट्वीट करते हैं. ट्वीट में लिखते हैं "वेलकम बैक एयर इंडिया". दरअसल घाटे में चल रही सरकारी एयरलाइंस एयर इंडिया फिर 18 हजार करोड़ में टाटा संस के पास वापस आ जाती है.

बिल्कुल यह एयर इंडिया (Air India) की घर वापसी है. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि जो एयर इंडिया दशकों पहले टाटा के पास था वो सरकारी हो गया था?

नवंबर, 1952 एक लंच के दौरान जहां प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और जेरआरडी टाटा मौजूद थे, वहां जेआरडी टाटा ने नेहरू से कहा कि सरकार ने जानबूझकर टाटा के साथ बुरा व्यवहार किया है. यह टाटा की हवाई सेवाओं को कुचलने की सुनियोजित कोशिश है. लेकिन नेहरू ने कहा था कि सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है.

दरअसल टाटा की ये सरकार के प्रति नाराजगी थी क्योंकि नेहरू भारतीय एयर लाइन एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण करना चाह रहे थे.

नेहरू ने क्यों किया 'एयर इंडिया' का राष्ट्रीयकरण

1953 में सरकार ने एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया और कंपनी सरकार के पास आ गई.

कहानी यहां से शुरु होती है जब जेआरडी अपने दोस्त के साथ मिलकर ‘टाटा एयर मेल’ नाम से कंपनी खोलते हैं. वो दो सेकेंड हैंड सिंगल इंजन एयर क्राफ्ट खरीदते हैं, 11 लोग स्टाफ में होते हैं, दो पायलट, तीन इंजीनियर, चार कुली और दो चौकीदार नियुक्त होते हैं.

टाटा एयर मेल अपनी पहली उड़ान कराची से मुंबई तक 15 अक्टूबर 1932 को भरती है. जेआरडी टाटा खुद इसके पायलट बनते हैं. 1938 आते-आते कंपनी का नाम टाटा एयरलाइंस हो जाता है और ये देश के बाहर उड़ान भरने लगती है.

साल 1946 में कंपनी का नाम हो जाता है एयर इंडिया और इसी के साथ इसे पब्लिक कंपनी बना दिया जाता है. अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए टाटा सरकार के साथ मिलकर ‘एयर इंडिया इंटरनेशनल’ का गठन करती है. टाटा और सरकार के बीच समझौता होता है जिसके तहत एयर इंडिया के 49% की हिस्सेदारी सरकार अपने पास रखती है.

1952 में पूरी दुनिया की एयरलाइन कंपनी घाटा दिखाने लगती हैं. इन सब के बीच भारत को एयर इंडिया की चिंता होती है जिसमें उसकी 49% की हिस्सेदारी होती है. तभी भारत का योजना आयोग सभी एयरलाइंस को एकीकृत करके उनका निगम बनाने की सिफारिश करता है. जिसके बाद एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण हो जाता है.

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2007 आते-आते एयर इंडिया बूरी तरह से घाटे में चली जाती है. सरकार इसका इंडियन एयरलाइंस के साथ विलय करा देती है. इस विलय के बाद से तो एयर इंडिया रोजाना करीब 20 करोड़ का घाटा देने लगती. ऐसे में सरकार के पास इसे बेचने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता.

इसे खरीदने में टाटा संस सबसे आगे रहती है और एयर इंडिया दोबारा टाटा के पास आ जाती है. बता दें कि अब एयर इंडिया के अलावा टाटा के पास एयर एशिया और विस्तारा एयर लाइंस की हिस्सेदारी भी मौजूद है.

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