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कब तक 'जिंदा' रहेंगे बापू? महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर ये सवाल अटपटा लग सकता है. लेकिन जो लोग गांधी को सिर्फ एक शख्सियत मानते हैं, उन्हें ही. 30 जनवरी,1948 की शाम नाथूराम जो कायराना काम करने गया था, वो कर नहीं पाया था. गोली चली थी, गांधी को नहीं लगी थी. छू भी नहीं पाई थी. नाथूराम शरीर को छू पाया. आत्म अमर रही.आज भी है. नाथूरम के अधूरे काम को उसके मूर्ख भक्त अब पूरा करने की कोशिश में लगे हैं. गांधी को मारने की साजिश कर रहे हैं.
काला झंडा दिखाने पर राजद्रोह का केस
विरोध के लिए जमा होने पर गिरफ्तारी
सरकार के खिलाफ कुछ बोला तो देशद्रोह
जोक मारा तो केस
जोक नहीं मारा तो भी केस
पुलिस का हुक्म कि अफसर, मंत्री या सरकार के खिलाफ 'कुछ' बोला तो एक्शन होगा
सरकार का हुक्म है, आज रात ही प्रदर्शन स्थल खाली कर दें, नहीं तो जबरन हटा देंगे
एक पूरे राज्य में प्रदर्शन करना गुनाह
बच्चे ठंड से ठिठुर गए, इसकी रिपोर्टिंग पर केस
26 जनवरी की हिंसा में मौत पर रिपोर्टिंग के लिए केस
ऐसी सुर्खियां अंग्रेजी राज में आम थीं. स्वाभाविक लगती थीं. विडंबना है कि ये सुर्खियां अब भी आम हैं. स्वभाविक एकदम नहीं. विडंबना है कि ये सब उस देश में हो रहा है जिसको आजादी ही धरना-प्रदर्शन करके मिली है. बापू ने सत्याग्रह, धरना-प्रदर्शन, उपवास के हथियारों से जो आजादी दिलवाई, आज उनकी संतानें उसका लुत्फ तो उठा रही हैं लेकिन उन्हें धरना-प्रदर्शन पसंद नहीं. इतने अहसानफरामोश? जो नेता हर 30 जनवरी और 2 अक्टूबर को कसमें खाते हैं कि बापू आज भी हमें प्रेरणा देते हैं, वो विरोध का कुचलना चुपचाप देखते हैं, हवा देते हैं.
गांधी से कोई असहमत हो सकता है लेकिन असहमति का मतलब 'या तो तुम या मैं' क्यों? 'तुम या मैं' की राह पर चलकर कई देश तबाह हो गए. अभी-अभी अमेरिका अंधेरी सुरंग से निकला है. शुक्र मनाना चाहिए गांधी का कि हमारा देश कभी उन देशों की कतार में खड़ा नहीं हुआ, जहां गृह युद्ध हो जाया करते हैं. बापू ने हमें अपनी शिकायत बताने का जरिया दिया था, गुस्सा फूटे न-बहता रहे, इसका रास्ता दिया था. लिखो. कहो. जोर से कहो. नारे लगाओ.
जो लोग विरोध के अधिकार को, बोलने के हक को दबाते हैं, वो अपने लिए तूफान खड़ा करते हैं. गांधी जी ने अहिंसा, आंदोलन की ताकत, विरोध के अधिकार पर बहुत कुछ कहा है. जैसे लोकतंत्र में जन संघर्ष चलते रहना चाहिए. लेकिन जो लोग इन बातों को भूल जाते हैं उन्हें उनकी एक बात जरूर याद रखनी चाहिए-
"मैं हिंसा का विरोध करता हूं, क्योंकि जब ऐसा लगता है कि हिंसा से कुछ बेहतर हो रहा है, तो वह बेहतर हमेशा अस्थायी होता है."
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Published: 30 Jan 2021,06:33 PM IST