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आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में जब अब्दुल रहमान के घर एक एम्बुलेंस और पुलिस जीप पहुंची, तो उनकी परेशान पत्नी कुरान पढ़ रही थीं. 30 मार्च 2020 को राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने रहमान को लाने के कड़े निर्देश जारी किए थे. रहमान 14 से 17 मार्च के बीच दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में हिस्सा लेने वाले 3000 लोगों में से एक थे.
31 साल के रहमान तबलीगी जमात के सदस्य थे. उन्होंने पुलिस और अथॉरिटीज के साथ सहयोग किया.
पिछले साल हुई इस घटना को याद करते हुए रहमान कहते हैं, "वो गिरफ्तारी की तरह था. हमारे सभी पड़ोसी मौजूद थे और देख रहे थे. मेरा परिवार जिसमें मेरे माता-पिता भी शामिल हैं, सब डरे हुए थे."
रहमान ने क्विंट से कहा, "मुझे याद है कि नतीजों के लिए इंतजार कर रहा था और प्रार्थना कर रहा था. मेरा टेस्ट नेगेटिव आया लेकिन कलंक नहीं खत्म हुआ. तब मुझे जमात के बड़ों ने धैर्य रखने की सलाह दी." रहमान को विशाखापत्तनम की एक COVID-19 आइसोलेशन फैसिलिटी में भर्ती कराया गया था.
नीति के मुताबिक, तब्लीगी जमात ने COVID-19 क्लस्टर का पता लगने के बाद से 'एक साल धैर्य' रखने का फैसला किया था. कई न्यूज आउटलेट्स ने तब्लीगी जमात को एक 'सुपर स्प्रेडर' इवेंट बताया था.
नाम न बताने की शर्त पर तब्लीग के एक वरिष्ठ सदस्य ने क्विंट से कहा, "कई जवान सदस्य बहुत गुस्सा थे और उन्हें बहिष्कृत करने वालों के खिलाफ शत्रुता पाल रहे थे. हमारी नीति उन्हें तब्लीग की आध्यात्मिक कोशिश के जरिए धैर्य सिखाने की थी."
हालांकि, रहमान अधिकारियों से मिलकर अपना नाम इन सबसे निकलवाना चाहते थे.
रहमान का फोन नंबर, घर का पता जैसी निजी जानकारी मार्च 2020 में सार्वजानिक कर दी गई थी. कोविड नेगेटिव आने के बाद भी धमकियों और सामाजिक बहिष्कार ने रहमान का पीछा नहीं छोड़ा.
तब्लीग के लोगों ने इन्हें देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान मदद दी. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सरकार ने बयान जारी कर जनता से अपील की थी कि तब्लीगियों का बहिष्कार न किया जाए.
सदस्य कहते हैं कि तब्लीग में आध्यात्मिक विचार बातचीत का हिस्सा है. वो कहते हैं कि इसी तरह की बातचीत से परेशानी के समय समुदाय के यूथ का मनोबल बना रहा. एक सरकारी नौकर ने कहा, "जो भी अच्छा, बुरा होता है, हम उस पर बातचीत करते हैं. हम समुदाय से सलाह मांगते हैं. आइसोलेशन और कलंक के दौरान फोन पर बातचीत ने हमारा साथ दिया. हमने मस्तमौला रहने का फैसला किया. इसने हमारी मदद की."
हालांकि, जमात नेताओं ने सरकार और पुलिस के साथ मरकज में शरीक होने वाले लोगों की जानकारी साझा की थी. यही जानकारी ज्यादातर राज्यों में मीडिया को लीक की गई और कई मामलों में whatsapp फॉरवर्ड का हिस्सा बन गई.
कलंक के अलावा कई जमातियों को अपने परिजनों और दोस्तों की मौत से भी जूझना पड़ा. हैदराबाद में एक 72 साल के व्यक्ति की COVID-19 से मौत हो गई थी. उनका बेटा याद करता है, "जब मेरे पिता को संभावित रूप से संक्रमण हुआ तो हम एक डॉक्टर के पास नहीं जा पाए. उनकी मौत की रात मैं एम्बुलेंस की खोज में इधर-उधर दौड़ रहा था. COVID-19 मरीजों का अंतिम संस्कार उस समय मुश्किल काम था और तब्लीगियों पर दुगना शक हो रहा था."
उनके पिता का शरीर बिना मुस्लिम रीति-रिवाजों के दफनाया गया था. बेटे ने कहा, "समुदाय के एक भी व्यक्ति को शरीर के पास नहीं आने दिया गया." COVID-19 मौत के ज्यादातर मामलों की तरह इस दौरान भी कोई परिजन दफनाने के समय मौजूद नहीं रह पाया.
मरकज 2020 से बंद था. इस हफ्ते दिल्ली हाई कोर्ट ने 50 लोगों को इमारत में नमाज पढ़ने की इजाजत दी है.
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