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लद्दाख की ऊंची बर्फीली चोटियों पर माइनस 40 डिग्री तापमान. जहां चीनी भी तैनात नहीं रहते, वहां भारतीय सेना की सबसे बड़ी दुश्मन जमा देने वाली ठंड होगी. वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तैनात जवान के लिए 14,000 से 18,000 फीट की ऊंचाई जीवित रहना एक कठिन चुनौती है.
भारत एलएसी पर चीन के साथ दो-दो हाथ करने को तैयार है, ऐसे में यहां तैनात जवानों को किन परिस्थितियों का सामना करना होगा? और उन्हें रसद आपूर्ति, स्वस्थ्य रहने और जंग की तैयारी के लिए किन चीजों की जरूरत है?
भारतीय सैनिक बीते तीन दशक से ऐसे खराब मौसम में रहने का हुनर जानते हैं. जवानों को सियाचिन ग्लेशियर, LOC और पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में रहने का अनुभव है. अब वे इसे लद्दाख में इस्तेमाल करेंगे.
फिर भी, इन दो क्षेत्रों में सर्दियों का अनुभव काफी अलग है. एलओसी भारी बर्फबारी और हिमस्खलन की आशंका वाला इलाका है. जबकि एलएसी दुनिया का सबसे ज्यादा ठंड वाला रेगिस्तान है. यहां बर्फबारी तो कम होती है, लेकिन ठंड बेहद जमा देने वाली पड़ती है.
अक्टूबर से अप्रैल के बीच में सर्दियों के दौरान यहां तापमान अमूमन माइनस 20 डिग्री सेल्सियस के करीब रहता है. लेकिन कई बार ये माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक भी गिर जाता है.
बर्फीली हवाओं की वजह से फ्रोस्टबाइट यानी बॉडी के टिशु के जम जाने का खतरा बढ़ जाता है. इस घातक कंडीशन में इंसान अपनी हाथ और पैरों की उंगलियां के साथ शरीर का कोई अंग भी गंवा सकता है.
फ्राेस्टबाइट यानी बॉडी के टिशु का जम जाना सबसे ज्यादा चिंता का कारण है, बाद में ये अंग को काटने का कारण भी बन जाता है. अगर सैनिक कुछ सेकंड के लिए भी खुले हाथों से राइफल का ट्रिगर या बंदूक की नली को छूता है तो इसका परिणाम बेहद गंभीर हो सकता है. सैनिक की स्किन बंदूक के मेटल से चिपक सकती है.
इसके अलावा, ऊंची चोटियों पर होने से सैनिकों को सेरेब्रल एडिमा की शिकायत भी हो सकती है, इस कंडीशन में अधिक ऊंचाई तक यात्रा करने के कारण फ्ल्यूड के साथ दिमाग में सूजन आ जाती है.
इसके अलावा उन्हें हाई एल्टीट्यूड पल्मनरी एडिमा भी हो सकता है. इस कंडीशन में रक्त वाहिकाओं से फ्ल्यूड फेफड़ों के टिशु में रिसाव का कारण बनता है. इसके अलावा वे हाइपोथर्मिया का अनुभव भी कर सकते हैं. जहां शरीर अपनी क्षमता से ज्यादा गर्मी पैदा करता है. इनमें से सभी कंडिशन बेहद घातक हैं.
पारंपरिक अभियानों के उलट, ऊंचाई पर जंग करने के साथ खराब मौसम से भी जूझना होता है. जवानों की तैनाती से पहले उनको हाई एल्टीट्यूड के लिए अभ्यस्त होना पड़ता है.
इस वजह से ऐसे इलाकों में सैनिकों को तेजी जुटाना मुश्किल है. चूंकि ऊंचाई पर ऑक्सीजन कम होती है तो सैनिकों के भार और हथियार ले जाने की क्षमता पर भी असर पड़ता है.
इसके अलावा, कम तापमान पर कई सैन्य सामान बेकार हो जाते हैं. वह जाम पड़ जाते हैं और बंदूक की नालों में दरार आने लगती है. सैनिकों को लगातार अपने हथियारों को ठीक रखने के लिए लुब्रीकेंट का इस्तेमाल करते रहना होगा.
भारतीय सेना और एयरफोर्स के लिए इतनी ऊंचाई पर आपूर्ति करना एक दुस्वप्न जैसा है. क्योंकि पूर्वी लद्दाख में तैनात 35 हजार अतिरिक्त सैनिकों के लिए स्पेशल कपड़े, खाना और रहने की जरूरत पड़ेगी.
सैनिकों को सोने के लिए नए आवास जैसे आर्कटिक टेंट दिए जाने हैं. मौसम की स्थिति के कारण उन्हें विशेष आहार पर रहना पड़ता है.
ऊंचाई वाले इलाकों में काम करने वाले सैनिकों को एनोरेक्सिया या भूख की शिकायत रहती है. ऐसे में उनके राशन में ज्यादा कैलोरी वाले फूड के साथ चॉकलेट, फलों और सब्जियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
इस रसद की आपूर्ति के लिए बड़े पैमाने पर ट्रांसपोर्ट की जरूरत होती है. पिछले कुछ हफ्ताें में एयरफोर्स के सोवियत निर्मित आईएल-76 और अमेरिकी निर्मित सी-17 विमानों ने हर दिन लगातार चंडीगढ़ से लेह तक जरूरी चीजों की आपूर्ति के लिए नॉनस्टॉप उड़ान भरी है. लेह से कार्गो को हेलिकॉप्टरों और ट्रकों पर लाद कर सैनिकों की लोकेशन पर पहुंचाया जाता है.
यह भी ध्यान रखा जाए कि भारी मात्रा में खाद्य सामग्री, मशीनों और हथियारों के पार्ट्स, फायरिंग बुलेट और ईंधन की आपूर्ति भी एलएसी पर की गई है. इन्हें अब अच्छी तरह से स्टोर करने की जरूरत है. इसके लिए बड़ी, सुरक्षित और तापमान नियंत्रित रखने वाले स्टोरेज की जरूरत होगी. इसके अलावा स्टोर की गई रसद को लद्दाख की कठोर सर्दी से बचाने की जरूरत होगी.
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