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बाइडेन के बुलाए जलवायु सम्मेलन में भारत का क्या दांव पर लगा है?

पेरिस समझौते के अंतर्गत अपनी प्रतिबद्धताओं को भारत पूरा करने की राह पर

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भारत
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बाइडेन और पीएम मोदी
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बाइडेन और पीएम मोदी
(फोटो: Altered by Quint Hindi)

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अमेरिकी राष्ट्रपति बिडेन ने 22- 23 अप्रैल को वर्चुअल "लीडर्स सम्मिट ऑन क्लाइमेट" में विश्व के 40 राष्ट्रप्रमुखों को न्योता दिया है. इसमें प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल होंगे. 2 दिवसीय इस सम्मेलन का लक्ष्य, वाइट हाउस वेबसाइट के अनुसार, मजबूत क्लाइमेट एक्शन की आवश्यकता और उसके आर्थिक लाभ, होगा. इस सम्मेलन के पहले अमेरिका अपने 2030 उत्सर्जन के लक्ष्यों की घोषणा भी करेगा. जानकारों के अनुसार यह 2005 के स्तर से 50% कम का लक्ष्य हो सकता है. आइए समझते हैं कि सम्मेलन भारत के लिए इतना अहम क्यों है?

यह सम्मेलन ग्लासगो में नवंबर में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन(COP26) का महत्वपूर्ण पड़ाव होगा. हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने प्रतिनिधि जॉन केरी को भारत भेजा था. 5 अप्रैल से लेकर 9 अप्रैल के अपने 5 दिवसीय दौरे पर वे प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर से मिले. साथ ही उन्होंने आर्थिक क्षेत्र के प्राइवेट स्टेकहोल्डर्स और NGO’s से मुलाकात की थी .उनके दौरे का लक्ष्य इस सम्मेलन के लिये भारत में जमीन तैयार करना ही था।

भारत के लिए इसमें क्या

भारत जैसे विकासशील देशों के लिए जलवायु परिवर्तन और उससे जुड़े सम्मेलन बहुत महत्व के हैं . भारत की एक बड़ी आबादी अभी भी गरीबी रेखा के नीचे है. आने वाले दशकों में उसे अपने विकास दर को अत्यधिक देश गति देने की जरूरत होगी. ऐसे में विकसित देशों के द्वारा जब उत्सर्जन लक्ष्यों को निर्धारित किया जा रहा हो, तब भारत को विकास के माध्यम से अपनी जनता को गरीबी से बाहर निकालना और जलवायु के प्रति अपने कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता होगी.

इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी भारत का पक्ष रखेंगे .पेरिस समझौते के अंतर्गत अपनी प्रतिबद्धताओं को भारत पूरा करने की राह पर है .भारत ने इंटरनेशनल सोलर अलायंस जैसे प्रोएक्टिव कदम के द्वारा ग्रीन एनर्जी को अपनाने के क्षेत्र में कदम उठाया है.

इधर जब विश्व की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्था 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन (चीन द्वारा 2060 तक) का लक्ष्य अपना रही है तब ऐसा करने का दबाव भारत पर भी होगा।

“हम अपनी प्रतिबद्धता पूरी करेंगे. हम अपने लक्ष्यों को बढ़ाएंगे परंतु किसी के दबाव में नहीं. हम अन्य देशों से वित्त और तकनीकी सहयोग की मांग करेंगे तथा हम उनके द्वारा जलवायु पर लिए एक्शन की भी पूछताछ करेंगे”
. केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री, प्रकाश जावेडकर

भारत रिसर्च एंड डेवलपमेंट में अपनी जीडीपी का मात्र 0.6 से 0.7% ही खर्च करता है जबकि अमेरिका( 2.8%) चीन( 3.1% )इजरायल (4.3%) कोरिया( 2.2%) उससे कहीं ज्यादा. भारत इस मंच पर विकसित देशों से तकनीकी मदद की मांग कर सकता है.

भारत विकसित देशों के द्वारा 2020 तक क्लाइमेट एक्शन के लिए प्रति साल कम से कम 1000 बिलियन डॉलर वित्त के मोबिलाइजेशन के लक्ष्य को पूरा ना करने का सवाल भी उठाएगा.

पेरिस समझौता के लक्ष्यों की ओर भारत

3 पेरिस लक्ष्यों में से भारत 2 को पूरा करने की राह पर है.

  • 2030 तक GDP के इमिशन इंटेनसिटी को 33 से 35% तक कम करने के लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए भारत ने अब तक अपने इमिशन इंटेनसिटी को 21% कम कर लिया है.
  • भारत 2030 तक अपने 40% गैर जीवाश्म ईंधन के प्रयोग के लक्ष्य मात्र 2% ही दूर है. वर्तमान में भारत की गैर जीवाश्म ईंधन (नवीकरणीय ,लार्ज हाइड्रो और न्यूक्लियर मिलाकर)क्षमता 38% है .
  • परंतु तीसरे लक्ष्य ,2030 तक 2.5 से 3 बिलियन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर जंगलों को सुनिश्चित करने के लक्ष्य से भारत अभी भी बहुत दूर है.
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सम्मेलन में किन मुद्दों पर होगा ध्यान

  • विश्व की बड़ी आर्थिक शक्तियों को अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रेरित करना ताकि ग्लोबल वार्मिंग निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस के अंदर ही रहे.
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के फाइनेंस को मोबिलाइज करना ताकि नेट जीरो ट्रांजिशन को पाया जा सके. साथ ही उससे जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील देशों की मदद हो सके.
  • क्लीन एनर्जी वाली अर्थव्यवस्था के आर्थिक लाभों को बताना और उसका सभी समुदायों और कामगारों पर लाभदायक असर कैसे हो, उस पर बातचीत करना.
  • 2050 तक " नेट जीरो" के लक्ष्य को पाने के लिए "नेचर बेस्ड सॉल्यूशन" की खोज करना.
  • यह सम्मेलन अमेरिका के नेतृत्व वाली "मेजर इकनॉमिक फोरम ऑन एनर्जी एंड क्लाइमेट" वाले 17 देशों को भी बातचीत के लिए मंच प्रदान करेगा, जो विश्व के लगभग 80% कार्बन उत्सर्जन और ग्लोबल जीडीपी में हिस्सा रखते हैं .

बिडेन के नेतृत्व में अमेरिका का पेरिस एग्रीमेंट पर वापस आना

अमेरिका को फिर से पेरिस जलवायु संधि में लाना राष्ट्रपति बिडेन के एजेंडे में था. इससे पहले ट्रंप ने इसे अमेरिका के लिए "परमानेंट डिसएडवांटेज" और उसके अर्थव्यवस्था के लिए खराब बताकर अमेरिका को उससे बाहर निकाल लिया था.

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