Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019पाकिस्तानी उच्चायोग के खिलाफ ‘आतंकी साठगांठ’ के सबूत: Exclusive

पाकिस्तानी उच्चायोग के खिलाफ ‘आतंकी साठगांठ’ के सबूत: Exclusive

इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में जानें कैसे पाकिस्तानी उच्चायोग आंतकवाद फैलाने में मदद करता था

आदित्य राज कौल
भारत
Updated:
प्रतीकात्मक फोटो
i
प्रतीकात्मक फोटो
फोटो: द क्विंट

advertisement

23 जून को भारत ने फैसला किया कि नई दिल्ली में मौजूद पाकिस्तानी दूतावास में स्टाफ की तादाद 50 फीसदी कम कर दी जाएगी, साथ ही इस्लामाबाद में अपने दूतावास में भी स्टाफ की संख्या उतनी ही कम कर दी गई.

नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग के प्रभारी सैयद हैदर शाह को इस फैसले, जिसे एक सप्ताह के अंदर लागू किया जाता है, की जानकारी विदेश मंत्रालय में बुला कर दी गई. सूत्रों के मुताबिक इसके बाद नई दिल्ली और इस्लामाबाद में मौजूद दोनों उच्चायोगों में स्टाफ की संख्या 110 से घटकर 55 रह जाएगी.

पिछली बार भारत ने कब पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक संबंधों को घटाया था?

पिछली बार ऐसा कठोर कूटनीतिक कदम 19 साल पहले उठाया गया जब दिसंबर 2001 में संसद पर हमला हुआ था. तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने तब संसद को इसकी जानकारी देते हुए कहा था, ‘अफसोस की बात ये है कि 13 दिसंबर को हमारी संसद पर हमले के सभी नतीजों के बारे में भारत की गंभीर चिंताओं को पाकिस्तान में पूरी तरह समझा नहीं गया है.

भारत की गहरी चिंता को पाकिस्तान ने नजरंदाज कर दिया, जबकि देश के हर-तबके के लोगों ने पाकिस्तान की तरफ से सीमा पार आतंकवाद को मिलने वाले समर्थन और राष्ट्रनीति के तहत आतंकवाद को बढ़ावा देने की भर्त्सना की.’

‘जहां उनके अधिकारियों की हरकतें उच्चायोग के विशेषाधिकार के दर्जे से मेल नहीं खाती, पाकिस्तान लगातार इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों को डरा-धमका रहा है, उन्हें अपनी कूटनीतिक जिम्मेदारियां निभाने से रोक रहा है.’ - 23 जून की शाम भारतीय विदेश मंत्रालय का दिया बयान

इस फैसले से तीन हफ्ते पहले भारत ने नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग के दो स्टाफ को निष्कासित कर दिया था, जिन्हें दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर जासूसी करते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया था.

टेरर-फंडिंग में पाकिस्तानी उच्चायोग का ‘हाथ’

हालांकि इसकी तात्कालिक वजह इस्लामाबाद में एयरपोर्ट के लिए निकले भारतीय उच्चायोग के दो अधिकारियों का ISI द्वारा बंदूक के दम पर अपहरण और उसके बाद उनके साथ हुई बदसलूकी रही होगी. लेकिन राजनयिक सूत्रों के मुताबिक 2016 से लेकर अब तक बार-बार वियना संधि और द्विपक्षीय समझौते के उल्लंघन की वजह से भारत ने ये फैसला लिया है.

जम्मू-कश्मीर में टेरर-फंडिंग केस की तहकीकात के दौरान, जांच एजेंसी NIA को जानकारी मिली कि आरोपी जहूर अहमद शाह वटाली उन लोगों में से एक था जिनके जरिए ISI के अधिकारी और नई दिल्ली में मौजूद पाकिस्तानी उच्चायोग हुर्रियत के नेताओं को पैसे पहुंचाते थे. वटाली के घर पर छापेमारी के दौरान एक कागजात बरामद किया गया जिसमें हुर्रियत के कई नेताओं को पैसे दिए जाने का लेखा-जोखा मौजूद था, कागजात में हुर्रियत के नेताओं को पाकिस्तानी उच्चायोग से मिले पैसों की जानकारी भी मिली.

उस कागजात में पाकिस्तानी उच्चायोग के वरिष्ठ राजनयिक इकबाल चीमा का नाम लिखा था, जिसके बारे में बाद में जानकारी मिली कि वो नई दिल्ली में बतौर ISI स्टेशन चीफ तैनात किया गया था.

कागजात के मुताबिक 15 मार्च 2016 को, नई दिल्ली में मौजूद पाकिस्तानी उच्चायोग से जहूर अहमद शाह वटाली को 30 लाख रुपये मिले, जबकि 20 अक्टूबर 2016 को इकबाल चीमा के जरिए उसे 40 लाख रुपये मुहैया कराए गए.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

नई दिल्ली की मुश्किल: जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की भर्ती में पाकिस्तान हाई कमीशन का ‘हाथ’

मुदस्सर इकबाल चीमा 23 सितंबर 2015 से 2 नवंबर 2016 तक बतौर प्रथम सचिव (प्रेस) नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग में तैनात रहा. 2 नवंबर 2016 को चीमा के साथ हाई कमीशन के पांच दूसरे अधिकारियों को पाकिस्तान की सरकार ने वापस बुला लिया, इसकी कोई वजह तक नहीं बताई गई.

भारत में रहने के दौरान, मुदस्सर इकबाल चीमा उन लोगों में था, जो जहूर अहमद शाह वटाली के जरिए हुर्रियत के नेताओं तक फंड पहुंचाता था.

लेकिन नई दिल्ली की असली चिंता ये थी कि आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए कश्मीर के युवाओं की भर्ती सीधा पाकिस्तान के उच्चायोग से हो रही थी.

हालांकि ये भर्ती पिछले कई सालों से जारी थी, लेकिन इसका भंडाफोड़ 2017 में तब हुआ जब बारामुला के SSP इम्तियाज हुसैन, जो कि अभी बतौर SSP कश्मीर वैली की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, को इसकी खुफिया जानकारी मिली थी.

अगस्त 2017 में आतंकी मॉड्यूल के खुलासे के ठीक बाद इम्तियाज ने मुझे बताया था, ‘बारामुला पुलिस ने हिजबुल मुजाहिद्दीन के एक मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया था. ये मॉड्यूल नवयुवकों को आतंकी बनने का प्रलोभन दे रहा था. मॉड्यूल का एक सदस्य पाकिस्तान जा चुका था, उसने पाकिस्तान हाईकमीशन से एक अलगाववादी संगठन के जरिए वहां का वीजा हासिल किया था, इसके बाद उसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के खालिद इब्न अल-वालिद कैंप में आतंकी ट्रेनिंग दी गई थी.

ग्रुप के दो और सदस्य फंडिंग का काम देखते थे. हमने उनसे एक लाख रुपये बरामद किया. हमने ऐसे 10 लड़कों को आतंकियों के चंगुल से छुड़ाया जिन्हें हिजबुल मुजाहिद्दीन में शामिल होने के लिए उकसाया जा रहा था.’ जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने द क्विंट से इस बात की पुष्टि की कि ये मॉड्यूल सिर्फ बारामुला तक सीमित नहीं था, ये सब कश्मीर के दूसरे जिलों में भी जारी था.

जम्मू-कश्मीर पुलिस के सूत्रों के मुताबिक, ‘चार आतंकवादियों, बांदीपोरा से कैसर मंजूर भाई, शोपियां से जावेद रशीद भट, सोपोर से कमर उद दिन वार और शोपियां से सज्जाद हुर्रा – जो कि 2019-20 में अलग-अलग एनकाउंटर में मारे गए थे – को पाकिस्तान हाई कमीशन की तरफ से पाकिस्तान में पढ़ने के लिए वीजा मिला था, लेकिन असल में उन्हें वहां आतंकी ट्रेनिंग दी गई थी.’

द क्विंट के पास एक अधिकारी का सिक्योरिटी नोट मौजूद है जिससे मारे गए आतंकवादियों की पाकिस्तान हाई कमीशन से साठगांठ की पुष्टि होती है. नई दिल्ली में मौजूद खुफिया सूत्रों के मुताबिक अप्रैल 2020 में कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ की कोशिश के दौरान जिन तीन आतंकवादियों को मार गिराया गया था, वो असल में कश्मीरी युवक थे जिन्हें पढ़ाई के नाम पर पाकिस्तान जाने का वीजा देने के बाद PoK में आतंकी ट्रेनिंग दी गई थी, लेकिन आखिरकार सुरक्षाबलों ने उन्हें Line of Control पर ढेर कर दिया.

पाकिस्तान हाई कमीशन हवाला और टेरर-फंडिंग का ‘अड्डा’

जनवरी 2020 में जम्मू-कश्मीर के डीएसपी देविंदर सिंह की गिरफ्तारी से जुड़े मामले की तहकीकात में, उनके साथ पकड़े गए हिजबुल कमांडर नवीद मुश्ताक, इरफान शफी मीर और रफी अहमद ने पूछताछ के दौरान पुलिस को बताया कि सभी आरोपी पाकिस्तान हाई कमीशन के अधिकारी शफाकत के संपर्क में थे, जो कि असिस्टेंट के पद पर तैनात था, लेकिन हकीकत में हवाला के लेनदेन और टेरर फंडिंग का काम देखता था.

जहां भारतीय राजनयिकों, सुरक्षा एजेंसियों और खुफिया तंत्र में इस बारे में आम राय दिखती है, उच्च सूत्रों ने खुलासा किया है कि इस

वक्त कश्मीर के 250 लोगों, जिनमें ज्यादातर युवक हैं, का कोई अता-पता नहीं है. खुफिया एजेंसियों की आशंका है कि नई दिल्ली में मौजूद पाकिस्तानी उच्चायोग ने प्रलोभन देकर इन युवकों की भर्ती की है, जिन्हें आतंकी ट्रेनिंग देने के साथ-साथ ISI पाकिस्तान में भारत के खिलाफ सोशल मीडिया प्रोपेगेंडा में इस्तेमाल कर रहा है.

पढ़ें ये भी: दिल्ली दंगों में हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल की मौत कैसे हुई: चार्जशीट

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 27 Jun 2020,07:25 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT