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दिल्ली दंगों में हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल की मौत कैसे हुई: चार्जशीट

पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट में रतन लाल के शरीर पर 21 चोटों के निशान पाए गए थे

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इसी साल फरवरी में उत्तर पूर्व दिल्ली के दंगों के दौरान 42 साल के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की मौत ने सभी को हिलाकर रख दिया था. वजीराबाद रोड पर चांद बाग में सीएए के खिलाफ लोग धरना दे रहे थे. 24 फरवरी को वहां हिंसक भीड़ ने रतन लाल पर हमला किया. रतन लाल को जीटीबी अस्पताल पहुंचाया गया और वहां पहुंचने पर उन्होंने दम तोड़ दिया.

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रतन लाल की मौत पर दिल्ली पुलिस ने जो चार्जशीट फाइल की है, उसमें पुलिस ने दावा किया है कि पुलिसकर्मियों पर हमला सुनियोजित था. इस दावे के समर्थन में दिल्ली पुलिस ने पुलिसकर्मियों की चोटों का हवाला दिया है. साथ ही कहा है कि पुलिसकर्मियों पर हमला करने के लिए जिन हथियारों का इस्तेमाल किया गया था, उनकी व्यवस्था आनन-फानन में नहीं की जा सकती थी

पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट में रतन लाल के शरीर पर 21 चोटों के निशान पाए गए थे. डंडों, रॉड्स और गोलियों से उन पर हमला किया गया था. उनकी मौत का कारण हैमोराजेक शॉक था, जिसका मतलब यह है कि बहुत अधिक खूब बहने के कारण उनके शरीर के अंगों ने काम करना बंद कर दिया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि सामान्य स्थितियों में इनमें से छह चोटें ही किसी की मौत का कारण बनने के लिए पर्याप्त हैं.

फरवरी 2020 में उत्तर पूर्व दिल्ली के दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और करोड़ रुपए की संपत्ति नष्ट हुई थी. इन दंगों पर अपनी रिपोर्ट्स के मद्देनजर हम यहां रतन लाल की मौत के मामले पर दायर चार्जशीट का विवरण पेश कर रहे हैं.

रतन लाल की मौत से एक दिन पहले, 23 फरवरी को क्या हुआ था?

प्रदर्शनकारियों ने यह तय किया था कि वे लोग भीम सेना के चंद्रशेखर आजाद को अपना समर्थन जताने के लिए जुलूस निकालेंगे. आजाद ने भारत बंद का ऐलान किया था. चूंकि उन लोगों के पास चांद बाग से राजघाट तक प्रदर्शन करने के लिए अनुमति नहीं थी, इसीलिए पुलिस ने इसकी इजाज़त नहीं दी.

इसके बाद प्रदर्शनकारियों का गुस्सा भड़क गया. उन्हें वजीराबाद सड़क बंद कर दी. इसके बाद पुलिस ने बीच बचाव किया और उसी दिन रास्ता खुलवा दिया.

तनाव की आशंका: सबसे पहले भीड़ को तितर बितर किया गया

लेकिन तनाव अगले दिन सुबह तक जारी रहा.

पुलिस का आरोप है कि अगले दिन 24 फरवरी को सलीम मुन्ना (आरोपी नंबर 2) ने ‘एक भड़काऊ भाषण दिया तथा मुसलमान मर्दों-औरतों को बाहर आने और अपनी ताकत दिखाने के लिए उकसाया.’

स्थिति बेकाबू होने की आशंका से एसीपी अनुज कुमार ने कॉन्स्टेबल ज्ञान और कॉन्स्टेबल सुनील को सलीम मुन्ना को बुलाने के लिए भेजा ‘जिससे भीड़ को जमा होने से रोका जा सके, चूंकि भीड़ एक खतरनाक रूप ले रही थी.’

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चार्जशीट में दावा किया गया है कि इन दोनों कॉस्टेबल्स को भीड़ ने बंदी बना लिया और दोनों बड़ी मुश्किल से वहां से निकल पाए.  

दूसरी कोशिश, जिसने हिंसक रूप ले लिया

भीड़ को शांत करने की उनकी कोशिश नाकाम रही.

पुलिस के साथ यह झड़प तब हिंसक हो गई, जब दोपहर के करीब एक बजे भीड़ ने पुलिस पर हमला बोल दिया. पुलिस का दावा है कि प्रदर्शनकारियों के पास डंडे, रॉड वगैरह थे, और उन्होंने उकसावे के बिना ही पुलिसवालों पर पत्थरबाजी करनी शुरू कर दी थी.

चार्जशीट में यह आरोप भी लगाया गया है कि महिलाओं को आगे रखा गया था ताकि पुलिस वालों के पास पीछे हटने के अलावा कोई चारा न हो- वे कोई ठोस कार्रवाई न कर पाएं. इसके अलावा पीछे हटते समय उन्हें पांच फीट लंबा डिवाइडर भी पार करना था.  

चार्जशीट में यह भी कहा गया है कि कुछ पुलिसवाले खुशकिस्मत थे कि वे पांच फीट लंबे डिवाइडर को कूदकर पार कर गए. कुछ वहीं फंस गए और हमले का शिकार हुए. इसमें कहा गया है कि भीड़ की अगुवाई औरतों कर रही थीं और बाद में बाकी लोग भी आ गए थे.

इसी हमले और डिवाइडर के पास हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल को गोली लगी. उन्हें जीटीबी अस्पताल ले जाया गया और वहां पहुंचने पर डॉक्टरों ने कहा कि रास्ते में ही रतन लाल की मौत हो गई है. इस हमले में कई पुलिसवाले जख्मी हुए, जिनमें डीपीसी शाहदरा अमित शर्मा और एसीपी गोकुलपुरी अनुज कुमार शामिल हैं.

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हिंसा सुनियोजित, पूरी तैयारी से

पुलिस का दावा है कि 23 और 24 फरवरी की मध्य रात्रि को 24 फरवरी के लिए रणनीति बनाई गई.

चार्जशीट में तौकीर की गवाही शामिल है जोकि उस इलाके का चश्मदीद है. उसने पुलिस को बताया, ‘उस शाम यह अफवाह थी कि जाफराबाद प्रदर्शन में हिंसा होने वाली है.’

22 फरवरी को जाफराबाद सड़क को बंद कर दिया और अगले दिन पत्थरबाजी और नारेबाजी की घटनाएं हुईं.

‘यह सुनने के बाद मामला और तनावपूर्ण हो गया. गुप्त बैठक हुई जिसके बाद कुछ लोग मंच पर आए और कहने लगे कि अब वक्त आ गया है कि हम अपने प्रदर्शन की ताकत दिखाएं. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दो दिनों के लिए भारत आ रहे हैं और दुनिया की नजरें भारत की तरफ हैं. इसलिए अपने साथ ज्यादा से ज्यादा लोग लाएं और अपनी रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएं. यह भी संभव है कि पुलिस से हमारा आमना-सामना हो.’

अगले दिन क्या हुआ, इस बारे में तौकीर ने कहा, ‘इसके बावजूद कि पुलिस प्रदर्शनकारियों से लगातार यह कह रही थी कि वे सड़क बंद नहीं कर सकते, धरना स्थल पर बच्चों, महिलाओं और दूसरे लोगों ने पुलिस पर पत्थर, डंडों और रॉड्स से हमला करना शुरू कर दिया. लोगों ने पुलिस पर पेट्रोल बम से हमला किया और गोलियां भी चलाई गईं.’ तौकीर ने यह भी कहा कि उसने शोरूम की छत से एक स्थानीय लड़के को पुलिस पर पेट्रोल और एसिड बम से हमला करते देखा.

नज्म उल हसन नाम के दूसरे चश्मदीद ने पुलिस को बताया कि दोपहर के लगभग 11 बजे जब वह धरनास्थल पर पहुंचा तो उसने देखा कि ‘सलीम मुन्ना और अथर मंच पर चढ़कर बात कर रहे थे. सभी लोगों के हाथों में डंडे, रॉड्स, पत्थर और तलवारें थीं. जब मुन्ना भीड़ से बातें कर रहा था, एसीपी उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे थे. एसीपी ने दो कॉन्स्टेबलों को बीच बचाव करने के लिए भेजा पर भीड़ ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया.’

चार्जशीट में तीसरे चश्मदीद सलमान का बयान इस प्रकार है, ’24 फरवरी की दोपहर को बहुत भीड़ थी. उन सबके हाथों में पत्थर, डंडे और तलवारें थीं. भीड़ मे से एक औरत ने अपना बुर्का उतारा और पुलिस पर हमला किया. इसके बाद लोगों ने पत्थरों और डंडों से पुलिस पर हमले किए. छतों से पेट्रोल और एसिड बम फेंके जा रहे थे और गोलियां चलाई जा रही थीं. कुछ लोग कह रहे थे कि लड़ाई मत करो. लेकिन भीड़ इतनी बड़ी थी कि कोई किसी की बात नहीं सुन रहा था.’

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आरोपियों के खिलाफ सबूत

चार्जशीट पढ़कर लगता है कि पुलिस ने आरोपियों को जिम्मेदार ठहराने के लिए सीसीटीवी फुटेज, स्वतंत्र और पुलिस के चश्मदीदों के बयानों और सीडीआर (कॉल डीटेल रिकॉर्ड) पर बहुत अधिक भरोसा किया है. पुलिस ने इस मामले में 17 लोगों को आरोपी ठहराया है और यह भी कहा है कि सप्लिमेंटरी चार्जशीट्स भी दायर की जाएंगी.

इस मामले के दो मुख्य आरोपी हैं मोहम्मद सलीम खान और सलीम उर्फ मुन्ना. दंगों में उनकी ऐसी ही भूमिका को स्पष्ट करते हुए गवाहों के बयानों और वीडियो पर भरोसा किया गया है. पुलिस ने अपनी चार्जशीट में दावा किया है कि एसीपी ने 24 फरवरी की सुबह मुन्ना के साथ सीधे बातचीत करने की कोशिश की थी लेकिन उसने न सिर्फ उनसे मिलने से इनकार कर दिया, बल्कि भीड़ को सरकार के खिलाफ भड़काया जिसके कारण ‘अंततः दंगे शुरू हुए.’

शहनवाज को गिरफ्तार किया गया, जब उसके फोन के ऑडियो क्लिप से पता चला कि वह हिंसा मे शामिल है और दूसरे आरोपी सुवालिन को पुलिस ने उत्तर प्रदेश स्थित उसके गांव से गिरफ्तार किया. उसके पास एक पुलिस अधिकारी का फोन था जिसकी मदद से पुलिसवालों ने उसे उसके गांव से धर पकड़ा जहां वह छिपने के लिए फरार हो गया था.  

चार्जशीट में शादाब अहमद का नाम दंगों की साजिश रचने वालों में से एक है. उसने प्रदर्शनकारियों को भड़काने में मुख्य भूमिका निभाई. चार्जशीट में दावा किया गया है कि उसने 23 और 24 फरवरी का सारा डेटा डिलीट कर दिया था. उसकी सीडीआर से पता चलत है कि वह घटना वाले दिन धरना स्थल पर मौजूद था. पुलिस के गवाह के अलावा एक स्थानीय गवाह ने भी उसका नाम लिया है.

पुलिस का दावा है कि आरोपी नंबर तीन और चार मोहम्मद जलालुद्दीन और आरिफ के लिए सीडीआर और पुलिस के गवाहों के अतिरिक्त वीडियो भी मौजूद है. इसमें जलालुद्दीन को छत से पुलिस पर पत्थर फेंकते देखा जा सकता है. दूसरी ओर आरिफ हाथ में डडा लिए सीसीटीवी कैमरा की पोजिशन बदल रहा है. मोहम्मद अयूब, मोहम्मद यूनुस और दानिश के लिए पुलिस के पास गवाह और सीडीआर दोनों हैं. इब्राहिम, फुकरान, इमरान अंसारी और बदरुल हसन के लिए वह सीसीटीवी फुटेज, पुलिस के गवाहों के बयान और सीडीआर पर भरोसा कर रही है. नासिर, आदिल औऱ मोहम्मद सादिक को सीसीटीवी फुटेज में पहचाना गया है और पुलिसवालों ने उनके खिलाफ गवाही दी है.

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