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पिछले सात सालों में 30 सितंबर तक 8.5 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी नागरिकता (Citizenship) छोड़ी है.
मंगलवार, 14 दिसंबर को लोकसभा में केंद्र सरकार ने गृह मंत्रालय (Home Ministry) के आंकड़ों का हवाला देते हुए ये जानकारी दी.
पिछले दिनों बुधवार, 1 दिसंबर को केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय (Nityanand Rai) ने संसद में बताया था कि पिछले सात वर्षों में 20 सितंबर तक 6,08,162 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी.
उन्होंने कहा कि 10,645 विदेशी नागरिकों ने 2016 और 2020 के बीच भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया है, जिनमें से ज्यादातर पाकिस्तान (7,782) और अफगानिस्तान (795) से हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा वक्त में 100 लाख से अधिक भारतीय विदेशों में रह रहे हैं.
ये डेटा तब सामने आया है, जब गृह मंत्रालय द्वारा घोषणा की गई है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) बनाने पर अभी फैसला लेना बाकी है.
हालांकि केन्द्र सरकार ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति जो नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के अंतर्गत आता है, वो कानून के नियमों के नोटिफाई होने के बाद भारतीय नागरिकता के लिए अप्लाई कर सकता है.
31 दिसंबर, 2014 तक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत आने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनों, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता देने के लिए CAA को मंजूरी दी गई थी. इस कानून का विरोध करने वालों ने कहा कि यह एक असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण कानून है.
विरोध करने वाले लोगों का कहना था कि इसे मुसलमानों को अलग-थलग करने और भारत जैसे सेकुलर देश में नागरिकता को आस्था के साथ जोड़ने के लिए लाया गया है.
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