संसद में विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम को पारित हुए दो साल बीत चुके हैं। इन दो वर्षों में, जिन लोगों ने इस अधिनियम का विरोध किया है, उन्हें गिरफ्तारी और नजरबंदी के रूप में नतीजों का सामना करना पड़ा है.
फिर भी, सरकार ने CAA को लागू करने के बारे में अभी तक कोई नियम नहीं बनाय हैं. ऐसा क्या है जिसके परिणामस्वरूप शायद यह देरी हुई है? क्या यह देश में हो रहे इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों की वजह से है?
सीएए के किसी भी उल्लेख या बहस से सिर्फ विरोध प्रदर्शन ही ज़ेहन में आते हैं. इस कानून के पारित होते ही, देश भर में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए. और प्रदर्शन में शामिल लोगों को कभी डिटेन किया कभी राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार। कभी प्रदर्शनकारियों पर गोली भी चलती दिखी।
कुल मिला कर इन दो सालों के बारे में ये कहा जा सकता है कि CAA का शांतिपूर्ण विरोध करने पर सख्ती लेकिन हिंसा भड़काने वालो से नरमी की मिसाल देखी गई.
इस एपिसोड के लिए, हमने बात की एक्टिविस्ट और स्कॉलर, फहद अहमद से, जिन्होंने अधिनियम पारित होने के ठीक बाद मुंबई में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। साथ ही हम ने बात की राजनीतिक टिप्पणीकार, प्रोफेसर अपूर्वानंद और अधिवक्ता निज़ाम पाशा से भी जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय में वकील हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)