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ज्यादा पुरानी बात भी नहीं, यही कोई एक डेढ़ दशक पहले की है. जब दुनिया इंटरनेट की वजह से ग्लोबल हो रही थी. और हमारे देश में बहस छिड़ी हुई थी कि इंटरनेट के आसरे अंग्रेजी हिन्दी ही नहीं दूसरी भारतीय भाषाओं को निगल जाएगा. लेकिन अब राहत की बात है कि वो डर आज हमारे बीच नहीं है. ऑनलाइन एंटरटेंमेंट की दुनिया में बिजनेस पाने की होड़ ने भारतीय भाषाओं के अस्तित्व के इस डर को मौके में तब्दील कर दिया.
और आज आलम ये है कि हिन्दी के अलावा अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन एंटरटेंमेंट, सोशल नेटवर्किंग कम्पनियां भारत की आंचलिक भाषाओं पर पहले से ज्यादा प्लानिंग और कंटेंट के साथ बाजार में उतरने के लिए तैयार है. ऑनलाइन कंटेंट और सोशल नेटवर्किंग की दुनिया में तेजी से कदम आगे बढ़ाती दो भारतीय कम्पनियों के हाथ लगी तगड़ी फंडिंग ने इन कम्पनियों को यूनिकॉर्न क्लब में शामिल दिया है.
दरअसल भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं के लिए मौके के इस दरवाजे को खोलने का सबसे बड़े काम लॉकडाउन के दौरान हुआ. जब लोग अपने क्षेत्रीय भाषाओं में दिखाए जानेवाले एंटरटेंमेंट कंटेंट्स की ओर तेजी से रुख करने लगे. मराठी के साथ, बंगाली, कैरली, कन्नड, भोजपुरी जैसी आंचलिक भाषाओं में मिलनेवाले मनोरंजक कंटेंट्स खूब देखे जाने लगे. आंचलिक भाषाओं के कंटेट्स की ओर होते रुख और उससे जुड़े बाजार ने ग्लोबल टेक कम्पनियों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया.
बात अगर आंकड़ों की की जाए तो 26 मार्च को जारी फिक्की-EY मीडिया एंड एंटरटेंमेंट रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक भारतीय क्षेत्रीय भाषाएं 2020 में 55% से बढ़कर 60% तक टेलिविजन की खपत कर रहे होंगे. वहीं वीडियो स्ट्रीमिंग में 2019 में 30% के मुकाबले 50% प्रतिशत तक पहुंच जाएगी.
FCCI-EY की रिपोर्ट कहती है कि क्षेत्रीय भाषाओं के सब्सक्राइबरों का इंटरनेट यूजर्स में जबरदस्त रुतबा है. और यही बड़ी वजह भी है कि क्षेत्रीय भाषाओं की ओर एडवर्टाइजर्स का ध्यान जा रहा है. ये तथ्य बड़े रोचक लगते हैं कि हिन्दी में विज्ञापन 47% तक हैं जबकि अंग्रेजी में केवल 3-4 प्रतिशत. इस बात की पुष्टि हमें यूट्यूब की पहली एड्स लीडरबोर्ड रिपोर्ट में भी मिलती है जो ये कहती है कि 2020 के मध्य तक देखे और पसंद किए जानेवाले विज्ञापनों में टॉप 10 क्षेत्रीय भाषाओं के है. अंग्रेजी के अखबारों में भी हिंग्लिश के विज्ञापनों ने खास जगह बना ली है क्योंकि वे लोगों को ज्यादा अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं.
गूगल की इयर एंन सर्च 2020 रिपोर्ट भी कहती है कि 90 प्रतिशत यूट्यूब यूजर्स क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेट देखना पसंद करते हैं. गूगल ट्रांसलेट का इस्तेमाल लोकल लैंगुएज के लिए 17 मिलियन बार किया जाना भी इसकी बेहरीन मिसाल है.
भारतीय भाषाओं में एंटरटेंमेंट कंटेट डेवलप करने की होड़ ओटीटी प्लेटफॉर्म में देखते ही बनती है. अमेजन प्राइम, नेटफ्लिक्स हो या फिर हॉट स्टार...इन सबपर हिंदी उत्सव चल रहा है. एक पैरेलल फिल्मी दुनिया बन गई है. बांग्ला भाषा का होईचोई और तेलुगु का अहा जैसे प्लेटफॉर्म्स लोगों को लोकल भाषाओं में कंटेट की ओर बड़ी तेजी के साथ अपनी ओर खींच रहे हैं.
सन टीवी का ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की रेस में तेलुगु, कन्नड, मलयाली और तमिल भाषाओं का कंटेट भारत ही नहीं बल्कि यूएस, यूरोप, साउथईस्ट एशिया, कनाडा, साउथ अफ्रिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजिलैंड और मिडल ईस्ट जैसे देशों में भी खूब पसंद किया जा रहा है. इस कड़ी में ऐसे और भी कई प्लेटफॉर्म्स तेजी के साथ ओटीटी इंडस्ट्री में पांव जमा रहे हैं और लोकल भाषाओं में जमकर कंटेट पेश कर रहे हैं. अब भारतीय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कू की ही अगर बात करें तो वह भारत की 22 भाषाओं में कंटेट देने की तैयारी कर रही है.
कुल मिलाकर लोकल अब वाकई वोकल है, कम से कम डिजिटल की दुनिया में तो यही सच है.
1 बिलियन डॉलर या उससे ज्यादा की मार्केट वैल्युवाली कम्पनियों को युनिकॉर्न ग्रुप में शामिल किया जाता है. युनिकॉर्न क्लब में शामिल होनेवाली दोनों कम्पनियां मोहल्ला टेक और गपशप आखिर है क्या, ये जानना भी जरूरी है. तो सबसे पहले बात मोहल्ला टेक की करते हैं. मूल तौर पर मोहल्ला टेक बंग्लुरु की सोशल नेटवर्किंग और शॉर्ट वीडियो शेयरिंग सर्विस देनेवाली कम्पनी है. दस महीने पहले शुरू की गई इस कम्पनी का प्रोडक्ट है मोज नाम का ऐप. भारत सरकार ने जब शॉर्ट वीडियो मैसेंजिंग प्लेटफॉर्म टिकटॉक और उसी तरह की 59 चीनी ऐपों पर प्रतिबंध लगाया तो ये मोज ऐप के लिए वरदान बनकर साबित हुआ.
वहीं गपशप मैसेंजिंग सर्विस प्रोवाइडर कम्पनी है, जो ईमेल से लेकर एसएमएस, वाइस सर्विस देती है. 2004 में स्थापित की गई ये कम्पनी अचानक तब चर्चा में है जब इसने कम्पनी ये ऐलान कर दिया कि ग्लोबल टाइगर्स से कम्पनी ने 100 मिलियन डॉलर्स का निवेश किया है. इस निवेश से कम्पनी का मार्केट कैप 1.4 बिलियन पर जा पहुंचा.
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