Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019 दिल्ली हिंसा पर बोला पुलिस अफसर-तैयार था, ऊपर से आदेश नहीं आया  

दिल्ली हिंसा पर बोला पुलिस अफसर-तैयार था, ऊपर से आदेश नहीं आया  

दिल्ली पुलिस उत्तर पूर्व दिल्ली में 23 और 26 फरवरी के बीच हुई सांप्रदायिक हिंसा को रोक पाने में विफल रही. 

पूनम अग्रवाल
भारत
Updated:
दिल्ली हिंसा पर बोला पुलिस अफसर-तैयार था, ऊपर से आदेश नहीं आया
i
दिल्ली हिंसा पर बोला पुलिस अफसर-तैयार था, ऊपर से आदेश नहीं आया
(फोटो: द क्विंट)

advertisement

पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारी निजी तौर पर दुखी हैं कि दिल्ली पुलिस उत्तर पूर्व दिल्ली में 23 और 26 फरवरी के बीच हुई सांप्रदायिक हिंसा को रोक पाने में विफल रही और इस वजह से दिल्ली पुलिस की छवि को बुरी तरह से नुकसान पहुंचा है.

“पूर्व पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को न सिर्फ दिल्ली दंगों के लिए, बल्कि दिल्ली पुलिस की छवि उत्तर प्रदेश पुलिस जैसी बनाने, बल्कि उससे भी खराब करने के लिए याद किया जाएगा. यहां तक कि जब शहर में बड़ी घटनाएं घटीं थीं चाहे वह 2005 में सीरियल ब्लास्ट हो या निर्भया रेप, लोगों ने हमारी निंदा जरूर की थी, लेकिन विश्वास नहीं खोया था. मगर, अब जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई नहीं की जा सकेगी.<b></b>
दिल्ली पुलिस में सेवारत आईपीएस अफसर ने क्विंट को बताया,

पूर्व दिल्ली पुलिस आयुक्त अजय राज शर्मा ने कहा कि तत्काल कार्रवाई कर पाने में पुलिस की असफलता की वजह से कई दिनों तक हिंसा जारी रही.

कपिल मिश्रा और परवेश वर्मा के उत्तेजक बयानों ने लोगों को उकसाया. लेकिन, पुलिस ने कुछ नहीं किया. पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए थी और जब दंगा शुरू हुआ तो लोगों को गिरफ्तार करना चाहिए था.”

क्या हिंसा के बारे में पुलिस को सूचना मिलने में देरी हुई? क्या उनके पास पर्याप्त जवान नहीं थे? इन सवालों में जाने से पहले क्रमवार घटना पर हम नजर डालते हैं. क्या हिंसा के बारे में पुलिस को सूचना मिलने में देरी हुई? क्या उनके पास पर्याप्त जवान नहीं थे?

इन सवालों में जाने से पहले क्रमवार घटना पर हम नजर डालते हैं.

  • 22 फरवरी के दिन नागरिकता संशोधन कानून विरोधी प्रदर्शनकारियों (सीएए विरोधी) का बड़ा समूह सड़क जाम करते हुए जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर धरने पर बैठ गया. इनमें ज्यादातर महिलाएं थीं.
  • 23 फरवरी को दिल्ली बीजेपी के नेता कपिल मिश्रा ने उत्तर पूर्व दिल्ली के मौजपुर में एक रैली बुला ली. उन्होंने जाफराबाद में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को तीन दिन के भीतर हटाने की मांग की. उन्होंने चेताया कि अगर प्रदर्शनकारी नहीं हटाए गये तो वे पुलिस की नहीं सुनेंगे. मिश्रा ने यह सब बातें सामने खड़े पुलिसकर्मियों के समक्ष कहीं.
  • मिश्रा के भाषण के कुछ घंटों के बाद ही उत्तर पूर्व दिल्ली के कई हिस्सों में पत्थरबाजी शुरू हो गयी. और 23 फरवरी की शाम तक हिंसा भड़क गयी.
दिल्ली पुलिस को शाहीन बाग में प्रदर्शन शुरू होने के बाद से ही दिल्ली में दंगे जैसी स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए था. स्टेशन हाउस ऑफिसर्स (एसएचओ) और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने अहतियातन कौन से कदम उठाए? कुछ भी नहीं.”<b> </b><b></b>
दिल्ली पुलिस में सेवारत आईपीएस अफसर ने क्विंट को बताया

अधिकारी ने आगे बताया कि 23 फरवरी को जो हिंसा शुरू हुई, उसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता था, लेकिन पुलिस ने 25 फरवरी तक कुछ नहीं किया.

दिल्ली में कैसी भड़की हिंसा(फोटो : पूनम अग्रवाल/दक्विंट)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

ज्यादातर प्रभावित इलाकों के 7 एसएचओ शांत रहे

हम सब जानते हैं कि एक एसएचओ अपने इलाके में कितना शक्तिशाली होता है. अपने इलाके में कानून व्यवस्था को बनाए रखना उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी होती है. और, बीट कान्स्टेबल की यह ड्यूटी होती है कि उसके इलाके में कोई अशांति या हिंसा जैसी घटना हो तो तुरंत अपने वरिष्ठ अधिकारी को रिपोर्ट करे.

“वायरलेस संचार का सबसे तेज साधन है. इसलिए अगर एक पुलिसकर्मी या बीट कान्स्टेबल अपने क्षेत्र में हिंसाया किसी अन्य अपराध की सूचना देता है तो वह सूचना वायरलेस के पास मौजूद दिल्ली पुलिस के हर अधिकारी तक पहुंच जाती है. निश्चित रूप से जब रविवार को हिंसा शुरू हुई, तो बीट कान्स्टेबल ने वायरलेस कॉल किए थे. मैंने खुद उन्हें सुना था.&nbsp;
दिल्ली पुलिस में सेवारत आईपीएस अफसर ने क्विंट को बताया

तब उत्तर पूर्व जिले के वरिष्ठ अधिकारियों ने उस पर कार्रवाई क्यों नहीं की? क्यों पुलिस मुख्यालय में बैठे शीर्ष अधिकारियों ने परिस्थिति को नियंत्रण में करने के आदेश नहीं दिए?

जिन 7 पुलिस थानों में सबसे ज्यादा हिंसा हुई उनमें जाफराबाद, भजनपुरा, उस्मानपुर, खजूरी खास, करावल नगर, ज्योति नगर और गोकुल पुरी शामिल हैं. एक थाने में डेढ़ सौ पुलिसकर्मियों होते हैं. जो रिपोर्ट हैं उसके मुताबिक 23 और 24 फरवरी को जब हिंसा चरम पर थी, तब पुलिस ने हर मिनट डिस्ट्रेस कॉल रिसीव किए.

इसलिए कम से कम 1050 पुलिसकर्मियों को हिंसा के बारे में सूचना तत्काल मिल रही थी. चेन ऑफ कमांड के तहत उत्तर पूर्व जिले के सभी तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों- असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (एसीपी), डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस (डीसीपी) और ज्वाइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (ज्वाइंट सीपी)- को ये सूचनाएं पुलिस मुख्यालय में बैठे वरिष्ठ अधिकारियों, जैसे एडिशनल कमिश्नर ऑफ पुलिस स्पेशल कमिश्नर ऑफ पुलिस और अंत में कमिश्नर ऑफ पुलिस तक पहुंचानी होती है. मगर, ऐसा लगता है कि चेन ऑफ कमांड के तहत किसी अधिकारी ने सक्रियता नहीं दिखलायी. सभी दिल्ली को जलते देखते रहे.

दिल्ली पुलिस में सेवारत आईपीएस अफसर ने क्विंट को बताया,

अगर एसएचओ, एसीपी या डीसीपी के पास पर्याप्त पुलिस बल नहीं था तो क्यों नहीं उन्होंने अतिरिक्त बल की मांग की? थोड़े समय में अतिरिक्त बल हिंसा प्रभावित क्षेत्र तक पहुंच सकता था. उत्तर पूर्व जिले में क्या कुछ हो रहा था. मैं उससे पूरी तरह से अवगत था. परिस्थिति का आकलन करते हुए मैंने अपने लोगों को सोमवार की शाम को तैयार कर रखा था, लेकिन अपने शीर्ष अधिकारी के आदेश के बिना अपने दस्ते को मैं नहीं भेज सकता था. आखिरकार मंगलवार की सुबह मुझे हिंसा प्रभावित इलाकों में जाने का आदेश मिला.”
शिव विहार के पार्किंग एरिया में हिंसा के दौरान 50 कारें जलाई गयीं. (फोटो: पूनमअग्रवाल/क्विंट)

‘यह योजनाबद्ध हिंसा थी’

एक और सवाल जो कई लोगों के जेहन में है : क्या यह योजनाबद्ध हिंसा थी? इसके पीछे कौन लोग थे?

दिल्ली पुलिस में सेवारत आईपीएस अफसर ने क्विंट को बताया-

“यह सीएए विरोधी और समर्थकों के बीच टकराव से शुरू हुआ. अलग-अलग जगहों से बाहरी लोग इसमें घुस गये. पत्थरबाजी और कारें जलाए जाने के साथ हिंसा की शुरुआत हुई. लेकिन, बाद में लक्ष्य कर फैलायी गयी हिंसा से यह सांप्रदायिक दंगे में बदल गया. उदाहरण के लिए मैंने खुद देखा कि मुसलमानों की दो दुकानों के बीच एक हिन्दू की दुकान जला दी गयी. इसी तरीके से दंगाइयों ने एक मुसलमान की ज्वेलरी शॉप पर हमला कर दिया, लेकिन पास की बाकी ज्वेलरी शॉप को छुआ तक नहीं.”

अधिकारी ने एक अन्य वाकये का उदाहरण भी रखा, जिससे पता चलता है कि हिंसा पूर्व नियोजित थी. एक बेकरी के भीतर से 50 बोतल पेट्रोल बम बरामद किए गये. आप पार्षद ताहिर हुसैन के घर और पेट्रोल पम्प के पास से विशाल गुलेल बरामद हुए.

दिल्ली पुलिस में सेवारत आईपीएस अफसर ने क्विंट को बताया-

26 फरवरी की शाम बुधवार को स्थानीय विधायक इलाके में हिंसा भड़कने के बाद मुझसे पहली बार मिलने आए. मेरा पहला सवाल था कि इन दिनों आप कहां थे?उन्होंने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया.”

‘डीसीपी, एसीपी और एसएचओ को कई बार कॉल किया लेकिन कोई नहीं आया’

उत्तर पूर्व जिले में सबसे बुरी तरह प्रभावित था शिव विहार. कई स्कूल, दुकानें और घर राख हो गये. हमने अखिल भारतीय अमन कमेटी के प्रमुख से बात की. यह एक एनजीओ है जो पुलिस और लोगों के बीच शांति बनाए रखने के लिए मध्यस्थता का काम करता है. हमने जानने की कोशिश की कि क्यों यह इलाका 3 दिनों तक जलता रहा.

“मुझे शिव विहार से हिंसा की खबर मिली. मैंने रविवार, सोमवार और मंगलवार को लगातार पुलिस को कॉल किए. मैंने गोकुल पुरी केएसीपी, एसएचओ और बीट कान्स्टेबल को कॉल किया. मैंने उत्तर पूर्व जिले के डीसीपी को भी कॉल किया, लेकिन किसी ने मेरी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया. सबने कहा कि हम व्यस्त हैं और फिर कुछ ने अपने फोन बंद कर लिए. जब दंगाई शहर को जला रहे थे पुलिस क्या कर रही थी?”
अखिल भारतीय अमन कमेटी के चेयरमेन असगर अली सैफी
उत्तर पूर्व दिल्ली के शिव विहार में जलाया गया स्कूल. (फोटो: पूनम अग्रवाल क्विंट)

शिव विहार में 25 फरवरी के दिन एक हिन्दू के स्कूल को पूरी तरह खाक कर दिया गया. स्कूल मालिक ने बताया कि उसने पुलिस को घटना के बारे में तुरंत सूचना दी. लेकिन पुलिसकर्मी 24 घंटे बाद स्कूल पहुंचे.

दो मकान छोड़कर एक और स्कूल को तहस-नहस कर जला दिया गया. वह स्कूल एक मुसलमान का था.

आगे क्या?

अब तक दिल्ली पुलिस ने आर्म्स एक्ट के तहत 45 मामलों में केस दर्ज किया है. कई लोगों को गोलियां लगी हैं.

इन लोगों ने कहां से बंदूकें हासिल कीं? क्या ये दूसरे राज्यों से खरीदे गये और उत्तर पूर्व जिले में लाए गये या कि उनके पास पहले से हथियार थे? स्थिति जो हो, पुलिस की नाक के नीचे हथियार या तो लाए गये या फिर बनाए गये.

दिल्ली पुलस में सेवारत एक इंस्पेक्टर ने बताया-

“उत्तर पूर्व जिले के कई घरों में घरेलू पिस्तौल बनाए जाते हैं और मेरी बात पर ध्यान दें, इलाके का एसएचओ इन घरों को पहचानता है.लेकिन उन्हें कुछ करने की इजाजत नहीं है जिसकी स्पष्ट वजह है कि कमीशन कई लोगों के पॉकेट में जाता है. अब आगे किसी हिंसा को रोकने के लिए पुलिस को छापामारी करना चाहिए और उन हथियारों को जब्त करना चाहिए.”

अधिकारी ने आगे बताया कि पुलिस और प्रशासन के लिए यह जरूरी है कि जिन परिवारों ने अपनों को खोया है उन्हें उचित काउंसिलिंग, मदद और न्याय दिलायी जाए.

ये भी पढ़ें- दिल्ली हिंसा पर बोले गुलजार, ये खून-खराबा बर्दाश्त नहीं कर सकता

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 06 Mar 2020,02:27 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT