Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019शैक्षणिक संस्थानों में इस्लामोफोबिया आम बात, मुसलमानों के लिए चिंता का विषय

शैक्षणिक संस्थानों में इस्लामोफोबिया आम बात, मुसलमानों के लिए चिंता का विषय

प्रोफेसर ने एक मुस्लिम लड़के से कहा था कि "तुम जब भी शादी करना, ध्यान देना कि अपनी पत्नी को IUD जरूर लगवाना, क्योंकि मुस्लिम महिलाएं बहुत सारे बच्चे पैदा करती हैं."

फातिमा खान
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>शैक्षणिक संस्थानों में इस्लामोफोबिया आम बात, मुसलमानों के लिए चिंता का विषय</p><p></p></div>
i

शैक्षणिक संस्थानों में इस्लामोफोबिया आम बात, मुसलमानों के लिए चिंता का विषय

(फोटो:क्विंट हिंदी)

advertisement

भारत के विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों के मुस्लिम छात्रों का कहना है कि शिक्षकों द्वारा इस्लामोफोबिया (Islamophobia) को आम बात बना दिया गया है. जब साफिया कर्नाटक के चित्रदुर्गा मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थीं, तब उन्होंने और उनकी क्लासमेट ने सेकेंड ईयर का अधिकतर समय एनाटॉमी क्लास में शरीर के विभिन्न अंगों पर क्लीनिकल टेस्टिंग करते हुए बिताया.

इसी दौरान का एक किस्सा याद करते हुए वे कहती हैं कि क्लास के दौरान एक दिन एनाटॉमी के प्रोफेसर गर्भाश्य पर बात कर रहे थे. इस लेक्चर के दौरान प्रोफेसर ने इंट्रायूट्राइन डिवाइस यानी IUD पर चर्चा शुरू की.

“साफिया ने बताया कि लेक्चर के दौरान प्रोफेसर ने हम सब से कहा 'हम मुस्लिम महिलाओं के लिए आमतौर पर IUD का उपयोग करते हैं, क्योंकि वह बहुत सारे बच्चों को जन्म देती हैं.' फिर, वे एक मुस्लिम छात्र की ओर मुड़े और उससे कहा "तुम जब भी शादी करो, ध्यान देना कि अपनी पत्नी को IUD जरूर लगवाओ क्योंकि मुस्लिम महिलाएं बहुत सारे बच्चे पैदा करती हैं.' यह सुनकर वहां खड़े सभी छात्र स्तब्ध हो गए".

अगले दिन वह मुस्लिम लड़का, जो उस क्लास में मेरे अलावा अकेला मुस्लिम था, क्लास करने नहीं आया. साफिया ने आगे बात करते हुए कहा,

“मुझे लगता है कि प्रोफेसर की बातों से वह लड़का मानसिक रूप से परेशान हो गया होगा, जिसकी वजह से उसने क्लास छोड़ दी."

यह बात नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद यानी की 2015 के शुरुआत की है. साफिया का कहना है कि समय के साथ-साथ इस तरह की बातें सामान्य होती चली गई. शिक्षक से लेकर छात्र कट्टरता में और मुखर होते गए.

साफिया को अपने क्लास की घटना तब याद आई, जब मुजफ्फरनगर में एक शिक्षक द्वारा अपने क्लासमेट से मुस्लिम लड़के की पिटाई करवाने का वीडियो वायरल हुआ.

वायरल वीडियो में शिक्षिका तृप्ता त्यागी क्लास में बच्चों से मुस्लिम छात्रों को एक-एक करके मारने के लिए कहती हैं. वे यह भी कहती सुनी जा रही हैं कि कैसे मुस्लिम माएं अपने बच्चों का ख्याल नहीं रखती हैं, जिसके कारण उन्हें क्लास में खराब नंबर आते हैं.

इस वीडियो के वायरल होने के बाद जब मीडिया ने उनसे सवाल किया कि क्या आपको अपने किए पर कोई पछतावा है तो उन्होंने कहा कि मुझे इस घटना को लेकर “कोई पछतावा नहीं” है.

इस घटना के अगले सप्ताह में दो ऐसी और घटना देखने को मिली. दिल्ली और कर्नाटक से इस्लामोफोबिक स्पीच की घटनाएं सामने आईं. आरोप है कि दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में 'देशभक्ति' का कोर्स पढ़ाने वाली हेमा गुलाटी ने मुस्लिम छात्रों से कहा...

“मुसलमानों की भारत की आजादी में कोई भूमिका नहीं है... तुम जानवरों को काटते हो और उसे खाते हो... तुम लोगों में दया नाम की कोई चीज नहीं है”.

इसके अलावा, कर्नाटक के शिवमोग्गा में पांचवी क्लास के सरकारी स्कूल की शिक्षिका ने दो मुस्लिम छात्रों को “पाकिस्तान जाने” के लिए कह दिया. हालांकि इस घटना के सामने आने पर उक्त शिक्षिका का तबादला कर दिया गया.

गौरतलब हो कि ये वो घटनाएं हैं जो सुर्खियां बनीं, लेकिन आपको बता दें कि इस तरह की घटनाएं अब बहुत सामान्य हो गई हैं. कई छात्रों का मानना है कि पिछले कुछ सालों में ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं. इस मुद्दे पर 'द क्विंट' ने देश के अलग-अलग हिस्सों के मुस्लिम छात्रों से 2014 के बाद के स्कूल और कॉलेजों में उनके अनुभवों के बारे में बात की. बात करने पर मुस्लिम छात्रों ने कहा कि उन्हें लगता है कि 2014 के बाद उनके साथियों और शिक्षकों में इस्लामोफोबिया और कट्टरता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.

"हिंदुओं जाग जाओ"- शिक्षक ने शेयर की फेक न्यूज

फरवरी 2022 मे0 अंजुम को दिल्ली के सुखदेव विहार में देव समाज मॉडर्न स्कूल 2 की कक्षा नौ के एक व्हाट्सएप ग्रुप की चैट का स्क्रीनशॉट मिला. इस स्क्रीनशॉट में क्लास टीचर ने एक हत्या कर दी गई महिला का वीडियो साझा किया था. इसमें, वीडियो के साथ लिखा था कि "सूरत में एक हिंदू लड़की को दिनदहाड़े एक मुस्लिम ने चाकू से काट कर हत्या कर दी."

इसमें आगे लिखा था कि “हिंदुओं जाग जाओ, एकजुट होने का समय आ गया है... अपने बच्चों को बचाओ और उनके लिए लड़ो…”.

आगे बात करते हुए अंजुम ने कहा कि बाद में पता चला कि क्लास टीचर द्वारा व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा किया गया वीडियो फर्जी था, क्योंकि उक्त महिला का हत्यारा कोई मुस्लिम नहीं था.

शिक्षक द्वारा शेयर की गई फेक न्यूज

जब ग्रुप से जुड़े छात्रों ने इस फर्जी खबर पर आपत्ति जताई तो उस शिक्षिका ने मैसेज डिलीट कर दिया. लेकिन गलती से उनका मैसेज ‘सभी के लिए डिलीट’ होने के बजाए ‘केवल अपने लिए डिलीट’ हो गया. कुछ साल पहले देव समाज मॉडर्न स्कूल 2 से पढ़कर निकली अंजुम ने कहा कि उनके समय में स्कूल में ऐसी घटनाएं नहीं होती थीं. टीचर द्वारा इस फर्जी खबर को व्हाट्सएप ग्रुप में शेयर करने की घटना से हम सभी पूर्व-छात्र नाराज और आहत थे. इस कारण स्कूल प्रिंसिपल को माफी मांगनी पड़ी. हालांकि, वह शिक्षिका अभी भी उसी स्कूल में पढ़ा रही हैं.

'जय श्रीराम' के नारे और शिक्षकों की मौन स्वीकृति

कई छात्रों ने बताया कि कैसे स्कूलों में 'जय श्रीराम' के नारे लगाना अब 'सामान्य' हो गया है. उमर जो कि महाराष्ट्र के यवतमाल में प्रतिष्ठित ऑल-बॉयज स्कूल दीनबाई विद्यालय में पढ़ते थे. उन्होंने बताया कि मेरे स्कूल में मुझ सहित पांच मुस्लिम छात्र थे. हम मुस्लिम छात्रों को स्कूल में एक तरह की अनकही “दूरी” का सामना करना पड़ता था. “उदाहरण के तौर पर मेरी क्लास में पढ़ने वाले अन्य बच्चे हम मुस्लिम छात्रों के बोतलों से न तो पानी पीते थे और न ही हमारे टिफिन बॉक्स से खाना खाते थे”. उन्होंने आगे कहा कि...

“ऐसा नहीं है की हम मुस्लिम छात्र स्कूल में नॉन-वेज खाना ले जाया करते थे, उस स्कूल में कोई भी छात्र नॉन-वेज खाना नहीं ले जाता था. एक तरह से इसे ऐसे समझा जा सकता है कि यह एक अघोषित नियम बन गया था कि हिंदू छात्र, मुस्लिम छात्रों के लंच बॉक्स से न कुछ खाएंगे और न ही उनकी बोतलों से पानी पिएंगे”.

उमर जो कि अब 22 साल के हो चुके हैं, उन्होंने हमें आगे बताया कि 2014 के बाद हालात काफी गंभीर हो गए हैं. छात्र स्कूल में किसी भी समय, सुबह की सभा के बाद या अंतिम क्लास के बाद या गेस्ट टीचर की क्लास के बाद एकजुटकर होकर 'जय श्री राम' का नारा लगाना शुरू कर देते थे. “वह हमारे आसपास आक्रामक तरीके से नारे लगाते थे...और हम (मुस्लिम छात्र) अगर चाहते तो भी ‘अल्लाहु अकबर’ का नारा नहीं लगा सकते थे.

इसमें सबसे भयावह और दुखद बात तो यह थी कि हमारे स्कूल के शिक्षक बस इसे होते हुए देखते रहते थे. वह इसपर कार्रवाई या रोक लगाने के बजाए इसे होते देख या तो मुस्कुरा देते थे या अनदेखा कर देते थे. इसलिए ऐसा कहा जा सकता है कि विद्यार्थियों के इस तरह के व्यवहार के प्रति शिक्षकों की एक प्रकार की मौन स्वीकृति थी”.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

शिक्षकों की “मौन स्वीकृति” धीरे-धीरे और अधिक पूर्वाग्रह में बदलती चली गई

जब उमर नौवीं कक्षा में पढ़ते थे, तब उनकी संस्कृत विषय की शिक्षिका अपने छात्रों से श्लोकों का जाप कराती थीं. उमर ने हमें बताया कि...

“एक मुस्लिम छात्र जो भाषा के सभी विषयों में कमजोर था, उसे संस्कृत के श्लोक बोलने में दिक्कत हो रही थी. शिक्षिका ने उसे और उसके साथ बैठे दूसरे मुस्लिम लड़के को टोकते हुए कहा ‘तुम (मुस्लिम) लड़के श्लोकों का उच्चारण करने से क्यों डरते हो?."

इसके बाद टीचर ने दोनों लड़कों को अलग-अलग बैठाया और सबके सामने अपमानित भी किया. जबकि दूसरे मुस्लिम विद्यार्थी श्लोकों का जाप बेहतर ढंग से कर रहे थे. कई हिंदू छात्र संस्कृत विषयों में कमजोर थे, लेकिन उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं थी”.

उमर ने आगे कहा कि मैं संस्कृत में टॉपर था, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारी टीचर को ये बहुत अधिक पसंद आया होगा”.

'मुसलमान अपनी लड़कियों को पढ़ने नहीं देते' जैसी हेटफुल टिप्पणियां

छात्रों ने हमसे बात करते हुए कहा कि मुस्लिम बहुल स्कूल भी गैर-मुस्लिम शिक्षकों के इस्लामोफोबिक कृत्य से सुरक्षित नहीं हैं. AMU की एक छात्रा महविश असीम ने अपनी स्कूली शिक्षा उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के सुपर इंटरनेशनल स्कूल से पूरी की है.

द क्विंट से बात करते हुए उन्होंने कहा कि जब वह 10वीं कक्षा में थीं, तब एक शिक्षक ने उनसे और उनके बाकी सहपाठियों से कहा था कि “मुसलमान अपनी लड़कियों को नहीं पढ़ाते हैं”.

महविश ने शिक्षक द्वारा कही हुई बात को याद करते हुए कहा कि “तुम लोग तो शादी करके चली जाओगी, तुम्हारे धर्म में औरतों को पढ़ने ही नहीं देते”.

कुछ छात्रों ने हमसे बात करते हुए बताया कि कैसे शिक्षकों ने आतंकवादी संगठनों के बारे में बातचीत में उन्हें विशेष रूप से चिन्हित किया.

अबुजर ने हमसे बात करते हुए कहा कि 2014 में सीरिया के कुछ हिस्सों पर आतंकी संगठन ISIS ने कब्जा कर लिया था. इस विषय पर चर्चा के दौरान, सुल्तानपुर के एक स्कूल में गणित के शिक्षक ने उनकी ओर रुख किया और कहा, “अमेरिका निश्चित रूप से ISIS को नष्ट कर देगा”. अबुजर ने आगे कहा कि जब उन्होंने जवाब में उनसे पूछा कि आपने यह बात कहते हुए सिर्फ मुझे ही क्यों संबोधित किया? इस सवाल का उनके पास कोई जवाब नहीं था.

‘ब्लडी मुसलमान'-मुस्लिम छात्रों को अपने क्लासमेट, दोस्तों से इस्लामोफोबिया का सामना करना पड़ता है

कई छात्रों ने कहा कि उन्होंने न केवल अपने शिक्षकों से, बल्कि अपने सहपाठियों से भी इस्लामोफोबिक टिप्पणियां सुनीं, जिनमें से कुछ उनके दोस्त भी थे.

गौरतलब हो कि 2016 में जब फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ रिलीज होने वाली थी, तब फिल्म में पाकिस्तानी एक्टर फवाद खान की भूमिका को लेकर एक बड़ा विवाद हुआ था. उसी साल की शुरुआत में उरी हमले के बाद पाकिस्तानी कलाकारों के भारत में काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

मसूरी में लड़कियों के स्कूल की एक छात्रा 2016 में घटित हुई एक घटना को याद करते हुए बताती हैं कि...

एक दिन हम दोस्तों का एक ग्रुप इसी मुद्दे पर चर्चा कर रहा था. इस चर्चा के दौरान मैंने कहा कि आर्टिस्ट को उस चीज की सजा नहीं देनी चाहिए, जिनसे उनका कोई लेना-देना नहीं है. यह सुनते ही मेरी सबसे करीबी दोस्त ने जोश में आकर कहा कि “ये ब्लडी मुसलमान यहां (हिंदुस्तान) आ सकते हैं और पैसा कमा सकते हैं”.

आगे बात करते हुए छात्रा ने कहा “फिर उसने मेरे चेहरे के भाव देखे और तुरंत कहा, "सॉरी, मेरा मतलब पाकिस्तानियों से था, मुसलमानों से नहीं”. लेकिन मुझे पता था कि उसका क्या मतलब था”.

2013 से 2016 तक झारखंड के जमशेदपुर में करीम सिटी कॉलेज में बीए मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई के दौरान हुई घटना को याद करते हुए एक्वालीमा बताती हैं “उनके एक सहपाठी ने उन्हें 'अल कायदा' कहना शुरू कर दिया था.

“यह बात परिचय सत्र (introduction session) के ठीक बाद की है. इंट्रोडक्शन सेशन के बाद अचानक से उनकी एक क्लासमेट मुड़ी और बोली, आपका नाम मुझे अलकायदा की याद दिलाता है. और फिर वह अगले तीन सालों तक मुझे इसी नाम से बुलाती रही."
एक्वालीमा

शुरुआत में जब एक्वालीमा ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की तो उसके अन्य क्लास्मेट्स ने कहा कि वह “केवल मजाक कर रही थी”. हालांकि, उसने पूरे कोर्स के दौरान मुझे इसी नाम से बुलाना जारी रखा. “मैं तब बहुत छोटी थी और मुझमें उसे रोकने या उससे लड़ने का आत्मविश्वास नहीं था, काश यह मेरे पास होता”.

पिछले कुछ हफ्तों में जब से मुजफ्फरनगर स्कूल का वीडियो वायरल हुआ है, एक्वालिमा ने उस दोस्त से कॉन्टेक्ट करने के बारे में सोचा है.

द क्विन्ट से बात करते हुए एक्वालीमा आगे कहती हैं “जब भी कभी इस तरह की कोई घटना खबरों में आती है, तो स्कूल और कॉलेज की सभी दर्दनाक यादें ताजा हो जाती हैं. मैं उस दोस्त को मैसेज भेजने और यह बताने कि सोच रही हूं कि उसने जो किया वह स्वीकार्य नहीं था. लेकिन मुझे डर है कि कहीं मेरी यह बात अनसुनी न हो जाए”.

हमसे बात करते हुए कुछ छात्रों ने बताया कि उन्हें कई बार हाथापाई और मारपीट का भी सामना करना पड़ा है. 23 साल की सेलिना ने स्कूली पढ़ाई असम के गुवाहाटी के पास सोनापुर कॉलेज से की है. उन्होंने कहा कि 2016 में, जब वह 11वीं कक्षा में थी, और कंपकंपाती ठंड से खुद को बचाने के लिए अपने कानों और सिर के चारों ओर एक स्टोल लपेट रखा था.

तभी “मेरे कुछ सहपाठियों ने सोचा कि मैंने हिजाब पहना हुआ है. एक ने मेरे हाथ और दूसरे ने मेरे पैर पकड़ लिए और तीसरे ने जबरदस्ती स्टोल उतारना शुरू कर दिया. सेलिना ने आगे कहा कि मेरे दोस्तों ने कहा, 'ज्यादा शर्म मान रही है' (तुम अचानक अपने धर्म का इतना अधिक पालन कैसे करने लगी?). मैं विरोध करती रही लेकिन वे तब तक नहीं रुके, जब तक उन्होंने मेरे स्टोल को हटा नहीं दिया.”

शिक्षकों के एंटी मुस्लिम स्पीच से छात्रों पर गहरा प्रभाव: नाजिया एरम

विशेषज्ञों का मानना है कि कक्षाओं में छात्रों को जिस इस्लामोफोबिक बुलिंग (Islamophobic bullying) का सामना करना पड़ता है, उसका गहरा असर पड़ता है.

‘Mothering a Muslim’ की लेखिका नाजिया एरम कहती हैं कि...

“बुलिंग आम बात है लेकिन जब इसे धर्म के साथ जोड़ दिया जाता है और एक युवा छात्र को दुनिया की सभी गलतियों के लिए दोषी ठहराया जाता है. जैसे आतंकवाद, राष्ट्र-विरोध, और सभी बचकाने आरोप, जो अक्सर यंग माइंड के लिए समझ से परे होते हैं, तब यह खतरनाक हो जाता है और यह अक्सर एक स्थायी प्रभाव छोड़ता है”.

एरम ने आगे कहा, “बढ़ते हार्मोन, टीनेज इगो और टेलीविजन की अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत भरी भाषा, गलत सूचना और दुष्प्रचार वही कॉकेटल से भरी दुनिया है, जिसे हम अपने बच्चों को बचाने चाहेंगे.

एरम की किताब 2017 में प्रकाशित हुई थी. अपनी किताब के लेखनी के शोध के दौरान उन्होंने पाया कि मुस्लिम छात्रों को अपने साथियों के साथ-साथ शिक्षकों के हाथों भी बुलिंग का सामना करना पड़ता है. और “जब शिक्षक ही छात्रों के साथ इस तरह की हरकत करने लगे तो उनके पास शिकायत करने के लिए कोई रास्ता नहीं बचता है.

एरम आगे कहती हैं कि शिक्षक को 'गुरु' के रूप में हमेशा से जाना जाता है. जब शिक्षक कहता है कि तुम्हारा कोई भविष्य नहीं है क्योंकि तुम बड़े होकर जिहादी बनोगे, तो किसी भी छात्र पर इसका प्रभाव बहुत गहरा होता है. यह सिर्फ बुलिंग नहीं है”.

एरम ने कहा कि यह सुनिश्चित करना सभी की जिम्मेदारी है कि कक्षा में मुस्लिम विरोधी बुलिंग बंद हो.

“यह समाधान केवल तभी हो सकता है, जब हम सामूहिक रूप से भारत में बढ़ रही एक पीढ़ी के भविष्य की जिम्मेदारी ले. यह केवल अकेले मुस्लिम बच्चों के बारे में नहीं है. यह सभी बच्चों के बारे में है, क्योंकि नफरत किसी को भी नहीं बख्शती है. सांप्रदायिकता के प्रति शून्य सहिष्णुता सुनिश्चित करने में स्कूलों की महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन स्कूल अकेले इस लड़ाई को नहीं लड़ सकते.”

एरम ने आगे बात करते हुए कहा, “हमारा काम हमारे अपने बेडरुम और ड्राइंग रूम से शुरू होता है. बच्चे केवल अपने बड़ों की नकल कर रहे हैं. समाधान हमारे अंदर से आना चाहिए”

(द क्विंट में, हम सिर्फ अपने पाठकों के प्रति जवाबदेह हैं. सदस्य बनकर हमारी पत्रकारिता को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाएं. क्योंकि सच का कोई विकल्प नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT