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सुप्रीम कोर्ट ने 31 जनवरी को कांग्रेस सांसद जयराम रमेश की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा, जिसमें सूचना का अधिकार (संशोधन) कानून, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. याचिका में कहा गया है इस संशोधन के जरिए सरकार को सूचना आयुक्तों का कार्यकाल, वेतन और भत्ते तय करने का अधिकार दिया गया है, जो सूचना आयुक्तों की स्वतंत्रता के लिए खतरनाक है.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और केएम जोसेफ की पीठ ने इस संबंध में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और याचिका पर चार हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.
राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने अपनी दलील में कहा कि आरटीआई संशोधन कानून, 2019 और सूचना का अधिकार (पदाधिकारी का कार्यकाल, वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें) नियम, 2019 सभी नागरिकों के सूचना के मौलिक अधिकार का “सामूहिक रूप से उल्लंघन” करता है, जिसकी गारंटी संविधान ने दी है.
जयराम रमेश की ओर से याचिका दायर करने वाले वकील सुनील फर्नांडिस ने कहा कि
याचिका में कहा गया है कि संशोधित कानून की धारा 2(सी) केंद्र सरकार को केंद्रीय सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और कार्यकाल तय करने का अधिकार देती है, जो कि इससे पहले आरटीआई कानून की धारा 13 (5) के तहत चुनाव आयुक्तों के पास था.
संशोधित अधिनियम और नियमों का हवाला देते हुए कहा गया है कि केंद्र की "बेलगाम और अनियंत्रित" विवेकाधीन शक्ति सूचना आयुक्तों की स्वतंत्रता को खतरे में डालती है.
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