advertisement
जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के सैकड़ों छात्रों ने 13 जनवरी को वाइस चांसलर नजमा अख्तर के ऑफिस का घेराव किया. इस दौरान छात्रों ने पिछले महीने कैंपस में हुई हिंसा के संबंध में दिल्ली पुलिस के खिलाफ FIR किए जाने की मांग की. इसके अलावा उन्होंने परीक्षाओं के समय में बदलाव और छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित किए जाने की भी मांग की.
मेन गेट का ताला तोड़कर छात्र ऑफिस परिसर में पहुंच गए और वहां उन्होंने अख्तर के खिलाफ नारे लगाए.
इस बीच गुस्साए छात्रों ने दावा किया कि हिंसा के बाद उन्हें हॉस्टल खाली करने के लिए नोटिस दिए गए थे, हालांकि अख्तर ने इस आरोप को मानने से इनकार कर दिया.
अख्तर ने न्यूज एजेंसी एएनआई से कहा, ''NHRC की एक टीम पहले ही कैंपस का दौरा कर चुकी है और हमने उनको जरूरी सबूत मुहैया करा दिए हैं. एक टीम 14 जनवरी को फिर से यूनिवर्सिटी का दौरा करेगी. ''
उन्होंने कहा कि NHRC 15 दिसंबर के हिंसा मामले में घायल छात्रों और चश्मदीदों के बयान दर्ज करेगा. उन्होंने कहा, ''मुझे उम्मीद है कि वे हमारे नजरिए से चीजों को देखने की कोशिश करेंगे.''
परीक्षाओं को लेकर उन्होंने कहा, ''मैं छात्रों से अपनी अपनी करती हूं कि वो किसी भी परीक्षा को ना छोड़ें और अपने भविष्य को बर्बाद ना करें. जब आप विरोध प्रदर्शन करते हो तो दूसरे लोग उसका फायदा उठाते हैं.
संबंधित अधिकारियों के मुताबिक, 15 दिसंबर को जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के पास न्यू फ्रैंड्स कॉलोनी में नागरिकता संशोधित कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झड़प हुई, जिसके बाद प्रदर्शनकारियों ने सरकारी बसों और पुलिस वाहनों को आग के हवाले कर दिया.
हिंसा के ठीक बाद, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मुख्य प्रॉक्टर वसीम अहमद खान ने दावा किया कि दिल्ली पुलिस बिना किसी इजाजत के जबरन कैंपस में घुसी और छात्रों, स्टाफ कर्मचारियों की पिटाई कर उन्हें जबरन कैंपस से बाहर किया गया.
वहीं, दक्षिण पूर्व दिल्ली के पुलिस उपायुक्त चिन्मय बिस्वाल के मुताबिक, प्रदर्शन के दौरान यूनिवर्सिटी कैंपस से पुलिस पर पत्थरबाजी की गई, जिसके बाद उन्हें भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)