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जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) में शनिवार-रविवार की दरम्यानी रात जम्मू हवाईअड्डे पर वायु सेना के अधिकारक्षेत्र वाले हिस्से में दो धमाके होने से कुछ चिंताजनक सवाल उठ रहे हैं. इन धमाकों को जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिलबाग सिंह ने आतंकवादी हमला करार दिया है.
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने बताया है, ''पिछले कुछ सालों में, हमने हथियारों और विस्फोटकों को गिराने के लिए ड्रोन के इस्तेमाल में बढ़ोतरी देखी है. हमने उन्हें, बाद में इस्तेमाल के लिए असेंबल किए गए आईईडी को गिराते हुए भी देखा है. (हालांकि) जम्मू अटैक ऐसा पहला उदाहरण है, जिसमें सीधे तौर पर हमले के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है.''
नानोडकर ने कहा, ''हमें अपनी निगरानी क्षमताओं को बढ़ाने की जरूरत है, विशेष रूप से छोटे ड्रोन के रडार सिग्नेचर का पता लगाने के लिए, जो बड़ा नुकसान पहुंचाने में सक्षम हैं. सेना को ड्रोन रोधी क्षमता में भी निवेश करने की जरूरत है.''
भारत में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने दुश्मन के ड्रोन को निष्क्रिय करने या मार गिराने के लिए एंटी-ड्रोन सिस्टम विकसित किया है. इस सिस्टम की तैनाती पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के दौरान दिल्ली के लालकिले पर की गई थी. यह किसी भी ड्रोन की कमान और नियंत्रण प्रणाली को जाम कर सकता है या लेजर आधारित ऊर्जा अस्त्रों के जरिए किसी भी ड्रोन की इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था को नष्ट कर सकता है. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, इस सिस्टम के पास ड्रोन का पता लगाने के लिए रडार क्षमता के साथ दो से तीन किलोमीटर की रेंज होती है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि पिछले कुछ सालों से बीएसएफ ड्रोन को निष्क्रिय करने के लिए नवीनतम तकनीक की खरीद के लिए गृह मंत्रालय पर दबाव डाल रहा है - खासकर, जनवरी 2020 में अमेरिकी ड्रोन हमले में ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद.
एक बीएसएफ अधिकारी ने कहा, ''निगरानी करने वाले ड्रोन अक्सर दिखते रहते हैं. कभी-कभी तो रोजाना 10-15 बार दिखते हैं. लेकिन वजन ढोने वाले ड्रोन गंभीर खतरा हैं.''
एक अधिकारी ने बताया, ''कुछ फोर्स ने ड्रोन निष्क्रिय करने वाली तकनीक खरीदी है, लेकिन वे एरिया-स्पेसिफिक हैं. हम अपनी सीमा के पार एक दीवार चाहते हैं जो रेडियो फ्रीक्वेंसी को काट सके और जीपीएस को निष्क्रिय कर सके.''
इसके आगे उन्होंने कहा, ''मौजूदा वक्त में, ड्रोन को मार गिराने का ही विकल्प है, लेकिन ऐसा करने से ज्यादा ऐसा बोलना आसान है क्योंकि इसके लिए स्नाइपर फायर और ड्रोन का रेंज के अंदर होना जरूरी है. इसके अलावा, ड्रोन को देख पाना, खासकर रात में, आसान नहीं है.''
हालांकि रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से यह भी बताया गया है कि जरूरी तकनीक हासिल करने के लिए "पूरे जोरों" पर काम चल रहा है.
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