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जम्मू-कश्मीर में वित्त मंत्री हसीब द्राबू की बर्खास्तगी ने बीजेपी और पीडीपी गठबंधन की सरकार पर सवाल खड़े कर दिए हैं. बर्खास्तगी के बाद बीजेपी आलाकमान ने भी जम्मू-कश्मीर के अपने नेताओं को दिल्ली तलब किया. दरअसल, हसीब द्राबू ही वो शख्स हैं जिन्होंने बीजेपी सेक्रेटरी राम माधव के साथ मिलकर इस गठबंधन की नींव रखने में अहम रोल निभाया था.
गठबंधन पर सवालिया निशान के उभरने की कई वजहें हैं. हाल के घटनाक्रम को देखें तो सीएम महबूबा मुफ्ती खुलकर कई मुद्दों पर बीजेपी का विरोध करती नजर आई हैं.
कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन के 3 साल हो चुके हैं. साल 2019 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. 2020 में राज्य में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. माना जा रहा है कि चुनावी मौसम नजदीक आते ही मुफ्ती गठबंधन के न्यूनतम साझा कार्यक्रम के एजेंडे को छोड़कर अपने कोर कट्टर एजेंडे की राजनीति की तरफ वापस आना चाहती हैं.
पीडीपी में द्राबू (57) की हैसियत वरिष्ठ नेता की थी. साल 2015 में जम्मू-कश्मीर के वित्तमंत्री बने द्राबू को पीडीपी की कोर टीम का हिस्सा माना जाता रहा है. धारा 370 के तहत राज्य के पास विशेष दर्जा होने के बावजूद उन्होंने बीजेपी सरकार की जीएसटी योजना को लागू करवाने में भी बड़ी भूमिका निभाई.
कई सालों से पार्टी के साथ बने रहे वरिष्ठ नेता को एक विवादित बयान पर नोटिस दिए जाने के 24 घंटे के भीतर आनन-फानन में निकाला जाना सवाल खड़े कर रहा है. द्राबू का खुद कहना है कि उनको हटाने का फैसला स्तब्ध करने वाला था.
उन्होंने कहा था-
जबकि पीडीपी मानती है कि जम्मू कश्मीर एक राजनीतिक मुद्दा है और इसका समाधान भी राजनीतिक तौर से ही निकलना है.
मुफ्ती के इस कदम से उनकी मजबूत और कड़े फैसले लेने वाली पार्टी हेड की इमेज बनी है. गठबंधन से नाराज जनता के बीच खोई राजनीतिक जमीन हासिल करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा सकता है.
जनवरी 2018 में शोपियां फायरिंग केस में सेना के जवानों और मेजर आदित्य पर एफआईआर के बाद भी पीडीपी और बीजेपी के बीच तनातनी हो गई. घाटी में इसे लेकर तनाव काफी बढ़ गया और सेना के खिलाफ कई विरोध-प्रदर्शन हुए.
विधानसभा में बीजेपी ने एफआईआर में से मेजर का नाम हटाने की मांग की थी. बीजेपी का कहना था कि इससे सेना का मनोबल गिरेगा. लेकिन सीएम महबूबा मुफ्ती ने इसे खारिज कर दिया. और कहा था कि जांच को तार्किक नतीजे तक पहुंचाया जाएगा.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मेजर आदित्य के खिलाफ सभी जांच पर रोक लगा दी है. मामले में अगली सुनवाई अब 24 अप्रैल को होनी है.
इस बीच कठुआ में हुए 8 साल की मुस्लिम बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या की घटना पर भी सियासत जारी है.
महबूबा मुफ्ती सरकार ने 23 जनवरी को बच्ची को अगवा कर हत्या करने के मामले की जांच के आदेश दिए थे और मामले को राज्य पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंप दिया था. जबकि बीजेपी राज्य सरकार के कानून-प्रशासन पर सवाल उठाते हुए इस मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रही है.
खबरों के मुताबिक 2 बीजेपी नेताओं ने हिंदू एकता मंच की रैली में हिस्सा लिया था. ये रैली सीबीआई जांच की मांग को लेकर निकाली गई थी. साथ ही ये भी मांग की गई थी कि फिलहाल खजुरिया पर लगे रेप मामले वापस ले लिए जाएं. लेकिन महबूबा मुफ्ती ने सिरे से इस मांग को खारिज कर दिया.
उन्होंने इसे लेकर ट्वीट भी किया.
बता दें, हिंदू एकता मंच के हेड विजय कुमार शर्मा बीजेपी के स्टेट कमेटी मेंबर हैं.
इन तमाम ताजा घटनाक्रम को देखते हुए लग रहा है कि भले ही राज्य में 2015 में बनी बीजेपी-पीडीपी गठबंधन अपने मिडटर्म में हो पर कहीं मंझधार में ना फंस जाए. दोनों पार्टियां कई मुद्दों को लेकर आमने-सामने विपक्ष के तौर पर खड़ी नजर आ रही है.
खासतौर पर सीएम महबूबा मुफ्ती के बयान और ट्विटर के जरिए लोगों तक इन मुद्दों पर मजबूती से अपनी बात पहुंचाने की कवायद सिग्नल दे रही है कि गठबंधन का अस्तित्व खतरे में है.
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