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झारखंड लॉकडाउन: किसानों ने क्यों दी आत्महत्या की चेतावनी  

झारखंड के किसानों की बदहाली पर ओरमांझी, बुंडू, तमाड़ और लोहरदगा से रिपोर्ट

मोहम्मद सरताज आलम
भारत
Published:
लोहरदगा में बर्बाद होती गोभी की फसल और तमाड़ में मंडी का राह देखती बैंगन की फसल
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लोहरदगा में बर्बाद होती गोभी की फसल और तमाड़ में मंडी का राह देखती बैंगन की फसल
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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झारखंड की राजधानी रांची के आसपास के 10 गांव के किसानों ने सरकार को चिट्ठी लिखकर कहा है कि अगर उन्हें मदद नहीं मिली तो वो आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाएंगे. ये चिट्ठी मिलने के बाद सरकार सकते में है और इनकी मदद के निर्देश दिए गए हैं. लेकिन समस्या सिर्फ दस गांवों की नहीं है. पूरे राज्य का यही हाल है. लॉकडाउन के कारण सब्जियां खेतों में खराब हो रही हैं. कुछ सब्जियां हैं जो एकदम तैयार हैं और मंडी तक नहीं पहुंची तो किसानों की जान पर बन आएगी..

रांची जिले के बुंडू, तमाड़, नगड़ी, बेड़ो, इटकी, चान्हो, मांडर, ठाकुरगांव, बिजूपाड़ा गांव के किसानों ने आत्मत्या की चेतावनी दी तो हरकत में आई सरकार(फोटो: क्विंट हिंदी)

झारखंड के किसान बारिश में कमी और असमय ओला से पहले ही परेशान थे. अब रही सही कसर लॉकडाउन ने पूरी कर दी. किसानों की समस्या जानने के लिए क्विंट ने झारखंड के अलग-अलग इलाकों में किसान का हाल जाना..

लोहरदगा

लोहरदगा एक ऐसा इलाका है, जहां महीनों से किसान परेशान है. पहले दंगों के कारण काम रुका और अब लॉकडाउन.

<b>CAA/NRC से जुड़े दंगों के कारण पहले धनिया और गोभी की फसल बर्बाद हुई. अब लॉकडाउन के कारण 25 क्विंटल गाजर खराब हो रहा है.एक क्विंटल गोभी लेकर हाट गया था, कोई खरीदार नहीं मिला. अगली फसल के लिए खाद चाहिए. क्या करूं समझ में नहीं आता? बेटे की इंजीनियरिंग के लिए 5 लाख लोन लिया था. सोचा था कि फसल हुई तो बेचकर कर्ज चुकाऊंगा, अब बैंक वाले परेशान कर रहे हैं</b>
<b>गोपाल महतो, किसान, लोहरदगा जिला, झारखंड</b>
लोहरदगा में गोपाल महतो की खराब होती गोभी की फसल(फोटो: क्विंट हिंदी)
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ओरमांझी

रांची के पास ओरमांझी में 35 एकड़ खेत में तरबूज़ की खेती करने वाले बैजनाथ महतो कहते हैं कि लॉक डाउन की वजह से उन्हें बड़े नुकसान का डर सता रहा है.

<b>हमारे प्रखंड में आधा दर्जन हाट हर दिन लगते रहे हैं. लॉकडाउन के कारण हाटों में सब्जी जा ही नहीं रही. दूसरे जिलों और राज्यों में भी सब्जियां जाती थीं, वो भी बंद है. तरबूज की फसल तैयार है, अगर 14 अप्रैल के बाद लॉकडाउन नहीं खुला तो सब पानी हो जाएगा. </b>
<b>बैजनाथ महतो, किसान, ओरमांझी</b>
ओरमांझी में बैजनाथ महतो की 35 एकड़ खेत में तरबूज की फसल तैयार होगी तो कहां जाएगी?(फोटो: क्विंट हिंदी)
जमशेदपुर में लॉकडाउन से पहले हर दिन आलू 15 और प्याज 5 ट्रक आता था. अब आलू 5 और प्याज बड़ी मुश्किल से 1 ट्रक आ रहा है. सब्जी रोज 60 गाड़ी आती थी. बड़काकाना पैसेंजर से लगभग 20 ट्रक सब्जी आती थी. ट्रेन तो फिलहाल बंद है. सात से आठ डाला बोलेरो से सब्जी किसी तरह पहुंच रही है
राजा के शॉ, बाजार समिति, जमशेदपुर

बुंडू-तमाड़

तमाड़ प्रखंड के किसान हलधर महतो कहते हैं कि 17 मार्च के बाद यहां सब्ज़ी की खपत कम होने लगी और 20 मार्च के बाद तो ठप हो गई है. इस समय सबसे बड़ा मसला व्यापारियों का कम पहुंचना है.

<b>किसानों के सामने पहला मसला यह है कि खेतों से सब्ज़ियां कहां ले जाएं? किसी तरह सुबह सवेरे बुंडू हाट तक सब्ज़ियां ले भी जाएं, तो मुश्किल यह है कि खरीदेगा कौन? लॉकडाउन के कारण हाटों के खुलने और बंद होने का समय है. व्यापारी आखिरी समय तक इंतजार करते हैं. जैसे ही समय खत्म होने लगता है, औने-पौने भाव लगाते हैं.</b>
<b>रंजीत मोदक, किसान, बुंडू </b>
तमाड़ में हलधर महतो की खेतों में तैयार बैगन की फसल

क्या कर रही है सरकार?

हमने किसानों की बदहाली को लेकर अफसरों से बात की. लेकिन बातचीत का सार  यही निकला कि अभी पूरा अमला कोरोना की चिंता में है. किसान उनकी प्राथमिकता में हैं ही नहीं.

सबसे बड़ी दिक्कत कोरोना वायरस में है, जान बचाना सबसे ज़रूरी है. फिर भी हमने छोटे किसानों को सुविधा प्रदान की है. बड़े किसान 10 से 20 दिनों का नुकसान झेल कर सकते हैं. कुछ हाट खोल रहे हैं.&nbsp; कोल्ड स्टोरेज है. तरबूज&nbsp; को बाहर ले जाने के लिए हम परमिट देंगे.
अशोक सिन्हा, जिला कृषि अधिकारी,&nbsp; रांची

क्विंट ने विशेष सचिव, ग्रामीण विकास विभाग झारखण्ड, राजीव कुमार से किसानों के हालात जानने के लिए संपर्क किया. उनका जवाब था कि वो कोरोना पर जागरूकता का काम देख रहे हैं, रोजी-रोटी, महिलाओं और बच्चों पर ध्यान दे रहे हैं. ये हाल तब है जब राजीव कुमार आर्गेनिक फार्मिंग के डायरेक्टर हैं. उनको मार्केटिंग की भी ज़िम्मेदारी मिली हुई है. आर्गेनिक फार्मिंग एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के अधीन है. इसके तहत झारखण्ड के हज़ारों किसान रजिस्टर्ड है.

तो इलाज क्या है?

राज्य में खेती बाड़ी के क्षेत्र में काम करने वाले जानकारों का कहना है कि झारखंड का किसान पहले से ही परेशान है. सिंचाई की कमी, बारिश की कमी, बिचौलिए और अब लॉकडाउन ने उनकी कमर तोड़ दी है.

हर महीने पूरे झारखंड से 160 करोड़ का व्यापर सब्ज़ियों के सहारे होता था. पहले ओला से लेकर बरसात की कमी से कृषि की स्थिति बिगड़ी, उसके बाद अब लॉकडाउन. किसानों की बदहाली का कारण है सरकार की वादाखिलाफी. आज वादे के मुताबिक कोल्ड स्टोर होते तो सब्जियां बच जातीं.
प्रफुल लिंडा, किसान महासंघ

झारखंड एग्रो चैम्बर के अध्यक्ष आनंद कोठारी कहते हैं कि ''झारखंड में कुल 17.84 लाख किसानों ने 7,061 करोड़ रुपये का कर्ज ले रखा है. इस लिहाज से देखें तो हरेक किसान औसतन 39,580 रुपये का कर्ज़दार है. सरकार ने कर्जमाफी के लिए महज 2000 करोड़ रुपये का प्रावधान बजट में किया है. मौजूदा स्थिति में जरूरी है कि किसानों की कर्जमाफी हो.

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