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Lok Sabha Election: लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में झारखंड की जिन तीन सीटों हजारीबाग, कोडरमा और चतरा में 20 मई को मतदान होने वाला है, वहां एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच मुकाबला है.
इन सीटों पर 2019 के चुनाव में बीजेपी की कैसी आंधी चली थी, इसकी गवाही वोट के आंकड़े देते हैं. हजारीबाग में इसके उम्मीदवार जयंत सिन्हा ने 4 लाख 79 हजार 548, कोडरमा में अन्नपूर्णा देवी ने 4 लाख 55 हजार 600 और चतरा में सुनील सिंह ने 3 लाख 77 हजार 871 मतों के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी.
चुनावी समीकरणों और मुकाबले में उतरे चेहरों पर गौर करें तो यह चुनाव 2019 के चुनाव से कई मायनों में अलग है. बीजेपी ने तीन में से दो सीटों हजारीबाग और चतरा में पिछली बार रिकॉर्ड अंतर से जीत दर्ज करने वाले सांसदों जयंत सिन्हा एवं सुनील सिंह का टिकट इस बार काट दिया है. इसकी वजह यह रही कि पार्टी के इंटरनल सर्वे में पाया गया कि इनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी है.
बीजेपी ने इस फैक्टर को काटने के लिए “वोकल फॉर लोकल” का मंत्र आजमाया है और ऐसे उम्मीदवारों को उतारा, जिनकी पैतृक जड़ें यहां की जमीन में गहरे रूप से मौजूद हैं.
हजारीबाग में जयंत सिन्हा भले दो टर्म और उनके पिता यशवंत सिन्हा तीन टर्म सांसद रहे, लेकिन वे मूल रूप से यहां के निवासी नहीं है. यशवंत सिन्हा 1984 में आईएएस से वॉलेंटरी रिटायरमेंट के बाद यहां आए थे और इसे अपनी सियासी कर्मभूमि बनाया.
इस सीट पर मुकाबले का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि बीजेपी के मनीष जायसवाल को टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने भाजपा के घर में ही सेंध लगाई और इसी जिले में आने वाली मांडू विधानसभा सीट के बीजेपी विधायक जयप्रकाश भाई पटेल को अपने खेमे में लाकर मैदान में उतार दिया.
मार्च के पहले मनीष जायसवाल और जयप्रकाश पटेल विधानसभा में एक-दूसरे के अगल-बगल की सीटों पर बैठते थे. दोनों में गहरी दोस्ती भी रही है. मनीष जायसवाल की तरह जयप्रकाश पटेल के पास भी सियासी विरासत की ताकत है. उनके पिता टेकलाल महतो मांडू से पांच बार विधायक और गिरिडीह से एक बार सांसद रहे हैं.
इन दोनों की लड़ाई में इस बार जातीय फैक्टर को बेहद अहम माना जा रहा है. मनीष जायसवाल को वैश्य-पिछड़ा वोट बैंक और मोदी फैक्टर पर भरोसा है, जबकि जयप्रकाश भाई पटेल कुर्मी-कोयरी और मुस्लिम वोटरों की गोलबंदी के आधार पर खुद को मजबूत मान रहे हैं.
चतरा सीट की बात करें तो बीजेपी ने मूल रूप से बिहार के बक्सर निवासी मौजूदा सांसद सुनील सिंह का टिकट काटकर स्थानीय नेता कालीचरण सिंह को उम्मीदवार बनाया.
चतरा का इतिहास है कि यहां आज तक कोई स्थानीय व्यक्ति सांसद नहीं बना. बीजेपी ने स्थानीयता के फैक्टर को इस बार भावनात्मक मुद्दा बना दिया है और उसे उम्मीद है कि इस आधार पर वह अपने इस किले को महफूज रखने में कामयाब रहेगी.
दूसरी तरफ कांग्रेस ने डाल्टनगंज के पूर्व विधायक केएन त्रिपाठी को मैदान में उतारा. वह भी खुद को चतरा संसदीय क्षेत्र का असली मूलवासी बताते हुए बीजेपी के भावनात्मक कार्ड के समीकरण को अपने पक्ष में मोड़ने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
चतरा के सियासी समीकरणों के जानकार बताते हैं कि स्थानीयता के साथ-साथ जातीय आधार पर जिसकी गोलबंदी ज्यादा मजबूत होगी, वह यहां इस बार जीत का झंडा फहरा लेगा.
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