पिछले 24 साल में ओडिशा (Odisha Lok Sabha Election) में चुनाव-प्रचार कभी इतना दिलचस्प नहीं रहा. हर लिहाज से लोकसभा चुनाव यहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और बीजू जनता दल (बीजेडी) के लिए 'करो या मरो' की लड़ाई जैसा लग रहा है. दोनों पार्टियां अपनी सारी ताकत और संसाधन खर्च कर रही हैं. बीजेडी लगातार छठी बार सत्ता हासिल करने की कोशिश कर रही है और बीजेपी, बीजेडी के गठबंधन से आजाद होकर पहली बार अपने दम पर चुनाव लड़ रही है.
चुनाव प्रचार बेकाबू है. पार्टियां एक दूसरे पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहीं और यह रवैया अनोखा है, क्योंकि इससे पहले यहां कभी ऐसा नहीं हुआ.
पिछले कई साल में दोनों पार्टियों का खट्टा-मीठा रिश्ता रहा है और यह सब चुनावी बैठकों और रोड शोज के दौरान बखूबी नजर आ रहा है. जनता भी इसका मजा ले रही है.
मतदाताओं के लिए दोनों पार्टियां एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. दोनों लगभग एक से वादे कर रही हैं, जिन्हें हासिल करना भी लगभग नामुमकिन ही है.
बीजेपी नवीन पटनायक का ही शिकार करना चाहती है
इस सत्ता संघर्ष के दौरान कांग्रेस बमुश्किल अपनी मौजूदगी दर्ज करा पा रही है. दूसरी तरफ बीजेपी की संजीदा कोशिश है कि राज्य पर कब्जा जमा ले. इसके लिए उसने सोची-समझी रणनीति तैयार की है. उसके बड़े नेता और कई राज्यों के मुख्यमंत्री यहां चुनाव प्रचार में जुटे हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार पब्लिक मीटिंग और भुवनेश्वर में रोड शो कर चुके हैं. इसके बाद 20 मई को भी पुरी में भी एक रोड शो करने वाले हैं.
दरअसल, इन चुनावों में बीजेपी नवीन पटनायक का ही शिकार करना चाहती है. राज्य के मुख्यमंत्री उड़िया भाषा के कम जानकार हैं, इसी को चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है. इसके अलावा वी के पांडियन को भी निशाना बनाया जा रहा है. राज्य के शासन के मामलों में उनके "जबरदस्त हस्तक्षेप" पर हमला करते हुए उन्हें "बाहरी और गैर-उड़िया" कहा जा रहा है.
पांडियन पहले ब्यूरोक्रेट थे, फिर नेता बने. वह नवीन पटनायक के भरोसेमंद हैं. पार्टी में उनका खासा दबदबा है. करीब-करीब वह दूसरे नंबर के नेता हैं. चूंकि, नवीन पटनायक उन पर बहुत विश्वास करते हैं, इसलिए वे सबकी आंख की किरकिरी बने हुए हैं. विपक्ष बार बार सवाल उठाता है कि किसी ‘बाहरी’ को इतना ताकतवर क्यों बनाया गया है? बस, नवीन पटनायक के लिए यही उनकी कमजोरी बन गया है.
बीजेपी के चुनाव प्रचार में ऐसे ही मुद्दे छाए हुए हैं. वह उड़िया गौरव, भाषा और संस्कृति के पुनरुद्धार की बात कर रही है. बता रही है कि राज्य में केंद्र की धनराशि का पूरा इस्तेमाल नहीं किया जा रहा. आरोप लगा रही है कि बीजेडी ने एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) की कल्याणकारी योजनाओं को अपनी योजना बता कर जनता को रिझाने की कोशिश की है.
दूसरी तरफ बीजेडी का दावा है कि केंद्र सरकार हमेशा राज्य को नजरंदाज करती रही है. लेकिन ऐसी बयानबाजियों का मतदाताओं पर कोई खास असर नहीं दिख रहा.
आखिरकार, वोटिंग पैटर्न इसी बात से तय होगा कि मोदी का पर्सनैलिटा कल्ट बड़ा है, या नवीन पटनायक का करिश्मा. यूं नवीन पटनायक ने घोषणा की है कि उनकी नई सरकार का पहला आदेश होगा-90 प्रतिशत परिवारों को मुफ्त बिजली सप्लाई. हो सकता है, यह चुनावी वादा पूरा खेल ही बदल दे.
मोदी के आरोप पर पांडियन का पलटवार
सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मोदी और पटनायक का आपसी रिश्ता, आपसी भरोसे का था. लेकिन इसमें खटास तब आई, जब मोदी ने उन पर व्यक्तिगत हमला करना शुरू किया. उन्होंने नवीन पटनायक पर तंज कसा कि वह बिना किसी की मदद लिए, ओडिशा के 30 जिलों के नाम उनकी "राजधानियों" सहित बता दें. एक तरह से उनका कहना यह था कि नवीन पटनायक अपने ही लोगों की परेशानियों से ‘अनजान’ हैं.
इसके बाद प्रधानमंत्री ने कांताबंजी के मतदाताओं से सवाल किया कि क्या उनका मुख्यमंत्री इस इलाके के 10 गांव के नाम बता सकता है. पश्चिमी ओडिशा में कांताबंजी विधानसभा क्षेत्र नवीन पटनायक की दूसरी सीट है. मोदी ने 4 जून को पटनायक सरकार की "एक्सपायरी डेट" बताया और 10 जून को सभी को बीजेपी के शपथ ग्रहण समारोह में आने का न्योता दिया. नवीन पटनायक ने इस दावे को ‘जागते हुए सपने’ देखना बताकर, खारिज कर दिया.
हालांकि, वी के पांडियन ने ही बीजेपी के ज्यादातर हमलों का जवाब दिया है. उनका कहना है कि केंद्र सरकार की भगवा ब्रिगेड राज्य में टूरिस्ट की तरह आती है और लोगों को मूर्ख बनाती है. पांडियन बीजेडी के अकेले सिपहसालार हैं और एक और चुनावी जीत हासिल करने के लिए पार्टी की कमान संभाले हुए हैं. उन्हें जीत का पूरा भरोसा है.
नवीन पटनायक अपने अच्छे काम और जन-समर्थक कदमों के कारण तीन-चौथाई बहुमत से जीतेंगे, वह बीजेपी के हमलों का जवाब देते हुए बार-बार दावा करते हैं. भले ही वह हमला खुद प्रधानमंत्री कर रहे हों या केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, जो संबलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. वैसे पांडियन और धर्मेंद्र प्रधान के बीच समय-समय पर होने वाली नोकझोंक बहुत दिलचस्प है. पांडियन भी इन आरोपों से परेशान नहीं कि उन्हें बाहरी और गैर उड़िया बताया जा रहा है. कहा जा रहा है कि वह राज्य के सभी क्षेत्रों में तमिल लोगों को बढ़ावा दे रहे हैं.
हालांकि, सत्ता के दोनों बड़े दावेदार वादा कर रहे हैं कि अगर उन्हें जीत हासिल हुई तो ओडिशा का कायाकल्प कर देंगे. उसे देश का नंबर एक राज्य बनाएंगे. वैसे चुनावी प्रचार में एक नया रूपक भी इस्तेमाल किया जा रहा है. बताया जा रहा है कि "नवीन इंजन" का मुकाबला बीजेपी के "डबल इंजन" (विधानसभा और लोकसभा) से है.
यूं इस बात पर हंसी आ सकती है. पांडियन ने कहा है कि डबल इंजन, दरअसल "धोखे" का इंजन है, और "नवीन इंजन" ही दरअसल असली सर्विस देने वाला है. हालांकि, बीजेपी और बीजेडी की आपसी लड़ाई को कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने "फर्जी बॉक्सिंग मैच" कहा है. चूंकि यह सिर्फ चुनावी तरकरार है.
उनकी बात सही हो सकती है.
(श्रीमय कार ओडिशा के सीनियर पत्रकार हैं. यहां व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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