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झारखंड (Jharkhand) में दवा दुकान खोलने के लिए फार्मासिस्ट की अनिवार्यता खत्म करने का झारखंड सरकार का फैसला विवादों में घिर गया है. सीएम हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने हाल में इसका ऐलान किया था.
इस फैसले के विरोध में झारखंड के फार्मेसी कॉलेज के विद्यार्थियों और फार्मासिस्ट एसोसिएशन (Pharmacist Association) के सदस्यों ने गुरुवार को राजभवन के समक्ष विरोध-प्रदर्शन किया.
वहीं, फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (Pharmacist Council of India) ने भी राज्य सरकार को पत्र लिखकर इस फैसले को वापस लेने की अपील की है.
पीसीआई ने झारखंड सरकार से अपील करते हुए कहा है कि ग्रामीण इलाकों में बगैर पंजीकृत फार्मासिस्टों के दवा दुकानें संचालित करने का फैसला वापस लें.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता को लिखे गए पत्र में काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. मोंटू कुमार पटेल ने कहा है कि बगैर फार्मासिस्ट दवा दुकान चलाने से जुड़ी अधिसूचना फार्मेसी अधिनियम 1948 और फार्मेसी रेगुलेशन प्रैक्टिस 2015 का उल्लंघन है.
पत्र में उन्होंने कहा है कि हालिया अधिसूचना को वापस लेकर झारखंड में फार्मेसी प्रैक्टिस रेगुलेशन 2015 लागू किया जाए.
डॉ. पटेल ने कहा कि फार्मेसी अधिनियम की धारा 42 में कहा गया है कि पंजीकृत फार्मासिस्ट के अलावा कोई भी व्यक्ति चिकित्सक के नुस्खे पर किसी भी दवा को मिश्रित, तैयार या बिक्री नहीं करेगा. जो कोई भी इसका उल्लंघन करेगा, उसे छह महीने की सजा या एक हजार रुपये का जुर्माना या फिर दोनों हो सकता है.
राजभवन पर प्रदर्शन के दौरान उन्होंने कहा कि झारखंड में फार्मेसी की पढ़ाई कराने वाले 56 कॉलेज हैं और राज्य में लगभग 10 हजार निबंधित फार्मासिस्ट हैं. एक ओर जहां सरकार फार्मासिस्ट के पदों पर बहाली नहीं कर रही, वहीं अब इस तरह के फैसले से बड़ी संख्या में फार्मासिस्ट बेरोजगार हो जाएंगे. प्रदर्शन करने वाले फार्मासिस्टों ने अपनी मांग को लेकर राजभवन को एक ज्ञापन भी सौंपा.
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