Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019“हम एक ही टाइम खाना खाते हैं, हमें तीन वक्त का खाना कहां से मिलेगा?''

“हम एक ही टाइम खाना खाते हैं, हमें तीन वक्त का खाना कहां से मिलेगा?''

झारखंड में अति गरीबों को झुलसा रहे हजारों किमी दूर के ईंट भट्ठे, मदद को आया एक हाथ

आशुतोष कुमार सिंह
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>Jharkhand Ultra Poverty: झारखंड के लोहरदगा में रहने वाली रनिया देवी और उनके पोते-पोतियां&nbsp;</p></div>
i

Jharkhand Ultra Poverty: झारखंड के लोहरदगा में रहने वाली रनिया देवी और उनके पोते-पोतियां 

(फोटो- आशुतोष कुमार सिंह/क्विंट)

advertisement

“मैं पहले त्रिपुरा कमाने जाती थी, ईंट बनाने वाले भट्ठे में काम करने. चाहे धूप रहे या ठंड रहे, खटना पड़ता था. 6 महीने बाद घर लौटने पर हमारे हाथ में 15-20 हजार रुपए होते थे… बच्चे साथ होते थे और पढ़ाई लिखाई नहीं करते थे. जब घर में सुविधा ही नहीं थी तो क्या करेंगे?”

यह कहना है झारखंड (Jharkhand) की राजधानी रांची से लगभग 120KM दूर लातेहार जिले के सुदूर गांव में रहने वाली गुड़िया देवी का. घर के टूटे दरवाजे के सामने बैठकर अपनी पुरानी जिंदगी की कहानी सुनाती गुड़िया देवी अब रोजगार की तलाश में बाहर नहीं जातीं. एक एनजीओ से गुड़िया देवी को मदद मिली है. हालांकि गांव के दूसरे लोगों के लिए जिंदगी इतनी नहीं बदली है. उनका रोजगार की तलाश में बनारस से असम तक, ईंट भट्ठों में प्रवास जारी है और जो लोग गांव में बचे हैं उनके लिए पानी की किल्लत अभिशाप बनी हुई है.

भारत में तमाम सरकारों ने गरीबों के लिए कई नीतियां बनाईं और तमाम कोशिशें कीं. लेकिन अभी भी सामने गरीबी का बड़ा पहाड़ खड़ा है. NITI आयोग के अनुसार बिहार में बहुआयामी गरीबी जहां 51% से अधिक है वहीं झारखंड में यह 42% से भी अधिक है. यानी झारखंड देश का दूसरा सबसे गरीब राज्य है.

‘बोलते हैं तो आंसू आता है, पानी बिना जिंदगी नहीं है खेती कैसे करें”

गुड़िया देवी कहती हैं कि गांव के दूसरे परिवारों की हालत बहुत खराब है और गरीबी बहुत अधिक है. “यहां खेती-बाड़ी नहीं हो पाती है. पानी की सुविधा नहीं है. बरसात पर निर्भर हैं हम. अगर बारिश हुई तो फसल होती है नहीं तो फसल मर जाती है.”

“पीने के लिए एक ही कुआं है छोटा सा. वो भी धूप में सूख जाता है. सिर्फ 2-3 फीट पानी बचता है उसमें. हम उसी को छान-छान कर पीते हैं”
गुड़िया देवी

गुड़िया देवी त्रिपुरा ईंट बनाने वाले भट्ठे में काम करने जाती थीं

(फोटो- आशुतोष कुमार सिंह/क्विंट)

नीति आयोग के अनुसार, राज्य की 42.16 प्रतिशत आबादी गरीबी में जी रही है. जमीन, पानी और पालतू पशुओं की कमी समस्या को और बढ़ा देती है और जंगलों के बीच बसे अधिकांश आदिवासी और दलित परिवारों के लिए दिन में दो जून की रोटी जुटाना भी चुनौती बन जाता है.

क्विंट के सवाल “क्या आप दिन में तीन वक्त भोजन करते हैं” पर मकदूम उराव, रमेश परहिया और गुड़िया देवी के पति ने कहा कि “हम एक ही टाइम खाना खाते हैं. हमें तीन वक्त खाना कहां से मिलेगा. हम एक टाइम खाना बनाते हैं उसके बाद बस बकरी खोलो और चल दो जंगल में. जंगल में कंद-मूल, जड़ी-बूटी मिलता है. वही खाते हैं.”

रमेश परहिया, मकदूम उराव और गुड़िया देवी के पति (बाएं से दाएं)

(फोटो- आशुतोष कुमार सिंह/क्विंट)

लातेहार जिले के चंदवा ब्लॉक के कमता पंचायत में रहने वाले मकदूम उराव गांव के पाहन पूजर हैं (आदिवासियों के पुजारी) जबकि रमेश परहिया आदिवासी परिवारों में शादी-जन्म जैसे शुभ मौकों पर मांदर (झारखंड का पारंपरिक ढोलक) बजाते हैं.

पानी की समस्या बताते हुए गुड़िया देवी के पति ने कहा कि “आप लोग कहते हैं कि खेत में पालक लगा दो धनिया लगा दो लेकिन उसमें पानी चला गया तो हम पीयेंगे क्या? हमें पानी पीने के लिए झकना (मारे-मारे फिरना) पड़ता है. हमें पानी की सुविधा नहीं है. जब बोलते हैं तो आंखों में पानी आ जाता है. पानी बिना जिंदगी नहीं है. खेती कैसे करें”.

पानी की किल्लत के साथ-साथ रोटी की तलाश में प्रवास की मजबूरी भी यहां के आदिवासी और दलित परिवारों को गरीबी के गर्त में धकेल रही है. ये परिवार खरीफ की फसल काटने के बाद बनारस और त्रिपुरा के ईंट भट्ठों में काम करने जाते हैं. यहां हर दिन वे 10-11 घंटे काम करते हैं और 6 महीने बाद लौटने के बाद इनके पास मुश्किल से 15-20 हजार रुपए होते हैं. इस मौसमी प्रवास का सबसे बुरा असर इनके बच्चों पर पड़ता है जो स्कूल नहीं जा पाते हैं और भट्ठे का धुआं और धूल इनको छोटी उम्र से कमजोर बना रही होती है.

गांव की महिलाओं का कहना है कि अधिकतर मामलों में इन्हें बनारस या त्रिपुरा जाने के लिए गांव के सरदार (महाजन) से पैसा उधार लेना पड़ता है. महाजन इन अनपढ़ या बहुत ही कम पढ़े लिखे लोगों से हर महीने 5% ब्याज पर पैसा देते हैं और वापस लौटने पर उसे अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा देना पड़ता है. कई मामलों में पैसा वापस नहीं दे पाने की स्थिति में उन्हें महाजन के लिए बेगारी काम करना पड़ता है और उनकी स्थिति बंधुआ मजदूर की तरह हो जाती है.

परिवारों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकालने का प्रयास- "THE/NUDGE" का ‘एंड अल्ट्रा पॉवर्टी प्रोग्राम’

वैश्विक स्तर पर गरीबी हटाने के लिए काम करने वाले ग्लोबल रिसर्च सेंटर, J-PAL ने अपने तमाम प्रोग्राम से यह साबित किया है कि खेती लायक जमीन, कृषि उपकरण और पशु जैसे उत्पादक संपत्ति (Productive Assets) और उन्हें लंबे समय तक सतत रूप से बनाए रखने की क्षमता में कमी के कारण अत्यधिक गरीबी में जी रहे परिवार इस दुष्प्रचार से बाहर नहीं आ पाते.

"THE/NUDGE" नाम के डेवलॉपमेन्ट एंड एक्शन इंस्टिट्यूट ने अत्यधिक गरीबी के दुष्चक्र को तोड़ने का ऐसा ही प्रयास झारखंड और उत्तरी कर्नाटक में शुरू किया है जिसे उन्होंने- ‘एंड अल्ट्रा पॉवर्टी प्रोग्राम’ नाम दिया है. इस प्रोग्राम में वे ‘अल्ट्रा पुअर ग्रेजुएशन अप्रोच’ का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसमें वे ऐसे परिवारों को कई चरण में आर्थिक मदद और ट्रेनिंग देते हैं.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

‘अल्ट्रा पुअर ग्रेजुएशन अप्रोच’ की शुरुआत दुनिया के सबसे बड़े NGO कहे जाने वाले BRAC ने बांग्लादेश में की थी. इसके अनुसार अत्यधिक गरीबी के चक्र में फंसे परिवारों को इससे बाहर निकालने के लिए एक बड़े ‘धक्के/पुश’ की जरूरत होती है. अबतक इसे 50 देशों में 100 से अधिक संगठनों ने अपनाया है जिसमें से एक THE/NUDGE भी है.

THE/NUDGE के अनुसार उन्होंने अपना ‘एंड अल्ट्रा पॉवर्टी प्रोग्राम’ झारखंड के तीन जिलों- लातेहार, लोहरदगा और गुमला में शुरू किया है और उनके साथ ‘अत्यधिक गरीबी’ में जी रहे 1200 परिवार जुड़े हैं. अत्यधिक गरीब या अल्ट्रा पुअर के लिए कोई एक वैश्विक मानदंड नहीं है.

अल्ट्रा-गरीब शब्द सबसे पहली बार 1986 में ससेक्स यूनिवर्सिटी के माइकल लिप्टन द्वारा गढ़ा गया था. इसे "उन लोगों के समूह के रूप में परिभाषित किया गया है जो अपनी आय का कम से कम 80% भोजन पर खर्च करने के बावजूद अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 80% से कम पूरा कर पाते हैं".

THE/NUDGE के डायरेक्टर जॉन पॉल के अनुसार उन्होंने झारखंड के इन तीन जिलों में अपने प्रोग्राम से जोड़ने के लिए अल्ट्रा-गरीब परिवारों की पहचान के लिए एक टूल तैयार किया है जिसमें 7 सवालों के आधार पर यह तय किया जाता है- उनके पास कितनी जमीन है, उत्पादक संपत्ति कितनी है, क्या घर में कोई विकलांग या विधवा है, घर में कितने लोग कमाते हैं, घर कच्चा है या पक्का और वो प्रवास पर जाते हैं या नहीं.

एक बार ऐसे परिवार की पहचान हो जाने के बाद THE/NUDGE उन परिवारों की महिलाओं (दीदी) के साथ काम करता है. THE/NUDGE के अनुसार इन दीदियों को शुरू में एक समूह बनाकर ट्रेनिंग दी जाती है और उस दौरान रोजमर्रा के खाद आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आर्थिक मदद दी जाती है. स्थानीय बाजार और परिवार की स्थिति के अनुसार अलग-अलग दीदियों को पशुपालन, दुकान चलाने या खेतीबाड़ी करने की ट्रेनिंग दी जाती है. THE/NUDGE कहता है कि ट्रेनिंग के लिए हर 40 दीदी के साथ उनका एक प्रोफेशनल कार्यकर्त्ता जुड़ा होता है.

झारखंड में प्रोग्राम के हेड श्रीकांत बताते हैं कि THE/NUDGE इन परिवारों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए शुरू में 3,600 रुपये और महिलाओं द्वारा सब्जी की खेती, पशुधन पालन या छोटे व्यवसाय जैसी किसी भी स्थायी आजीविका गतिविधियों के लिए दो किस्तों में आजीविका सहायता अनुदान के रूप में 17,500 रुपये देता है. संगठन खुद ही इन महिलाओं के साथ जाकर बीज-खाद से लेकर जानवरों तक की खरीदारी करवाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके की इस अनुदान का इस्तेमाल किसी और चीज में न हो.

साथ ही यह सुनिश्चित किया जाता है कि परिवारों का BPL कार्ड या PVTG पेंशन कार्ड, आधार, बैंक अकाउंट या विधवा कार्ड बना हो और सरकारी सहायता तक उनकी पहुंच हो.

THE/NUDGE के अनुसार झारखंड में 400 परिवारों के साथ उनका यह 3 साल का प्रोग्राम पूरा हो चुका है और इन परिवारों की सभी 400 महिलाएं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलने और अपनी कहानियां साझा करने के लिए 7 दिसंबर को राजधानी रांची की यात्रा करेंगी.

THE/NUDGE के फाउंडर और CEO अतुल सतीजा ने बताया कि THE/NUDGE ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय में एक 5 सदस्यीय नेशनल यूनिट बनाया है और झारखंड सरकार को ऐसे 4000 अल्ट्रा गरीब परिवारों के साथ इसी तर्ज पर “अल्ट्रा पुअर ग्रेजुएशन अप्रोच इन झारखंड’ शुरू करने में मदद कर रहा है.

लातेहार के रेंका गांव में बबिता देवी और उनके 3 दिन के बच्चे के साथ THE/NUDGE के फाउंडर अतुल सतीजा

(फोटो- आशुतोष कुमार सिंह/क्विंट)

अतुल सतीजा के अनुसार ऐसा ही प्रोग्राम राजस्थान में शुरू होने वाला है. THE/NUDGE का लक्ष्य है कि केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और तमाम NGO’s की मदद से अगले 10 साल में भारत में 10 लाख अत्यंत गरीब परिवारों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला जा सके.

हालांकि यह सफर इतना आसान नहीं है. लातेहार जिले के चंदवा ब्लॉक के कमता पंचायत में बैठे मकदूम उराव की परेशानी है कि 20 तारीख बीतने को है और अभी भी BPL कार्ड पर आने वाला राशन नहीं मिला है. इतना ही नहीं 35 किलो के राशन में से भी डीलर 1-2 किलों काट लेता है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT