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उत्तराखंड के दरकते शहर जोशीमठ की कहानी में कई किरदार हैं लेकिन सबको एक ही डोर ने आपस में जोड़ रखा है- सबको अपने आशियाने, अपनी रोजी-रोटी के तबाह हो जाने का दुःख है. जोशीमठ संकट (Joshimath Crisis Ground Report) की कहानी का एक ऐसा ही किरदार वहां बसने वाले प्रवासी मजदूरों का है.
शाम के 5 बजे हैं और प्रवासी लोग सर्द हवा में जलती आग को घेरकर अपने-अपने दुःख साझा कर रहे हैं. कोई इस ऋतुराज वाले शहर जोशीमठ के पुराने दिनों को याद कर रूंध रहा है तो किसी को अपने घर परिवार को चलाने के लिए पैसे भेजने की चिंता सता रही है. वो कहते हैं कि अब पहले जैसा इस शहर में कुछ नहीं रहा.
प्रवासी मजदूर राधेश्याम कहते हैं कि "मैं चालीस साल से जोशीमठ मे दिहाड़ी मजदूरी करता हूं. चमोली में आया विनाशकारी भूकंप भी देखा लेकिन इस बार जो जमीन धंस रही है, उससे मुझे बहुत आघात पहुंचा है."
प्रवासी मजदूर गणेश पासवान ने क्विंट को बताया कि उन्हें अगले महीने जोशीमठ में आये एक साल हो जाएंगे.
वहीं सहरसा जिले के अखिलेश कुमार ने क्विंट को बताया कि "मैं 17 साल की उम्र में घर से भागकर यहां आया था. जीवन मजे में कट रहा था. मैं ठेकेदार के घर पर ही काम करता हूं एक परिवारिक सदस्य के रूप में. लेकिन अब मुझे तीन साल बाद अपने घर जाना था. ईश्वर ने मेरे मकान मालिक के होटल में दरार व धंसाव कर दिया हैं."
वहीं रूंधते हुए मुस्तीफ ने क्विंट को बताया कि " मालिक का घर बनाना था, इसलिए मैं अपने दो बेटों के साथ सितंबर महीने में यहां आया था. बुनियाद पूरी हो चुकी है लेकिन न जाने क्या हुआ कि जमीन अपने आप फटने लगी.
इस समय इस क्षेत्र में हजारों मजदूर और राजमिस्त्री हैं. वे कहते हैं कि ऐसा अन्याय किसी के साथ न हो.
बता दें कि आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, जोशीमठ में दरार वाले घरों की संख्या अब बढ़कर 826 हो गई है, जिनमें से 165 'असुरक्षित क्षेत्र' में हैं. अब तक, 798 लोगों को अस्थायी राहत केंद्रों में शिफ्ट किया गया है.
अंतरिम सहायता के रूप में प्रभावित परिवारों के बीच ₹2.49 करोड़ की राशि बांटी गई है. उन्हें कंबल, भोजन, दैनिक उपयोग की किट, हीटर, ब्लोअर और राशन भी उपलब्ध कराए गए हैं.
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