advertisement
बाबरी विध्वंस मामले में मद्रास हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस मनमोहन सिंह लिब्रहान की अध्यक्षता में 1992 में लिब्रहान कमीशन (Liberhan Commission) बनाया गया, जिसे जिम्मेदारी दी गई कि वो इस केस की जांच करके अपनी रिपोर्ट सौपें. 2008 में इस कमेटी ने जो रिपोर्ट सौंपी उसमें बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना को योजनाबद्ध बताया गया था. इस रिपोर्ट में अपराध के पीछे बीजेपी-आरएसएस के नेताओं और अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया था.
82 साल के जस्टिस मनमोहन सिंह लिब्रहान ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा-
लिब्रहान कमीशन का गठन 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद किया गया. इस कमीशन ने अपनी रिपोर्ट 2009 में सौंपी, जिसमें बीजेपी और आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं के शामिल होने की बात कही गई थी. इनमें लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती शामिल थीं. रिपोर्ट में कहा गया था कि इन नेताओं ने सक्रिय तरीके से या असक्रिय तरीके से मस्जिद के विध्वंस का समर्थन किया था.
कमीशन ने कहा था कि 'कार सेवकों का इकट्ठा होना अचानक घटी घटना नहीं थी बल्कि ये पूरी तरह से योजनाबद्ध तरीके से हुआ था.' इस रिपोर्ट में बीजेपी नेता आडवाणी, जोशी, उमा भारती और अटल बिहारी समेत करीब 60 आरएसएस-बीजेपी के नेता और अधिकारियों के नाम थे.
जस्टिस लिब्रहान का कहना है कि-
जस्टिस लिब्रहान कोर्ट के फैसले पर कुछ भी बोलने से इनकार करते हैं. उनका कहना है कि मैं कोर्ट के जज या सीबीआई की जांच पर कुछ नहीं कहूंगा. मैं मानता हूं कि हर किसी ने अपना काम ईमानदारी से किया है. कोर्ट के पास अधिकार है कि वो सहमत न हो, कोर्ट की शक्ति को लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिए.
82 साल के मद्रास हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस ने बताया कि अच्छी प्रशासनिक योजना के जरिए मस्जिद का विध्वंस रोका जा सकता था. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा कि विध्वंस को रोकने के लिए कोई भी जरूरी कदम नहीं उठाए गए.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार ने इरादतन इस आंदोलन को मंजूरी दी. जब तक मस्जिद का विध्वंस नहीं हो गया तब तक कल्याण सिंह ने बलों का इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया. उनको इन घटनाओं और इसके परिणाम की पूरी जानकारी थी. कमीशन ने कहा कि ये वैसा मामला नहीं है जहां पर सरकार 'भीड़ के सामने कमजोर' थी.
ब्यूरोक्रेट्स के बारे में रिपोर्ट में कहा गया कि- ये बिल्कुल साफ है अधिकारियों ने सरकार के दबाव में कार सेवकों और कार सेवा पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया. जस्टिस लिब्रहान की रिपोर्ट में तब की नरसिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की भी आलोचना की गई थी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)