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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर ने शनिवार को कहा कि अदालतों के आदेशों के बावजूद केंद्र और राज्य सरकार के तहत चलाए जा रहे देशभर में शेल्टर होम का रजिस्ट्रेशन नहीं होने की वजह से बाल यौन शोषण और तस्करी के मामले बढ़ गए हैं.
यूनिसेफ की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, पूर्व जस्टिस लोकुर ने कहा, "अदालतों ने केंद्र और राज्य सरकार को शेल्टर होम के रजिस्ट्रेशन के संबंध में समय और दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, लेकिन यह काम अभी तक नहीं किया गया है, इसीलिए बच्चों की तस्करी और यौन शोषण के मामले आते हैं.
मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में कई लड़कियों से कथित यौन शोषण और शारीरिक उत्पीड़न की शिकायत करते हुए, जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि, पैरामिटर को न मानना, इसके अमल की सबसे बड़ी समस्या है.
शेल्टर होम में बाल अधिकारों के बड़े पैमाने पर उल्लंघन के मुद्दे को उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि संस्थानों में प्रदान की जाने वाली बेहतर देखभाल के लिए ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए.
इस मामले का संभावित समाधान बताते हुए जस्टिस दीपक गुप्ता ने सुझाव दिया कि, शेल्टर होम में भेजने के बजाय बच्चे को वैकल्पिक देखभाल की जानी चाहिए. "हर बच्चे को अपने तरीके से रहने का अधिकार है. उद्देश्य यह होना चाहिए कि, ऐसे संस्थान कम हो और बच्चों को वैकल्पिक देखभाल देना चाहिए.
जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि शेल्टर होम की उचित निगरानी की जानी चाहिए. उन्होंने कहा, "ऐसे संस्थान हैं ठीक तरीके से नहीं चलाए जाते है और बच्चों का शोषण करते हैं. हमने एक मामला ऐसा भी सुना है, संस्थान सरकारी पैसे से चलाए जा रहे हैं और बच्चों को भीख मांगने के लिए भेजा जाता है.
जस्टिस गुप्ता ने कहा कि शेल्टर होम की व्यवस्था एक कंप्यूटर सिस्टम से किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जुवेनाइल जस्टिस कमेटियों को आंख खोले रहना चाहिए. साथ ही महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को ड्यूटी करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों को वह सुरक्षा दी जा रही है या नहीं, जिसके वे हकदार हैं"
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