advertisement
बिहार के मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में दिल्ली की साकेत कोर्ट आज गुरुवार को फैसला सुनाने वाली थी, लेकिन वकीलों की हड़ताल के चलते आरोपियों को कोर्ट में नहीं लाया जा सका. इसलिए फैसले को एक महीने के लिए टाल दिया गया है.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सौरभ कुलश्रेष्ठ ने फैसला 12 दिसंबर तक के लिए टाल दिया है, क्योंकि तिहाड़ जेल में बंद आरोपियों को दिल्ली की सभी जिला अदालतों में जारी वकीलों की हड़ताल के चलते अदालत परिसर नहीं लाया जा सका.
मुजफ्फरपुर शेल्टर होम केस में साकेत कोर्ट ने ब्रजेश ठाकुर समेत 21 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए हैं. इन सबके खिलाफ पॉक्सो कानून, रेप, आपराधिक साजिश समेत कई धाराओं के तहत ये आरोप तय किए हैं. इस मामले में सीबीआई ने ब्रजेश ठाकुर को मुख्य आरोपी बनाया है.
बता दें कि 1 अक्टूबर को आखिरी सुनवाई में सीबीआई और आरोपियों के वकीलों की दलील पूरी होने के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
दरअसल, मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) की ओर से अप्रैल 2018 में बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग को एक रिपोर्ट सौंपी गई थी. जिसमें पहली बार मुजफ्फरपुर के बालिका गृह (शेल्टर होम) में रह रही लड़कियों से कथित रेप की बात सामने आई थी. TISS की टीम ने 26 मई 2018 को उसकी रिपोर्ट बिहार सरकार और मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन को भेजी थी. मामले के तूल पकड़ने के बाद पुलिस हरकत में आई.
जब यह मामला मीडिया की सुर्खियों में आया, तो सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी को बिहार से इस केस को दिल्ली ट्रांसफर कर दिया.
सीबीआई की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कई चौंका देने वाले खुलासे हुए थे. सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि मुजफ्फरपुर शेल्टर होम से लापता 11 लड़कियों की हत्या कर दी गई थी.
इस चर्चित केस में सबसे ज्यादा सवाल बिहार की नीतीश कुमार सरकार पर उठे हैं. सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले को लेकर नीतीश कुमार सरकार को फटकार लगा चुका है. कोर्ट ने इस केस की सुनवाई के दौरान सरकार से पूछा था कि आप कैसे सरकार चला रहे हैं.
साथ ही इस केस में पूर्व समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा का नाम भी सामने आया था. जिसके बाद मंजू वर्मा ने आठ अगस्त को इस्तीफा दे दिया था.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)