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Kargil Vijay Diwas: जब ‘नारा-ए-तकबीर‘ का नारा लगाकर सेना ने किया पोस्ट पर कब्जा

Kargil Vijay Diwas: 22 ग्रेनेडियर बटालियन ने पाकिस्तानी सैनिकों को भ्रम में डालने के लिए ये नारा लगाया था.

वकार आलम
भारत
Updated:
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Kargil Vijay Divas: जब ‘नारा-ए-तकबीर‘ का नारा लगाकर सेना ने किया पोस्ट पर कब्जा

(फोटो : द  क्विंट)

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कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) के मौके पर हम आपके लिए लेकर आये हैं देशभक्ति से लबरेज सर्वोच्च बलिदान की कुछ कहानियां. जिन्हें बार-बार याद करना करना जरूरी है. दरअसल 1999 में पाकिस्तानी सैनिक कारगिल की चोटियों पर आकर बैठ गए. जिन्हें वापस खदेड़ने के लिए भारतीय सेना ने 60 दिनों तक युद्ध लड़ा, जिसका अंत 26 जुलाई 1999 को भारत की जीत के साथ हुआ. इसी दिन को हमारा देश विजय दिवस के तौर पर मनाता है.

कागरगिल पर हमने फतह हासिल की और विजय दिवस हमारी सेना के शौर्य और पराक्रम का सबूत है. इस युद्ध में करीब 500 से ज्यादा भारतीय सेना के जवानों ने शहादत पाई और 1300 से ज्यादा घायल हुए. इन्हीं में से कुछ की कहानी हम आपको सुना रहे हैं.

शहीद जाकिर हुसैन

शहीद जाकिर हुसैन भारतीय सेना में लांस नायक के पद पर तैनात थे. वो हरियाणा के पृथला में रहते थे. 3 जुलाई 1999 को जब उन्हें मोर्चे पर जाने का ऑर्डर मिला तो वो अपने घर पर ही थे और शाम हो चुकी थी. शहीद जाकिर हुसैन की पत्नी रजिया बेगम बताती हैं कि, जाकिर हुसैन निशाने के बहुत पक्के थे. 1988 में सेना में भर्ती होने के बाद वो अपने परिवार के लिए नजीर थे क्योंकि परिवार से तब तक कोई फौज में नहीं गया था.

जाकिर हुसैन अपनी 22 फौजियों की टीम के साथ पहाड़ी पर दुश्मन के पीछे निकले थे. जब दुश्मन कुछ करीब आया तो गोलीबारी शुरू हो गई. कहा जाता है कि जाकिर हुसैन ने करीब एक किलोमीटर की दूरी से पाकिस्तानी सैनिक की सीधे आंख में गोली मारी थी. गोली मारने के बाद जैसे ही वो अपने कवर से बाहर निकले दुश्मन की गोली सीधे उनके सिर में आकर लगी और वो वहीं पर वीरगति को प्राप्त हो गए. इससे पहले विस्फोट में उनका एक हाथ धड़ से अलग हो गया था लेकिन फिर भी वो गोली चला रहे थे.

नायक दीपचन्द

कारगिल युद्ध में मिसाइल रेजीमेंट का हिस्सा रहे दीपचन्द ने बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में हुए कारगिल युद्ध के दौरान करीब 60 दिनों तक भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना पर भारी पड़ी थी. पाकिस्तान को हराकर ही हमारी सेना ने दम लिया था. सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले नायक दीपचंद के दोनों पैर और एक हाथ नहीं हैं. कारगिल युद्ध के दौरान तोप का गोला फटने से बुरी तरह जख्मी हो गए थे. दीपचंद इस कदर जख्मी हुए थे कि उनके बचने की उम्मीद ना के बराबर थी.

उन्हें बचाने के लिए डॉक्टरों ने उनकी दोनों टांगे और एक हाथ को काट दिया था. उनका इतना खून बह गया था कि उन्हें बचाने के लिए 17 बोतल खून चढ़ाया गया. ये तब हुआ था, जब दीपचन्द और उनके साथी ऑपरेशन पराक्रम के दौरान वापसी के लिए सामान बांधने की तैयारी में थे.

इस दौरान गोले के फटने से दो और सैनिक भी जख्मी हुए थे. भले ही नायक दीपचन्द के घुटने तक दोनों पैर नकली हैं, लेकिन आज भी वो एक फौजी की तरह तनकर खड़े होते हैं और दाहिने बाजू से फौजी सैल्यूट करते हैं. उन्होंने जंग के वक्त का एक दिलचस्प किस्सा भी सुनाया.

जब मेरी बटालियन को युद्ध के लिए मूव करने का ऑर्डर मिल था. तब हम बहुत खुश हो गए थे, पहला राउन्ड गोला मेरी गन चार्ली 2 से निकला था. वहीं पहला ही गोला हिट हो गया था, हमने इस दौरान 8 जगह गन पोजीशन चेंज की, हम अपने कंधों पर गन उठाकर लेकर जाते थे, हमारी बटालियन ने 10 हजार राउन्ड फायर किए, जिसके लिए मेरी बटालियन को 12 गैलेन्टरी अवॉर्ड मिला.

नाायक दीपचन्द

शहीद रियासत अली का आखिरी खत

शहीद रियासत अली हरियाणा के पानीपत में अधीम गांव के रहने वाले थे. उन्होंने 29 साल की उम्र में कारगिल की लड़ाई के दौरान शहादत पाई. रियासत अली ने अपने आखिरी खत में जो लिखा था वो हर हिंदुस्तानी को पढ़ना चाहिए. उन्होंने अपनी बीवी के नाम लिखे खत में लिखा था कि, शकीला खुदा ना करे मुझे कुछ हो जाये तो मेरे बच्चों को अच्छा इंसान बनाना. उस वक्त उनके एक बेटे की उम्र 7 साल थी और दूसरे बेटे की उम्र 4 साल.

बीवी ने शोहर की ये बात गांठ बांध ली और आज उनका बड़ा आमिर सेना में भर्ती होकर सीमा पर देश की रक्षा कर रहा है. और उनका छोटा भाई फारूख भी सेना में जाने की तैयारी कर रहा है. जरा सोचिए एक सैनिक जो दुश्मनों की गोलीबारी के बीच रोज मौत से दोचार होता है. वो अपनी बीवी से बच्चों को अच्छा इंसान बनाने के लिए लिखता है. यही तो हमारे देश की मिट्टी की खासियत है. रियासत अली की शहादत और उनका खत आज के हिंदुस्तान में भी कई सीख देते हैं.

शहीद जयवीर सिंह

हरियाणा में पानीपत के बाबैल गांव के जयवीर सिंह के गांव के रहने वाले मेवा राम ने गोद लिया था. 1990 में खुली भर्ती में फौज में उनकी भर्ती हुई थी. जयवीर सिंह का भर्ती होने के समय का भी किस्सा ग्रामीण बताते हैं कि, किसी वजह से जल्द जयवीर का सेलेक्शन नहीं हो पाया तो जयवीर ने वहां टेस्ट ले रहे मेजर से कहा कि, मेजर साहब आपने जिन लोगों का सेलेक्शन किया है उनमें से 2 लोग मिलकर भी कुश्ती में मुझे हरा दें तो मैं यहां से चला जाऊंगा. इतना जुनून और जज्बा देखकर जयवीर सिंह को भर्ती कर लिया गया.

ग्रामीण बताते हैं कि जयवीर सिंह ने कारगिल युद्ध के दौरान जाट रेजीमेंट में भी अपनी वीरता के जौहर दिखाएं. 29 मई को 4540 मीटर की चोटी पर तिरंगा फहराया. उनका जुनून कुछ ऐसा था कि वो अपनी टुकड़ी से अलग होकर सबसे आगे ऊपर बढ़ते चले गए. जहां घात लगाए बैठे दुश्मनों ने उन पर हमला बोल दिया. उन्होंने बंदूक को छोड़कर हाथों से ही लड़ना शुरू कर दिया और 3 लोगों को गर्दन दबाकर मौत के घाट उतार दिया. लेकिन वहां काफी दुश्मन सैनिक थे जिन्होंने उनके सिर में गोली मार दी और जयवीर सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए.

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कैप्टन बादशाह खान की जुबानी

मध्य प्रदेश के भिंड से आने वाले 22 ग्रेनेडियर से सेवानिवृत्त कैप्टन बादशाह खान ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि, 22 जुलाई 1999 को तत्कालीन लेफ्टिनेंट कर्नल अजीत सिंह के नेतृत्व में चार्ली एमएच सी कंपनी को 5.5 जुबैर हिल पोस्ट पर कब्जा करने के लिए भेजा गया था. पाकिस्तान की सेना ऊपर पहाड़ी पर बैठी थी और स्नाइपर गोलीबारी कर रहे थे. लेकिन भारतीय जवान आगे बढ़ते रहे. तभी पाकिस्तान ने आर्टिलरी फायरिंग शुरू कर दी और गोलियों की बरसात होने लगी.

तभी लेफ्टिनेंट कर्नल अजीत सिंह ने नारा-ए-तकबीर का नारा लगाया और साथी जवानों ने अल्लाहुआकबर के साथ जवाब दिया. इससे पाकिस्तान के सैनिक भ्रमित हो गए. उन्हें लगा कि उनका बैकअप आ गया है. जब तक पाकिस्तानी सैनिक समझ पाते तब भारतीय सैनिकों को आगे बढ़ने का मौका मिल गये.

बादशाह खान के मुताबिक,

जुबैर हिल पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना ने हैलिपेड बनाया था. जिस पर लेफ्टिनेंट कर्नल अजीत सिंह के नेतृत्व में 22 ग्रिनेडियर ने कब्जा कर लिया. लेकिन इस दौरान मध्य प्रदेश के लांस नायक शमशाद खान शहीद हो गए. उन्होंने बताया कि, हरियाणा के जाकिर हुसैन का का एक हाथ धड़ से अलग हो गया था फिर भी वो एक हाथ से एलएमजी चला रहे थे. इसी बटालियन में हरियाणा के रियासत अली भी थे जो शहीद हो गए.

लांस नायक आबिद खान

कारगिल में अपनी वीरता का परिचय देते हुए भारत का परचम चोटियों पर लहराने वालों में लांस नायक आबिद खान का नाम भी शामिल है. आबिद अली खान यूपी के हरदोई जिले के रहने वाले थे. 1988 में सेना के साथ जुड़े आबिद खान की बहादुरी के किस्से सेना में भर्ती होने के बाद से ही शुरू हो गए थे. 1995 में आबिद अली खान को आतंकियों से अकेला मोर्चा लेने के लिए सेना मेडल मिला था. 1999 में जब पाकिस्तान के साथ जंग छिड़ी तो वो बकरा ईद की छुट्टियों पर घर आये हुए थे.

आबिद अली छुट्टी छोड़कर अपनी पलटन से जा मिले, जिसे टाइगर हिल फतह करने भेजा गया था. जो 30 जून को रवाना हुआ. जौसे ही उन्होंने पहाड़ी पर चढ़ने की कोशिश की. दुश्मन ने ऊपर से गोलियों की बरसात कर दी. एक गोली आबिद के पैर भी लगी, लेकिन आबिद खान ने हिम्मत नहीं हारी और गोलियों की बरसात करते रहे. जिसमें पाकिस्तान के 17 सैनिक मारे गए. इसी बीच आबिद अली खान को एक और गोली आ लगी. इस बार ये वीर सपूत भारत मां की रक्षा करते हुए शहीद हो गया. लेकिन उससे पहले घायल होने के बाद भी पाकिस्तान के 17 सैनिकों को मौत की नींद सुला गया.

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Published: 26 Jul 2022,07:19 PM IST

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