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साल 1999 के इसी महीने में भारतीय जवान कारगिल में अपनी जांबाजी का सबूत दे रहे थे. इस तारीख तक तो भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को लगभग पूरी तरह से खदेड़ दिया था. कारगिल युद्ध की पहली सीरीज में हमने आपको बताया था कि कैसे कारगिल की ये जंग शुरू हुई थी. साथ ही कैप्टन सौरभ कालिया को कई दिनों तक टॉर्चर करने के बाद उनकी हत्या कर दी गई थी. अब आज आपको बदले की कार्रवाई के बारे में बताएंगे, जिसमें कैप्टन विक्रम बत्रा की टीम ने पाकिस्तान की सेना को बता दिया था कि भारत का एक जवान उनके 10 पर भारी है.
कैप्टन सौरभ कालिया और उनकी टीम के मैसेज और उनके वापस नहीं लौटने पर भारतीय सेना जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार थी. लेकिन दुश्मन के पास सबसे बड़ा एडवांटेज ये था कि वो चोटी पर गोला-बारूद के साथ मौजूद थे और भारतीय सेना उनके ठीक नीचे की तरफ थी. इसीलिए भारतीय जवानों को सबसे ज्यादा खतरा था, दुश्मन ऊपर से सीधा निशाना लगा सकता था.
लेकिन सेना के अधिकारियों ने अपनी पहली टीम को कारगिल की चोटियों पर भेजना का फैसला किया.
विक्रम बत्रा की जांबाजी की कहानी से पहले उनका छोटा सा परिचय जान लीजिए.
विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 में हुआ था. बचपन से ही उन्हें खेलों का काफी शौक था. वो कई खेलों में चैंपियन थे. इसके बाद उन्होंने देहरादून आईएमए में ट्रेनिंग ली. बत्रा ने अपनी ट्रेनिंग में ही साबित कर दिया था कि वो एक जांबाज फौजी हैं. उन्हें कमांडो ट्रेनिंग में भी चुना गया था. वो एक खुशमिजाज इंसान थे, लेकिन दुश्मन के लिए किसी काल से कम नहीं थे.
अब विक्रम बत्रा की टीम को चोटी पर चढ़ाई से पहले ब्रीफिंग दी गई. जिसमें उन्हें बताया गया कि क्रॉलिंग (रेंगते) करते हुए आप लोगों को ऊपर तक पहुंचना है और ये काम सिर्फ रात को ही करना है. क्योंकि अगर ऊपर से पाकिस्तानी सेना की नजर पड़ी तो वो हमला कर देंगे. खड़े पहाड़ पर काली रात में रेंगते हुए चढ़ना जवानों के लिए काफी मुश्किल टास्क था, लेकिन पूरी बटालियन में जोश काफी हाई था.
दो कंपनियों को ये टास्क पूरा करना था. एक थी ब्रावो कंपनी, जिसे संजीव सिंह हेड कर रहे थे और दूसरी डेल्टा कंपनी थी, जिसे कैप्टन विक्रम बत्रा हेड कर रहे थे. इसी ब्रीफिंग के दौरान जब पूछा गया कि चोटी को कैप्चर करने के बाद आप क्या कोड इस्तेमाल करेंगे? तो कैप्टन विक्रम बत्रा ने पेप्सी की टैगलाइन- "ये दिल मांगे मोर" कहा. उन्होंने कहा कि जीतने के बाद वो यही कोड इस्तेमाल करेंगे.
इसके बाद 20 जून की रात को घने अंधेरे में ये ऑपरेशन शुरू होता है. लेकिन हर छोटी हरकत पर ऊपर से हैवी फायर हो रहा था. पाकिस्तानी सेना एमएमजी से लगातार नीचे की तरफ गोलियों की बारिश कर रही थी. इन गोलियों से बचते हुए कैप्टन बत्रा की टीम ऊपर तक पहुंच गई. विक्रम बत्रा ने तय किया कि वो पाकिस्तानी बंकर में मौजूद सैनिकों को मार गिराएंगे. उन्होंने चोटी पर मौजूद बंकरों पर ग्रेनेड और बंदूक से हमला किया, जिसमें कई पाकिस्तानी सैनिक मारे गए. विक्रम बत्रा और उनकी टीम लगातार लड़ती गई और आखिरकार प्वाइंट 5140 को उन्होंने कैप्चर कर लिया.
तोलोलिंग चोटी पर भारत की ये काफी अहम और कारगिल में पहली जीत थी. जीत के बाद सुबह करीब 4:30 बजे विक्रम बत्रा चोटी से वायरलेस पर बोलते हैं- "ये दिल मांगे मोर", जो उनकी जीत का कोड था. इस लड़ाई में भारतीय सेना के कई जवान घायल जरूर हुए थे, लेकिन एक भी कैजुएलिटी नहीं हुई.
लेकिन इसके बाद विक्रम बत्रा की टीम को मुश्कोह वैली में प्वाइंट 4875 को कैप्टर करने के ऑर्डर मिले. जिसमें एक बार फिर उन्होंने साबित किया किया कि वो इस मिट्टी के लिए अपनी जान पर खेल सकते हैं. बताया जाता है कि विक्रम बत्रा की तबीयत खराब थी और एक कंपनी ने रात को चढ़ाई करना शुरू किया. लेकिन ऊपर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों को इसकी भनक लग गई और उन्होंने गोलियों की बरसात कर दी. जिसमें भारत के कई जवान शहीद हो गए. इसके बाद विक्रम बत्रा ने अपने ऑफिसर को कहा कि वो ऊपर जाएंगे. कई बार समझाने के बाद भी वो नहीं माने. तब कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम कुछ ऐसा था कि जैसे ही जवानों को पता चला कि वो उनके साथ दुश्मन पर हमला बोलने जा रहे हैं तो सभी जोश से भर गए.
इसके बाद कैप्टन विक्रम बत्रा अपनी कंपनी के 25 जवानों के साथ प्वाइंट 4875 की तरफ बढ़े. ऊपर जाते ही हैवी फायर शुरू हो गया. दोनों तरफ से जमकर फायरिंग होती रही. पाकिस्तानी सैनिक ऊपर से फायर झोंक रहे थे. भारतीय जवानों को काफी परेशानी हो रही थी. इसके बाद कैप्टन विक्रम बत्रा किसी तरह ऊपर तक पहुंचे और पाकिस्तान बंकर में घुसकर एक साथ 5 घुसपैठियों को मार दिया.
कैप्टन बत्रा और उनकी टीम ने इस चोटी पर मौजूद सभी पाकिस्तानी सैनिकों को मार दिया था, लेकिन पाकिस्तान की एक एमएमजी अब भी लगातार फायर कर रही थी. तभी उनके एक जवान को गोली लगती है. उनके साथ बाकी जवान कहते हैं कि सर हम उसे बचाकर ले आते हैं, लेकिन यहां पर विक्रम बत्रा उन्हें रोककर खुद जवान को बचाने आगे बढ़ते हैं. वो उसे घसीटकर सुरक्षित अपनी तरफ ले आते हैं, लेकिन तभी एक गोली विक्रम बत्रा के सीने में लगती है. जिसके बाद वो वहीं वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं. इस बहादुरी के लिए उन्हें बाद में सेना के सर्वोच्च गैलेंटरी अवॉर्ड परमवीर चक्र से नवाजा गया.
कारगिल की दूसरी सीरीज में आपने कैप्टन विक्रम बत्रा जैसे जांबाज की कहानी पढ़ी. अब 23 जुलाई को कारगिल सीरीज के तीसरे पार्ट में हम आपको इंडियन एयरफोर्स के कारगिल में किए गए "ऑपरेशन सफेद सागर" के बारे में बताएंगे.
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