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कारगिल युद्ध: चरवाहे ने क्या देखा? कैसे बंदी बनाए गए कैप्टन कालिया

कारगिल की चोटी पर सबसे पहले पहुंची थी कैप्टन सौरभ कालिया की टीम

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भारत और पाकिस्तान की दुश्मनी नई नहीं है, कई दशकों से पाकिस्तान लगातार भारत में घुसपैठ करने और जमीन हथियाने की कोशिश में लगा है. ऐसा ही दुस्साहस उसने साल 1999 में भी किया था. जब कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तान ने बंकर बना दिए थे. लेकिन शायद तब उसे भारतीय जवानों के फौलादी साहस का अंदाजा नहीं था. जिसने पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. कारिगल की 6 कहानियों में से सबसे पहली कहानी में आपको बताते हैं कि ये युद्ध आखिर शुरू कैसे हुआ.

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सुधरते रिश्तों के बीच पाकिस्तानी सेना की साजिश

साल 1999 में भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में मिठास देखने को मिल रही थी. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ रिश्ते सुधारने की तरफ कदम उठा रहे थे. यहां तक कि पंजाब से लाहौर तक बस सर्विस भी शुरू हो चुकी थी. जिसकी शुरुआत खुद पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान जाकर की थी. दोनों पीएम ने एक दूसरे को गले भी लगाया.

लेकिन पाकिस्तान की सेना कुछ और ही प्लान तैयार कर रही थी. मिलिट्री कमांडर परवेज मुशर्रफ पूरा षड़यंत्र रच रहे थे. उनका लक्ष्य था कि वो कारगिल पर अपना कब्जा कर लेंगे. कारगिल में भारी बर्फबारी के चलते भारत और पाकिस्तान की सेनाओं ने आपसी सहमति से हर साल कुछ महीनों के लिए नीचे उतरने का फैसला किया था. जिसके बाद ये प्रोसेस लगातार चल भी रहा था.

1999 में कारगिल की ऊंची चोटियों से भारतीय सेना नीचे उतर गई. लेकिन इस दौरान पाकिस्तान की सेना ने प्रमुख चोटियों पर अपना कब्जा कर लिया. जिसका भारत को कोई भी अंदाजा नहीं था. 3 मई 1999 को भारतीय सेना को कारगिल में घुसपैठियों के होने पता चला. एक चरवाहे ताशी नामग्याल ने पहली बार घुसपैठ के बारे में सेना को जानकारी दी. उसने बताया कि कुछ लोग बंदूकों के साथ चोटी पर डटे हैं.

कारगिल के पहले हीरो कैप्टन सौरभ कालिया

इसके बाद वो होने वाला था, जिसका तब शायद ही किसी को अंदाजा रहा हो. भारतीय सेना को जानकारी मिलते ही, सेना को लगा कि ये कुछ घुसपैठिए हैं, क्योंकि कई बार उस इलाके में ऐसी घुसपैठ होती रहती थी. 5 मई को सेना ने अपनी एक टुकड़ी को ऊपर भेजने का आदेश दिया, जिसे लीड कर रहे थे कैप्टन सौरभ कालिया.

सौरभ कालिया और उनके साथ 5 जवान जब चोटी पर पहुंचे तो उनकी आंखों के सामने जो नजारा था, देखकर दंग रह गए. वहां कोई घुसपैठिए नहीं, बल्कि गोला-बारूद के साथ पाकिस्तान के सैकड़ों सैनिक मौजूद थे.

कैप्टन सौरभ कालिया ने अपने अधिकारियों को ये मैसेज तो पहुंचा दिया कि यहां पाकिस्तानी आर्मी ने कब्जा कर लिया है, लेकिन उनकी पूरी टीम को दुश्मन ने कैप्चर कर लिया. पाकिस्तान ने सौरभ कालिया को बंदी बना लिया. उन्हें कैद में रखकर प्रताड़ित किया गया. करीब 22 दिन तक उन्हें टॉर्चर करने के बाद सौरभ कालिया का शव जब भारतीय सेना को सौंपा गया तो वो इस हालत में था कि देखते ही पूरी सेना का खून खौल उठा. उनके दांत और हड्डियां तोड़ दी गई थीं और पाकिस्तानी सेना ने उनकी आंखे तक निकाल ली थीं. इस सब टॉर्चर के बाद उन्हें आखिरकार गोली मारी गई थी.

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अब सूचना मिलने के बाद भारत सरकार ने मान लिया कि कारगिल में बहुत बड़ी घुसपैठ हो चुकी है. अब जवाब देने की बारी थी. कारगिल के हीरो सौरभ कालिया के बाद भारतीय सेना के दूसरे बहादुर कैप्टन विक्रम बत्रा की टीम को जवाबी कार्रवाई के लिए चुना गया.

पहली कहानी में हमने आपको बताया कि कारगिल युद्ध कैसे शुरू हुआ था. अब कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरता की कहानी हम आपको कारगिल युद्ध की दूसरी सीरीज में बताएंगे. बताएंगे कि कैसे उन्होंने पाकिस्तान की सेना को अपनी जांबाजी से हैरान कर दिया था.

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